क्या हैं UAPA कानून में बदलाव जो चाहती है मोदी सरकार, क्या हैं विरोधियों के ऐतराज़ ?

तीन तलाक बिल संसद से पास हो गया है लेकिन अब संसद में हंगामे की वजह बन रहा है- गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम यानि UAPA पर. दरअसल पहले से बने हुए UAPA 1967 कानून में कुछ बदलाव लाए जा रहे हैं और इन्हीं बदलावों पर विपक्षियों को समस्या है.
इस कानून का मुख्य काम आतंकी गतिविधियों को रोकना है. ये कानून केंद्र सरकार को ऐसी ताकत देता था कि वो किसी भी ऐसे संगठन को आतंकवादी घोषित कर सकती थी जो आतंकी गतिविधियों में लिप्त हो. हालांकि किसी व्यक्ति विशेष को इसी आधार पर आतंकवादी घोषित करने का हक सरकार को नहीं है. अब इस प्रस्ताव में बदलाव यही है कि सरकार किसी व्यक्ति विशेष को भी आतंकवादी घोषित कर सकती है.
सरकार ये भी चाहती है कि किसी आतंकी संगठन की प्रॉपर्टी सीज़ करने के लिए NIA के हाथ मज़बूत किए जाएं. पहले प्रावधान था कि प्रॉपर्टी पर कार्रवाई के लिए संबंधित राज्य के डीजीपी की अनुमति चाहिए लेकिन बदलाव होने पर ऐसी इजाजत नहीं चाहिए होगी. इसके बदले एनआईए के डीजी की अनुमति ही अब ऐसी प्रक्रिया के लिए काफी होगी.
एक परिवर्तन और है. अभी मामलों की जांच में एनआईए से डिप्टी सुपरिटेंडेंट और एसीपी स्तर के अधिकारी शामिल होते थे लेकिन बदलाव होने के बाद एनआईए के इंस्पेक्टर्स के अधिकार भी बढ़ जाएंगे और वो जांच पड़ताल में सम्मिलित हो सकेंगे.
कानून में बदलाव से सरकार को उन व्यक्तियों पर शिकंजा कसने में मदद मिलेगी जो किसी आतंकी संगठन के मुखिया होते थे लेकिन खुलासे के बाद संगठन से दूरी बना लेते थे. ऐसे लोगों के खिलाफ मामला दर्ज करना जटिल हो जाता है. इसे समझाने के लिए संसद में गृहमंत्री अमित शाह ने यासीन भटकल का उदाहरण दिया था. उन्होंने कहा था- यासीन भटकल इंडियन मुजाहिद्दीन का संस्थापक था. उसे बहुत साल पहले सज़ा दी जा सकती थी यदि उसे आतंकवादी घोषित किया जा सकता. विड़ंबना है कि उसके संगठन को सरकार आतंकवादी घोषित कर चुकी लेकिन भटकल इस कानून के फंदे में नहीं फंसा और कई सालों तक एजेंसियां उस पर उचित कार्यवाही नहीं कर सकी. ये बात अलग है कि हैदराबाद स्थित एनआईए अदालत ने 19 दिसंबर 2016 को यासीन भटकल के लिए फांसी की सज़ा सुना दी.

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