कर्नाटक: 3 विधायक अयोग्य, बाक़ी 14 बाग़ियों का क्या होगा?

विधानसभा अध्यक्ष के. आर. रमेश कुमार ने 3 बाग़ी विधायकों को तो एंटी-डिफ़ेक्शन लॉ यानी दलबदल विरोधी क़ानून के तहत अयोग्य घोषित कर दिया है, लेकिन बाक़ी के बाग़ी विधायकों का क्या? क्या वह इन्हें भी अयोग्य घोषित करेंगे? स्पीकर ने कहा है कि कुछ दिनों में इनके इस्तीफ़े या अयोग्यता पर भी निर्णय लेंगे। लेकिन जिन नियमों के तहत तीन विधायकों को अयोग्य क़रार दिया गया है उन नियमों के तहत क्या 14 विधायकों को अयोग्य क़रार नहीं दिया जा सकता था, क्योंकि दलबदल तो इन्होंने भी किया है? क्या स्पीकर की यह कार्रवाई बाक़ी के बाग़ी विधायकों के लिए संदेश है कि वे अपना मन बदल लें? उन्होंने यह क्यों कहा कि इन पर वह बाद में फ़ैसला करेंगे?
स्पीकर ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस कर कहा कि बाग़ी विधायकों को उनके समक्ष उपस्थित होने का अब और मौक़ा नहीं मिलेगा और अब यह अध्याय बंद हो चुका है। इसका क्या मतलब है? जब अध्याय बंद हो चुका है तो फिर बाक़ी के बाग़ी विधायकों पर फ़ैसला बाद में क्यों?
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बहरहाल, स्पीकर ने कांग्रेस के दो बाग़ी रमेश जारकिहोली और महेश कुमाथल्ली को अयोग्य घोषित किया है। इसके साथ ही उन्होंने एक निर्दलीय विधायक आर. शंकर को भी अयोग्य क़रार दिया है। आर. शंकर निगम प्रशासन मंत्री थे। वह सरकार से इस्तीफ़ा देकर बाग़ी विधायकों के साथ मुंबई चले गए थे। तब कांग्रेस-जेडीएस की ओर से इन बाग़ी विधायकों के साथ आर. शंकर को भी मनाने की बहुत कोशिशें की गई थीं।
बता दें कि कुमारस्वामी सरकार से बाग़ी होकर 17 विधायकों ने स्पीकर को इस्तीफ़ा सौंप दिया था। इनके इस्तीफ़े स्पीकर के सामने 11 जुलाई से लंबित हैं। बग़ावत के कारण तीन दिन पहले ही कुमारस्वामी सरकार गिर गई थी। कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन की यह सरकार 14 महीने तक ही चल सकी। 
स्पीकर ने क्या कहा?
विधानसभा स्पीकर रमेश कुमार ने तीनों विधायकों पर किस आधार पर कार्रवाई की, इसकी उन्होंने प्रेस कॉन्फ़्रेंस में पूरी जानकारी दी। स्पीकर ने कहा कि वह मानते हैं कि तीनों सदस्यों ने स्वेच्छा से और सही तरीक़े से इस्तीफ़ा नहीं दिया और इसलिए उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया। उन्होंने कहा कि विधायकों ने संविधान की 10वीं अनुसूची के प्रावधानों (दलबदल विरोधी क़ानून) का उल्लंघन किया और इसी आधार पर कार्रवाई की गई।
स्पीकर ने कहा कि दलबदल विरोधी क़ानून के तहत अयोग्य क़रार दिए गए सदस्य चुनाव नहीं लड़ सकते हैं। यानी विधानसभा का कार्यकाल पूरा होने तक वे निर्वाचित नहीं हो सकते हैं। बता दें कि यदि समय से पहले विधानसभा भंग हुई तभी 2023 से पहले ये चुनाव लड़ पाएँगे।
क्या स्पीकर के पास अधिकार है?
जब विधायकों के इस्तीफ़े का मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुँचा था तो कोर्ट ने 17 जुलाई के अपने फ़ैसले में कहा था कि विधानसभा अध्यक्ष दल-बदल विरोधी क़ानून के अनुसार बागियों के इस्तीफ़े पर फ़ैसला लेने के लिए स्वतंत्र हैं। कोर्ट ने यह भी कहा था कि इस्तीफ़ा देने वाले विधायकों को विधानसभा में मौजूद रहने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है। हालाँकि कोर्ट ने इस पर कुछ नहीं कहा था कि व्हिप जारी होने की स्थिति में क्या होना चाहिए। 
बता दें कि पार्टी की ओर से व्हिप जारी होने पर विधायकों को सदन में मौजूद होना ज़रूरी होता है। ऐसा नहीं होने पर पार्टी कार्रवाई कर सकती है। विश्वास मद के दौरान सभी बाग़ी विधायक विधानसभा में मतदान में शामिल नहीं हुए थे। चूँकि उनका इस्तीफ़ा स्पीकर ने स्वीकार नहीं किया था और वे विधायक थे इसीलिए उन पर दलबदल क़ानून के तहत कार्रवाई की गई। अब देखना है कि बाक़ी के बाग़ी विधायकों पर क्या कार्रवाई होती है।

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