आरएसएस की संस्था चाहती है 8वीं तक अनिवार्य हो संस्कृत, त्रिभाषा फार्मूले से बताया नुकसान

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने मोदी सरकार की शिक्षा नीति के मसौदे का समर्थन किया है पर वह चाहता है कि 8वीं तक के सभी छात्रों के लिए संस्कृत की पढ़ाई अनिवार्य की जाए. मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा मई में जारी मसौदे पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए, आरएसएस समर्थित भारतीय शिक्षण मंडल (बीएसएम) ने एक अनौपचारिक नोट में सुझाव दिया है कि संस्कृत को पूर्व-प्राथमिक से लेकर 8वीं तक अनिवार्य किया जाना चाहिए.
सभी हितधारकों को भेजे गए नोट में कहा गया है, ‘त्रिभाषा फार्मूले के अलावा, संस्कृत को भाषा विज्ञान का बुनियादी अवयव माना जाना चाहिए और योग की तरह, कक्षा 8 तक के सभी छात्रों को इसकी पढ़ाई कराई जानी चाहिए.’
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बीएसएम ने अपने सुझाव को ये कहते हुए सही ठहराया है कि त्रिभाषा फार्मूले के तहत सर्वाधिक नुकसान संस्कृत का होता है, क्योंकि स्कूलों में एक स्थानीय भाषा एवं अंग्रेज़ी को अनिवार्य कर दिया जाता है, जबकि गैर-हिंदी भाषी राज्यों में तीसरी भाषा के रूप में ज़्यादातर छात्र हिंदी को चुनते हैं, और इस तरह संस्कृत बहुत कम छात्रों की पसंद बन पाती है.
आरएसएस समर्थित संगठन ने इस बात पर भी ज़ोर दिया है कि स्कूली शिक्षा ही नहीं, बल्कि उच्च शिक्षा भी सभी भारतीय भाषाओं में उपलब्ध कराई जानी चाहिए. इसके नोट के अनुसार, ‘इंजीनियरिंग, मेडिकल और अन्य व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की शिक्षा भी भारतीय भाषाओं में उपलब्ध कराए जाने की ज़रूरत है.’
हालांकि, बीएसएम ने विदेशी विश्वविद्यालयों को भारत आने की अनुमति देने के सरकार के प्रस्ताव का स्वागत किया है, बशर्ते उन्हें किसी तरह की रियायत नहीं दी जाती हो. संगठन के अनौपचारिक नोट में कहा गया है, ‘हम नई नीति के मसौदे में विदेशों में भारतीय विश्वविद्यालयों के कैंपस खोलने के सुझाव का स्वागत करते हैं. हमें विदेशी विश्वविद्यालयों के भारत आने पर कोई आपत्ति नहीं है. बस एक बात बिल्कुल स्पष्ट करने की ज़रूरत है कि इन विदेशी विश्वविद्यालयों को किसी तरह की विशेष सहूलियतों की पेशकश नहीं दी जाएगी.’
मसौदे में ‘भारत-केंद्रित’ दृष्टिकोण को आरएसएस की स्वीकृति
बीएसएम ने नई नीति के मसौदे में ‘भारत-केंद्रित’ दृष्टिकोण की सराहना करते हुए, मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम फिर से शिक्षा मंत्रालय किए जाने के प्रस्ताव पर संतोष व्यक्त किया है.
हालांकि, बीएसएम के नोट में संस्कृति मंत्रालय को शिक्षा मंत्रालय के साथ विलय का सुझाव भी दिया गया है. इसके अनुसार, ‘संस्कृति मंत्रालय के अधीनस्थ करीब 150 संस्थान कला के क्षेत्र में शिक्षा प्रदान करते हैं. यदि दोनों मंत्रालय साथ काम करें, तो शिक्षा की गुणवत्ता के दृष्टिकोण से बहुत बेहतर परिणाम मिलेंगे… स्वतंत्रता प्राप्ति के समय शिक्षा और संस्कृति एक ही मंत्रालय के तहत आते थे.’
बीएसएम ने राष्ट्रीय शिक्षा आयोग को अधिक स्वायत्तता दिए जाने का भी सुझाव दिया है. इसकी राय में आयोग का अध्यक्ष आगे भी प्रधानमंत्री को ही बनाए रखा जाना चाहिए, पर उपाध्यक्ष का पद राष्ट्रीय ख्याति वाले किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति को सौंपा जाना चाहिए, न कि मानव संसाधन विकास मंत्री को जैसा कि मसौदे में प्रस्तावित है.
नोट में आगे कहा गया है, ‘इससे आयोग को अधिक स्वायत्तता मिल सकेगी. साथ ही, आयोग मात्र सिफारिशें करने वाला निकाय बन कर नहीं रह जाए, बल्कि अधिशासी विभाग के ऊपर इसे अधिकार होना चाहिए.’
बीएसएम ने मसौदा नीति में अनुबंधित शिक्षकों या दिहाड़ी पर शिक्षक रखने की व्यवस्था को बंद करने के प्रस्ताव का समर्थन किया है. इसके अनुसार अनुबंध पर शिक्षकों को रखा जाना शिक्षा के व्यावसायीकरण को समाप्त करने और शिक्षकों की सामाजिक स्थिति में सुधार की राह में एक प्रमुख अवरोध है.

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