जम्मू-कश्मीर में स्पेशल पुलिस ऑफिसर्स के हथियार ज़ब्त किए जाने वाली खबर पर सरकार ने जवाब दिया है

आर्टिकल 370 को बेअसर करने के ऐलान के बाद से ही जम्मू-कश्मीर, सुरक्षा एजेंसियों के सख़्त पहरे में जी रहा है. जम्मू हिस्से में आम जनजीवन काफी हद तक ढर्रे पर लौट आया है लेकिन कश्मीर घाटी में अब तक पाबंदियां जारी हैं. सरकार नहीं चाहती कि अलगाववादी माहौल बिगाड़ें, इसलिए सख़्ती बरती जा रही है. सख़्ती की वजह से संचार के माध्यमों पर भी पाबंदी जारी है.
अब जम्मू-कश्मीर पुलिस में काम कर रहे 250 स्पेशल पुलिस ऑफिसर्स (SPO) के बारे में खबर आ रही है.  कहा गया कि उनसे हथियार वापस लिए गए हैं. क्योंकि उनके हथियार समेत ड्यूटी से गायब होने का ख़तरा था. पुलिस को शक था कि कहीं ये SPO आतंकवादी संगठनों में शामिल न हो जाएं. 19 अगस्त को ट्वीट करके जम्मू-कश्मीर सरकार ने इस ख़बर को अफवाह करार दिया है.
यह भी पढ़ें: उत्तर पूर्व की पहचान बरकरार रखना सरकार का अहम लक्ष्य: अमित शाह
SPO वो लोकल कश्मीरी होते हैं जिन्हें कॉन्ट्रेक्ट के आधार पर पुलिस बल में शामिल किया जाता है. कानून व्यवस्था को बनाए रखने के लिए SPO जम्मू-कश्मीर के रेगुलर पुलिसबल की मदद करते हैं. कश्मीरी समाज में बैठे अलगाववादी नेता इन SPO को गद्दार बताने में लगे रहते हैं. हथियाबंद दहश्तगर्द अक्सर इन्हें निशाना बनाते रहे हैं. इस बार SPO के बारे में अफवाह फैलाने की कोशिश की जा रही थी. लेकिन जम्मू-कश्मीर के जनसंपर्क विभाग ने ऐसी कोई भी घटना होने से इनकार किया है. विभाग की ओर से किए गए ट्वीट में कहा गया है कि ये सब अफवाह है. जम्मू-कश्मीर के गृह सचिव शालीन काबरा की ओर से जारी बयान में लिखा है.
साथ ही कहा है कि लोग ऐसी अफवाह पर ध्यान न दें और बिना वेरिफाई किए कोई भी ऐसी ख़बर न फैलाएं.
सरकार के स्पष्टीकरण से पहले इस बात पर संदेह गहराता जा रहा था. 17 अगस्त को इंडिया टुडे पर छपी ख़बर के मुताबिक SPO से आर्टिकल 370 को बेअसर करने से पहले ही हथियार ले लिए गए थे. इंडिया टुडे से नाम न छापने की शर्त पर एक पुलिस अधिकारी ने कहा था.
सरकार के इस फैसले से विद्रोह तो नहीं होगा. लेकिन गुस्सा ज़रूर है. इसी के चलते कश्मीरी पुलिसकर्मियों के मुकाबले केंद्रीय सुरक्षा बलों की संख्या पुलिस थानों में बहुत ज्यादा है. हालात पर कड़ी नज़र बनाए रखने के लिए ऐसा किया गया 
एक और पुलिसकर्मी ने कहा कि वो (सरकार) हमपर भरोसा नहीं करते. इसलिए हमपर कड़ी नज़र रखी जा रही है. हालांकि, अब सरकार की ओर से बयान आया है कि SPO के साथ ऐसा कुछ भी नहीं किया जा रहा है.
अपनी मातृभूमि को मूल निवासी ही सबसे क़रीब से जानता है. देश के दूसरे हिस्सों से जाने वाले जवान जब जम्मू-कश्मीर पहुंचता है तो SPO उसकी सबसे बड़ी मदद साबित होते हैं. फिर चाहे बात किसी मुठभेड़ की हो या फिर कानून व्यवस्था बनाने की. 2019 में ही दो ऐसे बड़े कांड हुए थे कि SPO को शक की नज़र से देखा जाने लगा. पहला था- पुलवामा सिविल लाइंस के दो SPO शब्बीर अहमद और सुलेमान अहमद की मिलिटेंसी जॉइन करना और दूसरा था दहश्तगर्दों का पीडीपी विधायक के घर से SPO की मदद से हथियार लूटना. इसके बाद से ही जम्मू-कश्मीर में SPO को रोल पर मंथन चल रहा था.
वहीं कुछ मामले ऐसे भी सामने आए जहां SPO देश की रक्षा के लिए सबसे पहले खड़े रहे. उन्हें दहशतगर्दी का शिकार होना पड़ा. आर्टिकल 370 को बेअसर करने पर आम कश्मीरी की तरह ही SPO का क्या रिएक्शन होता, ये तो कहना मुश्किल है. लेकिन सरकार ने अपनी ओर से साफ किया है कि SPO से हथियार नहीं लिए गए हैं. यानी सरकार का SPO पर भरोसा कायम है. SPO को रेगुलर पुलिस बल की तरह अच्छी सैलरी नहीं मिलती. इतनी ख़तरनाक नौकरी करने की एवज में उन्हें सिर्फ 12,000 हजार रुपये की तनख़्वाह पर राज्य सरकार रखती है. हालांकि खर्च केंद्र सरकार उठाती है (जो भी खर्च आता है, वो केंद्र सरकार री-इम्बर्स कर देती है). इस समय क़रीब 30,000 महिला और पुरुष SPO कश्मीर में काम कर रहे हैं.
 

More videos

See All