केंद्र के नए IRSWD बिल से जल्द खत्म होगा राज्यों के बीच पानी का झगड़ा

पिछले कुछ सालों में राज्यों के बीच नदी जल विवाद को देखते हुए अंतरराज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक 2019 को लोकसभा में पिछले हफ्ते पेश किया गया. हालांकि सरकार के इस विधेयक से राज्यों को डर सता रहा है कि इस तरह के विवादों से केंद्र का वर्चस्व बढ़ेगा.
पिछले हफ्ते लोकसभा में जल शक्ति मंत्री गजेंद्र शेखावत जब यह बिल पेश कर रहे थे तब कांग्रेस और डीएमके समेत कई विपक्षी दलों ने इस बिल की प्रस्तावना का विरोध करते हुए इसे पेश करने का विरोध किया था. विपक्षी दलों का कहना था कि इस बारे में राज्यों से किसी तरह का कोई विचार-विमर्श नहीं किया गया.
फैसलों में देरी के कारण संशोधन
जल शक्ति मंत्री गजेंद्र शेखावत ने बिल पेश करते हुए कहा कि 2013 में राज्यों से विचार-विमर्श किया गया था और 2017 में संबंधित विधेयक पेश भी किया गया. फिर इसे स्थायी समिति के पास भेजा गया. तब विधेयक के मसौदे पर भी चर्चा हुई, लेकिन 16वीं लोकसभा का समय खत्म हो जाने के कारण इसे नहीं बढ़ाया जा सका.
केंद्रीय मंत्री शेखावत ने कहा था कि जल विवादों से संबंधित 9 अलग-अलग न्यायाधिकरण हैं. इनमें से 4 न्यायाधिकरण को फैसला सुनाने में 10 से 28 वर्ष लगे. न्यायाधिकरण के आदेश पारित करने के संबंध में कोई समयसीमा तय नहीं है. रावी-ब्यास जल विवाद न्यायाधिकरण ने विवाद सुलझाने में 33 साल लिए जबकि कावेरी नदी विवाद के निपटारे में 29 साल लग गए. इसके अलावा कृष्णा, नर्मदा और गोदावरी नदी से जुड़े विवाद को सुलझाने में एक दशक या उससे भी ज्यादा का समय लगा था.
देरी के 5 कारण
जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय ने प्राधिकरणों की ओर से फैसलों में देरी के 5 कारणों (1. फैसले के लिए समयसीमा का न होना. 2. प्राधिकरण की रिपोर्ट के प्रकाशन की कोई सीमा का न होना. 3. चेयरपर्सन या अन्य सदस्यों के रिटायरमेंट की सीमा का न होना. 4. पद रिक्तता की स्थिति में सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की ओर से नियुक्ति के लिए नामित करने के मामले में देरी और 5. नदियों से जुड़े आंकड़ों की अनुपलब्धता) की पहचान की है.
आईएसआरडब्लयूडी विधेयक के उद्देश्यों के बारे में बताया गया कि अंतरराज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक-2019 कई राज्यों के बीच नदी जल विवादों के हल को सरल बनाने, वर्तमान विधिक और संस्थागत संरचना को संतुलित बनाने के लिए है.
चयन समिति करेगी चुनाव
प्रस्तावित बिल कई प्राधिकरणों के स्थान पर एकल स्थायी प्राधिकरण का उपबंध करने के लिए भी है, जो एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और अधिकतम 6 सदस्य (3 न्यायिक और 3 विशेषज्ञ सदस्य) से मिलकर बनेगा. इनकी नियुक्ति चयन समिति की ओर से सुझाव दिए जाने के बाद केंद्र सरकार की ओर की जाएगी.
चयन समिति में प्रधानमंत्री के अलावा मुख्य न्यायाधीश, कानून मंत्री और जल शक्ति मंत्री शामिल होते हैं. केंद्र सरकार 2 या 2 से ज्यादा विशेषज्ञों (सेंट्रल वाटर इंजीनियरिंग सर्विस या चीफ इंजीनियर रैंक) की भी नियुक्ति कर सकती है.
आईएसआरडब्लयूडी विधेयक के अनुसार, चेयरपर्सन और वाइस चेयरपर्सन 5 साल या फिर 70 साल की उम्र तक अपने पद पर बने रह सकते हैं. अन्य सदस्य विवाद का फैसला निकलने या फिर 67 साल की उम्र तक रह सकते हैं.
10 जुलाई को बिल की मंजूरी
इससे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में 10 जुलाई को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अंतरराज्यीय नदियों के जल और नदी घाटी से संबंधित विवादों के न्यायिक निर्णय के लिए अंतरराज्यीय नदी जल विवाद (संशोधन) विधेयक (Inter-State River Water disputes(Amendment) Bill) 2019 को मंजूरी दे दी थी. यह विधेयक अंतरराज्यीय नदी जल से जुड़े विवादों के न्यायिक निर्णय को और सरल तथा कारगर बनाएगा.
यह विधेयक अंतरराज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956 को संशोधन करने के लिए भी लाया गया. ऐसा अंतरराज्यीय नदी जल विवादों के न्यायिक निर्णय को सरल और कारगर बनाने के लिए किया गया है.
न्यायिक निर्णय के लिए कड़ी समयसीमा निर्धारण और विभिन्न बैंचों के साथ एकल प्राधिकरण के गठन से अंतरराज्यीय नदियों से संबंधित विवादों का तेजी से समाधान करने में मदद मिलेगी. इस विधेयक में संशोधनों से प्राधिकरण को सौंपे गए जल विवादों के न्‍यायिक निर्णय में तेजी आएगी.

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