दो और राज्यसभा सांसद छोड़ सकते हैं सपा, भाजपा के आला नेताओं से संपर्क साधने की चर्चा

 
समाजवादी कुनबे में एक अनार सौ बीमार वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। क्योंकि 2020 में पार्टी के कद्दावर नेता रामगोपाल यादव तंजीम फातिमा समेत कई नेताओं को कार्यकाल समाप्त हो रहा है। पार्टी की विधानसभा में 47 सीट हैं। ऐसे में पार्टी  केवल एक राज्यसभा सीट ही हासिल करने की स्थिति में है। लेकिन यादव परिवार समेत पार्टी के आधा दर्जन से ज्यादा बड़े नेता इस सीट के लिए लाइन में हैं। ऐसे में सपा के कुनबे में खासतौर पर राज्यसभा में समाजवादी सांसदों में पार्टी को छोड़ने की होड़ मच गई है। 

इस फेहरिस्त में जल्द ही दो और नाम जुड़ने की अटकले तेज हो गई हैं।  इसमें सुखराम सिंह यादव और विशंभर प्रसाद निषाद के नाम की चर्चा सबसे ज्यादा है। कानपुर और बांदा के इन खांटी समाजवादी नेताओं को सपा अग्रज मुलायम सिंह का भी सबसे खास समझा जाता है लेकिन यह लोग अखिलेश के नेतृत्व से नाखुश बताए जा रहे हैं। 

भारतीय जनता पार्टी समाजवादी पार्टी के नेताओं को अपने सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले के तहत चुन-चुन कर ला रही है। भाजपा की निगाह इस बहाने आने वाले 12 सीटों पर होने वाले विधानसभा उपचुनाव और 2022 चुनाव है, इसके लिए ही पार्टी जातीय समीकरणों के हिसाब चुनावी बिसात को सेट कर रही है। 

यही वजह है कि हाल ही में सपा छोड़कर गए सुरेंद्र नागर गुर्जरों के बड़े नेताओं में शुमार रखते हैं। सपा के कोषाध्यक्ष संजय सेठ भी कारपोरेट जगत केसाथ पंजाबी और खत्री लॉबी में अच्छी पैठ रखते हैं । इन दोनों नेताओं का  कार्यकाल अभी 2022 तक था।  इसी क्रम में निषाद और यादव भी बिरादरी के दिग्गजों में शुमार रखते हैं। 

समझा जा रहा है कि पहले यादव और निषाद भी नागर और सेठ की तरह ही इस्तीफा देंगे इसके बाद भाजपा में शामिल होंगे। इसकेलिए सूत्रों की माने तो इन दोनों नेताओं की दिल्ली में भगवा बिग्रेड के आला नेताओं से कई दौर की बैठक भी हो चुकी हैं।
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी में मची इस भगदड़ की वजह है, प्रदेश विधानसभा में भाजपा खासी मजबूत स्थिति में है।  2020 में खाली हो रहीं 10 सीटों में से  9 सीट पर भाजपा पार्टी खासी मजबूत स्थिति में है।  इसके अलावा 2022 में खाली होने वाली 12 सीटों में से भी पार्टी 11 को जीतने की स्थिति में है। जबकि पहले यूपी से भाजपा का प्रतिनिधित्व केवल गिनती की सीटों  पर ही था।   

वहीं बात करें समाजवादी पार्टी की तो यह उसकेलिए एक बड़ा झटका है। क्योंकि लोकसभा चुनावों में करारी शिकस्त के बाद  5 सीटों पर सिमटी पार्टी से बड़े पैमाने पर नेताओं का पलायन हो रहा है। यूपी से राज्यसभा के 31 सदस्य हैं इसमें  पहले 14 सपा से थे, लेकिन अमर सिंह से शुरू हुए पलायन के बाद से सपा के सांसदों की संख्या लगातार कम हो रही है। 

उस पर रही-सही कसर बड़े समाजवादी नेता और पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चंद्रशेखर के बेटे नीरज शेखर ने निकाल दी। 2019 के लोकसभा चुनाव में बलिया से टिकट न देने की नाराजगी राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा देकर चुका दिया। अब भाजपा ने उन्हें यूपी से राज्यसभा में प्रत्याशी घोषित भी कर दिया है।

इससे राज्यसभा में समाजवादी पार्टी के कुनबे के बचे हुए सदस्यों में भी भाजपा की तरफ झुकाव बढने की जमीन तैयार हो गई है। वैसे भी पार्टी में अब केवल 10 सदस्य बचे हैं दो और सदस्य अगर जाते हैं तो पार्टी का कुनबा घटकर गिनती के आठ सांसदों का रह जाएगा। 

हालांकि 2022 तक पार्टी से राज्यसभा के सांसदों की लंबी प्रतिक्षा सूची हो जाएगी। इसमें रामगोपाल यादव, बेनी प्रसाद वर्मा, तजीन फातिमा और रेवती रमन सिंह पहले ही शामिल हैं।  इसके अलावा यादव  परिवार से पत्नी डिंपल यादव, धर्मेंद्र यादव और अक्षय यादव हैं। 

यह सभी राज्यसभा सीट के इच्छुक उम्मीदवार कहे जा रहे हैं। पर समाजवादी पार्टी का संख्या बल केवल एक सीट पर ही अपने उम्मीदवार को जीता सकता है। ऐसे में 2020 से शुरु होने वाली राज्यसभा की एक सीट की उम्मीदवारी 2022 तक किसे मिलती है इसका फैसला करना सपा के लिए टेढ़ी खीर है। ऐसे में अखिलेश अपने कद्दावर नेताओं को किस तरह से  सपा में ही रोक  पाते हैं यह उनके लिए किसी चुनौति से कम नहीं है।

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