ऐसे संविधान के होने का क्या मतलब जिसमें समाज के लोगों को बराबरी का हक नहीं

हमारे देश का संविधान सब नागरिकों को बराबरी का अधिकारी देता है। नागरिक छोटा हो या बड़ा, अमीर हो या गरीब, पुरुष हो या महिला, उन्हें बराबरी का हक मिलना चाहिए। अगर इसके बाद भी सबको बराबरी का हक नहीं मिलता तो ऐसे संविधान के होने या न होने से कोई फर्क नहीं पड़ता।
यह कहना है सीनियर एडवोकेट अशोक बसौत्र का। जागरण विमर्श में उन्होंने बेबाकी से अपने विचार रखे। उनका कहना है कि अनुच्छेद 370 जम्मू कश्मीर को एक विशेष पहचान तो दिलवाता है, लेकिन यह उन लोगों को बराबरी के अधिकार से भी वंचित करता है, जिनकी तीन तीन पीढिय़ां यहां रह चुकी हैं। यह सभी जानते हैं कि जम्मू कश्मीर के राजाओं ने दूसरे राज्यों में शादियां कीं। उनकी रानियों के साथ कई लोग जम्मू में आकर बस गए। दशकों से उन लोगों के परिवार अब यहीं हैं, लेकिन उन्हें अभी तक राज्य का नागरिक होने का अधिकारी नहीं मिला है। ऐसा ही हाल उस बाल्मीकि समाज का भी है, जिन्हें 50 के दशक में पंजाब से जम्मू कश्मीर में सफाई व्यवस्था के लिए लाया गया था। इस समाज के बच्चे भी अब पढ़ लिख गए हैं, लेकिन राज्य की नागरिकता न मिलने के चलते वे भी दरबदर हो रहे हैं।

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