मैला ढोने पर रोक के बावजूद मैला ढोने वालों की संख्या लगभग तीन गुना बढ़ी

 भारत के 14 राज्यों के 84 जिलों में 40 हजार से ज्यादा लोगों की पहचान मैनुअल स्कैवेंजर्स (मैला ढोने के काम में लगे लोग) के रूप में की गई है. केंद्र सरकार द्वारा साल 2018 में मैनुअल स्कैवेंजर की पहचान के लिए शुरू किए गए सर्वे से ये जानकारी सामने आई है.
खास बात ये है कि ये आंकड़ा साल 2013 में कराए गए पिछले सर्वे के मुकाबले करीब तीन गुना अधिक है. उस समय 13 राज्यों में सर्वे कराए गए थे, जिसमें 14,505 मैनुअल स्कैवेंजर्स की पहचान की गई थी.
द वायर के द्वारा आरटीआई के तहत प्राप्त किए गए आंकड़ों के मुताबिक नए सर्वे के आधार पर 14 राज्यों के 84 जिलों में अब तक 41,120 मैनुअल स्कैवेंजर्स की पहचान की गई है. दोनों सर्वे को मिलाकर, सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में कुल 55,625 लोग मैला ढोने का काम कर रहे हैं. इसमें से करीब 70 फीसदी से भी ज्यादा महिलाएं हैं.
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के अधीन काम करने वाली संस्था नेशनल सफाई कर्मचारी फाइनेंस एंड डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (एनएसकेएफडीसी) द्वारा 18 राज्यों के 170 जिलों में ये सर्वे कराया गया था. इन जिलों में कुल 86,528 लोगों ने खुद को मैला ढोने वाला बताते हुए रजिस्ट्रेशन कराया था.
हालांकि सिर्फ 41,120 लोगों को ही मैनुअल स्कैवेंजर के रूप में स्वीकार किया गया. इस तरह जितने लोगों ने रजिस्ट्रेशन कराया था, उसमें से 50 फीसदी से भी कम लोगों को मैनुअल स्कैवेंजर माना गया है.
बिहार, हरियाणा, जम्मू कश्मीर और तेलंगाना ने दावा किया है कि उनके राज्य में एक भी मैनुअल स्कैवेंजर नहीं है.
एनएसकेएफडीसी से प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक बिहार के 16 जिलों में 4,757 लोगों ने खुद को मैनुअल स्कैवेंजर बताते हुए रजिस्ट्रेशन कराया था, लेकिन राज्य सरकार ने इनमें से एक भी व्यक्ति को मैनुअल स्कैवेंजर के रूप में स्वीकार नहीं किया है.
इसी तरह हरियाणा के पांच जिलों में 1,221 लोगों ने रजिस्ट्रेशन कराया लेकिन राज्य सरकार ने किसी की भी पहचान बतौर मैनुअल स्कैवेंजर नहीं की. जम्मू कश्मीर के सात जिलों में 254 लोग और तेलंगाना के दो जिलों में 288 लोगों ने रजिस्ट्रेशन कराया लेकिन राज्य सरकारों ने इन्हें मैनुअल स्कैवेंजर मानने से इनकार कर दिया.
प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक जिन 170 जिलों में सर्वे कराया गया उसमें से 82 जिलों ने दावा किया है कि उनके यहां एक भी मैनअल स्कैवेंजर नहीं है. बाकी के चार जिलों की रिपोर्ट आनी अभी बाकी है.
एक भी मैनुअल स्कैवेंजर न होने का दावा करने वाले चार राज्यों को छोड़कर इस सूची में आंध्र प्रदेश के दो जिले, गुजरात का एक जिला, झारखंड का एक जिला, मध्य प्रदेश के सात जिले, पंजाब के दो जिले, राजस्थान के 12 जिले, तमिलनाडु के तीन जिले, उत्तर प्रदेश के 21 जिले, उत्तराखंड का एक जिला और पश्चिम बंगाल के दो जिले शामिल हैं.
संस्था के डिप्टी मैनेजर और इस सर्वे का कार्यभार संभालने वाले आरके गुप्ता ने बताया कि अभी ये सर्वे चलता रहेगा, आने वाले समय में मैनुअल स्कैवेंजर्स की संख्या और बढ़ने की उम्मीद है.
उन्होंने कहा, ‘हमने एक वेबसाइट (mssurvey.nic.in) बनाई है, इस पर किसी भी राज्य का जिला प्रशासन या नगर निगम मैनुअल स्कैवेंजर से संबंधित जानकारी अपलोड कर सकता है.’ गुप्ता ने कहा कि जितने लोगों की पहचान की गई है उन्हें पुनर्वास योजना के तहत 40,000 रुपये दिए जाएंगे.
मालूम हो कि सरकार ने ये सर्वे मैला ढोने वाले की पहचान कर उनका पुनर्वास करने के लिए कराया है. हालांकि इस दिशा में काम कर रहे कार्यकर्ताओं का आरोप है कि सरकार इनकी सही तरीके से गणना नहीं कर रही है और प्रशासन जान-बूझकर इनको स्वीकारने से इनकार कर रहा है. इसकी वजह से ये प्रथा कभी भी समाप्त नहीं हो पाएगी.
कहां, कितने मैनुअल स्कैवेंजर्स
साल 2018 के इस सर्वे के मुताबिक देश में सबसे ज्यादा 18,529 मैनुअल स्कैवेंजर्स उत्तर प्रदेश में हैं. यहां के कुल 47 जिलों में सर्वे कराया गया था, हालांकि राज्य सरकार ने अब तक 43 जिलों की ही रिपोर्ट सौंपी है और अभी चार जिलों की रिपोर्ट मिलनी अभी बाकी है.
इस तरह राज्य में मैनुअल स्कैवेंजर्स की संख्या अभी बढ़ने वाली है. हैरानी की बात ये है कि इन जिलों के 39,683 लोगों ने खुद को मैनुअल स्कैवेंजर बताते हुए रजिस्ट्रेशन कराया था लेकिन राज्य सरकार ने इनमें से करीब 47 फीसदी यानी कि सिर्फ 18,529 लोगों की ही पहचान बतौर मैला ढोने वाले व्यक्ति के रूप में किया.
दूसरे नंबर पर महाराष्ट्र है, जहां कुल 7,378 लोगों को मैनुअल स्कैवेंजर माना गया है. यहां के कुल 14 जिलों में सर्वे कराया गया था. महाराष्ट्र एकमात्र ऐसा राज्य है जिसने रजिस्ट्रेशन कराने वाले सभी लोगों को मैनुअल स्कैवेंजर माना है. वहीं उत्तराखंड के तीन जिलों में 6,033 लोगों की पहचान मैनुअल स्कैवेंजर के रूप में हुई है.
इस सूची में चौथे नंबर पर राजस्थान है. राज्य के कुल 20 जिलों में सर्वे कराया गया था, जहां 7,381 लोगों ने रजिस्ट्रेश कराया लेकिन सिर्फ 35 फीसदी यानी कि 2,590 लोगों को ही मैनुअल स्कैवेंजर माना गया है. राज्य के इन 20 जिलों में 12 जिलों ने दावा किया है कि उनके यहां मैला ढोने वाला एक भी व्यक्ति नहीं हैं.
आंध्र प्रदेश के पांच जिलों में सर्वे के दौरान 2024 लोगों ने रजिस्ट्रेशन कराया, लेकिन सिर्फ 1982 लोगों को ही मैला ढोने वाला माना गया. कर्नाटक के छह जिलों में 1,754 व्यक्तियों को मैनुअल स्कैवेंजर माना गया है. इन जिलों में 1,803 लोगों ने रजिस्ट्रेशन कराया था.
मध्य प्रदेश का आंकड़ा काफी चौंकाने वाला है. यहां के 14 जिलों में 8,572 लोगों ने खुद को मैनुअल स्कैवेंजर बताते हुए रजिस्ट्रेशन कराया लेकिन सिर्फ करीब साढे़ छह फीसदी यानी कि 562 लोगों को ही मैला ढोने वाला माना गया है.
मैला ढोने वालों की गणना के लिए एनएसकेएफडीसी के साथ मिलकर काम करने वाली गैर-सरकारी संस्था राष्ट्रीय गरिमा अभियान के सदस्य आशिफ शेख़ ने कहा, ‘इस सर्वे में जितने मैनुअल स्कैवेंजर्स की पहचान की गई है, ये पर्याप्त आंकड़ा नहीं है. मैला ढोने वालों की संख्या इससे बहुत ज्यादा है. राज्य सरकारें जान-बूझकर इसे कम करने की कोशिश कर रही हैं, क्योंकि वे इसे खत्म करने के बजाय ये सोचती हैं कि अगर ये जानकारी बाहर आ गई कि उनके यहां अब तक मैला ढोने वाले लोग हैं तो उनकी बदनामी होगी.’
भारत में किन जिलों में कितने मैला ढोने वाले लोग
अगर इन आंकड़ों को जिलावार देखें तो भारत में उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में सबसे ज्यादा 3,225 मैला ढोने वाले लोग हैं. इसके बाद यूपी के ही जेपी नगर (अमरोहा) जिले में 2,965 मैनुअल स्कैवेंजर हैं. तीसरे नंबर पर उत्तराखंड का हरिद्वार जिला है. यहां पर कुल 2,531 मैला ढोने वाले लोग हैं. इसी राज्य के देहरादून में 2,256 मैनुअल स्कैवेंजर हैं.
यूपी के मुरादाबाद जिले में 2,135 लोग, संभल जिले में 1,489 लोग, हरदोई में 1,330 लोग, कासगंज जिले में 1,195 लोग, बदायूं जिले में 1,165 लोग मैला ढोने के काम में लगे हुए हैं.
महाराष्ट्र के नासिक में 2,799, औरंगाबाद जिले में 1,107, कर्नाटक के मैसूर जिले में 1,226, आंध्र प्रदेश के अनंतपुर में 1,454, उत्तराखंड के उधमसिंह नगर जिले में 1,246 मैनुअल स्कैवेंजर्स हैं.
देश में पहली बार 1993 में मैला ढोने की प्रथा पर प्रतिबंध लगाया गया था. इसके बाद 2013 में कानून बनाकर इस पर पूरी तरह से बैन लगाया गया. हालांकि आज भी समाज में मैला ढोने की प्रथा मौजूद है.
कानून में प्रावधान है कि अगर कोई मैला ढोने का काम कराता है तो उसे सजा दी जाएगी, लेकिन केंद्र सरकार खुद ये स्वीकार करती है कि उन्हें इस संबंध में किसी को भी सजा दिए जाने की जानकारी नहीं है.
मैला ढोने वालों का पुनर्वास सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय की मैला ढोने वालों के पुनर्वास के लिए स्व-रोजगार योजना (एसआरएमएस) के तहत किया जाता है.
इस योजना के तहत मुख्य रूप से तीन तरीके से मैला ढोने वालों का पुनर्वास किया जाता है. इसमें ‘एक बार नकदी सहायता’ के तहत मैला ढोने वाले परिवार के किसी एक व्यक्ति को एक मुश्त 40,000 रुपये दिए जाते हैं. इसके बाद सरकार मानती है कि उनका पुनर्वास कर दिया गया है.
इसके अलावा मैला ढोने वालों को प्रशिक्षण देकर भी उनका पुनर्वास किया जाता है. इसके तहत प्रति माह 3,000 रुपये के साथ दो साल तक कौशल विकास प्रशिक्षण दिया जाता है. इसी तरह एक निश्चित राशि तक के लोन पर मैला ढोने वालों के लिए सब्सिडी देने का प्रावधान है.
एनएसकेएफडीसी के अनुसार इस सर्वे में जितने मैला ढोने वालों की पहचान हुई है उसमें से 25 अक्टूबर 2018 तक 8,330 मैनुअल स्कैवेंजर को 40,000 रुपये दिए गए हैं. संस्था ने अब तक इस सर्वे से संबंधित पूरी जानकारी अपनी वेबसाइट पर अपलोड नहीं की है.

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