समझ नहीं आ रहा है कि देश में इतने बुद्धिजीवियों के होते हुए भी हम अंग्रेजो के समय मे जी रहे हैं,
पूरे देश को दो से तीन लोग चला रहे हैं,
कब तक हम गुलामी में जिएंगे अब समय आ गया है कि हम अपने हक के लिए आवाज उठाए, जिम्मेदारों से सवाल करें, गुलामी मे जीने की आदत को छोड़ना होगा,