बीजेपी को क्या 'एक देश एक चुनाव' से फ़ायदा होगा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को एक सर्वदलीय बैठक बुलाई है, जिसमें वो 'एक देश, एक चुनाव' के मुद्दे पर चर्चा करेंगे. प्रधानमंत्री काफ़ी समय से लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनाव एकसाथ कराने पर ज़ोर देते रहे हैं. लेकिन इस मुद्दे पर राजनीतिक दलों की राय बंटी हुई है. इस बीच पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि वो बुधवार को होने वाली बैठक में शामिल नहीं होंगी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार कह चुके हैं कि अगर लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होंगे तो इससे पैसे और समय की बचत होगी. उनका कहना है कि बार-बार चुनाव होने से प्रशासनिक काम पर भी असर पड़ता है. अगर देश में सभी चुनाव एक साथ होते हैं तो पार्टियां भी देश और राज्य के विकास कार्यों पर ज़्यादा समय दे पाएंगी.
प्रधानमंत्री 'एक देश, एक चुनाव' की सोच की वकालत करते रहे हैं और बुधवार को पहली बार औपचारिक तौर पर सभी पार्टियों के साथ इस मसले पर विचार विमर्श करने जा रहे हैं. इसके लिए उन्होंने सभी पार्टियों के प्रमुखों को आमंत्रित किया है. केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ बीजेपी नेता रवि शंकर प्रसाद इस बारे में कहते हैं, "इस देश में ये स्थिति है कि हर महीने चुनाव होते हैं. हर बार चुनाव होता है तो उसमें खर्चा होता है."
"आचार संहिता लगने के कारण कई प्रशासनिक काम भी रुक जाते हैं और हर प्रदेश के चुनाव में बाहर के पदाधिकारी पोस्टेड होते हैं, जिसकी वजह से उनके अपने प्रदेश के काम पर असर पड़ता है."
लेकिन राजनीतिक दलों की राय इस मसले पर बँटी हुई है. पिछले साल जब लॉ कमिशन ने इस मसले पर राजनीतिक पार्टियों से सलाह की थी तब समाजवादी पार्टी, तेलंगाना राष्ट्र समिति, शिरोमणि अकाली दल जैसी पार्टियों ने 'एक देश, एक चुनाव' की सोच का समर्थन किया था.
हालांकि डीएमके, तृणमूल कांग्रेस, सीपीआई, AIUDF और गोवा फॉर्वर्ड पार्टी ने इस विचार का विरोध किया था. कांग्रेस का कहना था कि वो अपना रुख़ तय करने से पहले बाक़ी विपक्षी पार्टियों से चर्चा करेगी. सीपीआईएम ने कहा था कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराना अलोकतांत्रिक और संघवाद के सिद्धांत के ख़िलाफ़ होगा.
वाम दलों का कहना है कि ये एक अव्यवहारिक विचार है, जो जनादेश और लोकतंत्र को नष्ट कर देगा. राजनीतिक विज्ञान के प्रोफ़ेसर सुहास पलशिकर भी कुछ ऐसा ही मानते हैं. वो कहते हैं कि नियमों में बदलाव कर लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं. लेकिन उनका कहना ये भी है कि इस तरह के बदलाव से देश के संविधान के दो तत्वों- संसदीय लोकतंत्र और संघवाद के ख़िलाफ़ होगा.

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