वादे की हरियाली और सूखे की हक़ीक़त के बीच फैला विचारों का अकाल

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को लोकसभा में 2019-20 का बजट पेश करते हुए कहा कि भारत में जल सुरक्षा सुनिश्चित करना और सभी देशवासियों के लिए शुद्ध और पर्याप्त पेयजल उपलब्ध कराना सरकार की प्राथमिकता है.
वित्त मंत्री ने बताया कि जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण मंत्रालय और पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय को आपस में जोड़कर जल शक्ति मंत्रालय बनाना इस दिशा में एक प्रमुख कदम है. यह नया मंत्रालय एक समन्वित और समग्र रूप से हमारे जल संसाधनों के प्रबंधन और जल आपूर्ति की देखरेख करेगा, साथ ही जल जीवन मिशन के तहत 2024 तक सभी ग्रामीण परिवारों के लिए ‘हर घर जल’ (पाइप द्वारा जल आपूर्ति) सुनिश्चित करने के लिए राज्यों के साथ मिलकर काम करेगा.
पानी कहां से लायेंगे
देश के अलग-अलग हिस्सों से लगातार भू-जल स्तर गिरने की ख़बरें आ रही हैं. पानी के लिए परेशान लोगों की कई हृदयविदारक तस्वीरें भी देखने को मिली हैं. महाराष्ट्र ने अपने 37 में से 31 जिलों को सूखा प्रभावित घोषित कर दिया है, तो बिहार में भी पानी की स्थिति दिन-ब-दिन ख़राब ही हो रही है. बिहार के कई इलाकों में अचानक से भू-जल स्तर गिरा है. इस बार बिहार में 38 जिलों में से 23 जिले सूखा प्रभावित घोषित किये गये थे. झारखंड में पिछले साल दिसंबर में ही 24 जिलों में से 18 जिलों को सूखाग्रस्त घोषित कर दिया गया था. दिल्ली और हरियाणा के बीच पानी की लड़ाई भी सामने आ चुकी है. नदियां लगातार प्रदूषित होकर बदहाल स्थिति में पहुंच रही हैं और मर रही हैं.
आज तक की एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2018 में नीति आयोग ने कहा था कि भारत 'इतिहास के सबसे भयावह जल संकट' से जूझ रहा है. 60 करोड़ लोगों को हर रोज़ पानी की किल्लत से जूझना पड़ रहा है. करीब 2 लाख लोग हर साल साफ पेयजल न मिलने से मर रहे हैं. देश के 75 फीसदी मकानों में पानी की सप्लाई नहीं है. 2030 तक पानी की किल्लत और विकराल रूप ले लेगी.'
'कर्नाटक में जो हो रहा है, वो सब कांग्रेस का किया धरा है'
नीति आयोग की 2018 की ही रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में भू-जल की कमी राष्ट्रीय संकट बनकर उभर रही है. देश के ज़्यादातर राज्य भू-जल स्तर का ध्यान नहीं रख रहे हैं. इस मामले में सबसे बदहाल स्थिति उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, हरियाणा की है. इन राज्यों की 60 करोड़ की आबादी पानी की किल्लत से जूझ रही है.
जब भू-जल स्तर की स्थिति ख़राब है. बारिश के पानी का संचयन ही नहीं हो रहा, तो सरकार 2024 तक सबके घरों में पानी कैसे पहुंचा पायेगी. कई राज्य सरकारें भी इस तरह की योजना चला रही हैं, मसलन बिहार. बिहार, जहां 2018 में 38 में से 25 राज्य सूखाग्रस्त घोषित किये गये थे और जहां भू-जल स्तर में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है, वहीं नीतीश सरकार हर गांव में पानी की टंकी लगाकर ज़मीन से पानी निकालकर लोगों तक पहुंचा रही है.
इस योजना से होगा नुकसान
कई राज्यों में सूखे की स्थिति है. भू-जल स्तर लगातार नीचे गिर रहा है तो सरकार लोगों तक कैसे पानी पहुंचायेगी. इस सवाल के जवाब में वरिष्ठ पत्रकार सोपान जोशी कहते हैं, "अगर ये सरकार हर घर में पानी पहुंचाने का वादा कर रही है तो ये पानी आयेगा कहां से? अगर बोरवेल डाल-डाल के और नदियों को निचोड़ के पानी निकालना है तो वो तो पहले से निकाला जा रहा है. हमारे जल संसाधनों की, चाहे वे नदियां हों या तालाब हों या भू-जल हो, इनका स्थिति का बिगड़ना इनके दोहन से जुड़ा हुआ है. इनसे पानी निकाला ज़्यादा जा रहा, लेकिन डाला नहीं जा रहा है. अगर हर घर तक बोरवेल करके ही जल पहुंचाने की कोशिश होती है, तो जल-स्रोतों का और बदहाल होना लगभग तय है. इस योजना में पैसा तो बह सकता है, लेकिन पाइप में पानी ज़्यादा नहीं बह सकता है."
सरकार का दावा है कि लोगों तक पानी पहुंचाने के लिए पेयजल एवं स्वच्छता विभाग के इस मिशन में वर्षा जल संचय, भू-जल संभरण और घरों में इस्तेमाल किये गये जल के कृषि-कार्यों में इस्तेमाल के लिए स्थानीय अवसंचरना के निर्माण सहित, स्थानीय स्तर पर जल की मांग और आपूर्ति से जुड़े प्रबंधन पर ज़ोर दिया जायेगा. देश भर में टिकाऊ जल आपूर्ति प्रबंधन के लक्ष्य को पूरा करने के लिए जल जीवन मिशन में केंद्र और राज्य सरकार की अन्य योजनाओं को शामिल किया जायेगा.
इस पर सोपान जोशी कहते हैं, "हमारी जल व्यवस्था को बिगाड़ने में सबसे बड़ा योगदान सरकारों का, सरकारी नीति का और सरकारी नीतियों से होने वाली अनीति का रहा है. हमारे देश में 80 से 90 प्रतिशत पानी मॉनसून के महीने में कुछ दिनों के कुछ घंटों में बरस जाता है. हमारे यहां रहने वाले सभी लोगों ने इतिहास में इस पानी को रोकने की, इसे ज़मीन में इकट्ठा करने की बहुत बड़ी-बड़ी योजनाएं बनायी हैं. सब लोगों ने यह किया. शहरी लोगों ने किया. ग्रामीण लोगों ने किया. घुमंतू लोगों ने किया. जंगलों में किया गया. मैदानों में किया गया. पहाड़ों पर किया गया. हमारे देश में पानी बचाने की बहुत विविध, बहुत सुंदर और गहरी परंपरा रही है.
इन परंपराओं की बर्बादी की शुरुआत अंग्रेज़ों के राज में हुई और आज़ादी के बाद हमारी सरकारों ने उस बर्बादी को और आगे बढ़ाया है. सरकारों ने जल-स्रोतों में पानी आने के तरीके ख़राब किये और पानी की बर्बादी के तरीके बढ़ाये हैं. हर नयी सरकार वादे करती है, लेकिन जो पहले हुआ है उसका ठीक से आकलन नहीं करती. ये नहीं बताती कि हमारे देश में जल संकट इतना क्यों गहराने लगा है. नयी सरकार नयी योजना लेकर चली आती है. नयी योजना पुरानी ग़लतियों को दोहराने के तरीके होते हैं. इनको नया रूप दे दिया जाता है. अगर ये सरकार पानी बचाने की, वर्षा जल को संजोने की बात करती है तो सबसे पहले तो यही बात ठीक करनी पड़ेगी कि पानी बचाने की पद्धति बिगाड़ी सरकारों ने ही है. पहले ईमानदारी से इसका लेखा-जोखा दिया जाये कि सरकार ने तालाब कैसे बिगाड़े हैं. मन मोहने के किए कोई भी वादा कर देना आसान होता है, लेकिन ऐसा मानने का कोई भी कारण नहीं है कि ये सरकार कुछ अलग करेगी."
कंपनियों को फ़ायदा पहुंचाने वाली योजना
जल पुरुष के नाम से मशहूर राजेंद्र सिंह न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, "यह योजना ऐसी ही होगी जैसे इन्होंने 20 लाख करोड़ नमामि गंगे पर खर्च किये व गंगा और ज़्यादा बीमार हो गयी और कहीं ज़्यादा प्रदूषित हो गयी. सरकार बस हवाबाजी कर रही है."
राजेंद्र सिंह पानी बचाने के लिए एक मज़बूत कानून बनाने की मांग करते हैं. वे कहते हैं, "पानी बचाने के लिए सरकार कर क्या रही है? ये सरकार बातें तो अच्छी कर रही है. जल शक्ति और जन शक्ति को जोड़ने की. लेकिन, क्या जल शक्ति और जन शक्ति जोड़ने से नल में पानी आ जायेगा. अगर ऐसा होता तो पहले ही हो जाता, तो अब तक ऐसा क्यों नहीं हुआ.
नल में जल लाने के लिए अगर आप गंभीर हैं तो एक वाटर सिक्योरिटी एक्ट तो बनाओ. दरअसल सरकार पानी को लेकर चिंतित नहीं है. हर घर में नल से जल पहुंचाने के पीछे सरकार का मकसद पाइप बनाने वाली कंपनियों और ठेकेदारों के लिए मुनाफा कमाना है. नल तो ये लगा देंगे, लेकिन नल में जल तो आयेगा नहीं. जल कहां से आयेगा, जब जल है ही नहीं."
तय हो ज़िम्मेदारी
दिनेश मिश्रा सरकार की इस योजना को शेख़चिल्ली के सपने जैसा बताते हैं. वे बताते हैं, "1980-90 के दशक से ही साफ पानी और साफ-सफाई की बात हो रही है. इस दशक को पानी और सफाई के लिए केंद्रित बनाया गया था. यह संयुक्त राष्ट्र का कार्यक्रम था. भारत में इसकी ज़ोर-शोर से चर्चा हुई थी. इसके तहत हर एक इंसान को पानी मिल जाना था और उसके लिए साफ-सफाई का इंतज़ाम हो जाना था. आज तीस साल हो गये, लेकिन हम वहीं हैं. तो अब इस योजना पर क्या कहा जाये."
दिनेश मिश्रा आगे कहते हैं, "सबसे ज़्यादा ज़रूरी है ज़िम्मेदारी तय करना. पूर्व में जल को लेकर जितनी योजनाएं बनी हैं, उनका एक मूल्यांकन हो. हम अपनी योजना के मकसद को हासिल नहीं कर पाये. बल्कि उसका उल्टा असर हो गया. योजनाएं तो पानी को समृद्ध करने के लिए बनी थी न. अब हालात ऐसे हैं कि पहले सिंचाई के लिए पानी नहीं था और अब पीने के लिए नहीं है. यानी हमसे कोई ग़लती हुई है. इसकी ज़िम्मेदारी किसी की तो बनती है. लेकिन प्रशासनिक महकमे के लोग ज़िम्मेदारी शब्द से नफ़रत करते हैं."

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