सत्ता लोभ से खुद को मुक्त बताते "आप" के शीर्ष नेता आज कुर्सी के लिए ऐसे उलझे हैं की सुलझने का नाम नहीं ले रहे। ऐसे में पार्टी की पारदर्शी तथा निस्वार्थ छबी दाव पर लगी है। केजरीवाल साहब बोलिए!!!!
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