कैसे रेलवे का निजीकरण डालेगा आम आदमी के जीवन पर असर ?

1991-92 के बाद से भारत में निजीकरण को अर्थव्यवस्था के लिए संजीवनी बूटी कहा जाने लगा। लेकिन जब नीरव मोदी फ्रॉड केस के बाद पब्लिक सेक्टर बैंकों के निजीकरण की प्रक्रिया को गति मिली और संस्थाओं ने इसका अपोस किया तब मोदी कैबिनेट से अरुण जेटली और पियूष गोयल  ने आश्वासन दिया कि पब्लिक सेक्टर बैंक्स और रेलवे का निजीकरण करने की सरकार की कोई योजना नहीं है। लेकिन शायद सरकार अपनी ही कही बातें भूल गयी और रेल कर्मचारियों की तमाम धमकियों और कोशिशों के बावज़ूद भी मोस्ट अवेटेड तेजस एक्सप्रेस को देश की पहली प्राइवेट ट्रेन बनाने पर पूरा ज़ोर दिया हुए है। लेकिन चिंता का विषय यह है कि अगर प्राइवेटाइजेशन से मोनेटरी फ्लो बढ़ेगा तो जनता को क्या नुक्सान होंगा? असल में इस तरह के प्राइवेटाइजेशन की शुरुवात से भी लोग डर रहे हैं क्यूंकि इससे रेलवे के मुनाफे में बढ़ोतरी तो हो सकती है लेकिन रेल यात्रा जो की आम आदमी की पहुंच में माना जाता है,और उनकी यात्रा का एक मात्र इकोनोमिकल साधन है वो लोअर मिडिल और मिडिल क्लास की पहुंच से दूर हो जाएगा।रेल मंत्रालय के कर्मचारियों को मिलने वाली सभी सुविधाओं में घाटा होगा। भले ही रेल यात्रा आधुनिक हो जाएगी, रेलवे से जुड़ा बुनियादी ढांचा मजबूत हो जाएगा लेकिन आज के समय में जहाँ युवा बेरोज़गार है, अर्थव्यस्था मंदी पर है तो ऐसे में बढ़ता रेल का किराया आम आदमी कैसे झेलेगा, ये चिंता का विषय  बना हुआ है।

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