मोदी ने अपने पहले विदेश दौरे के लिए मालदीव को क्यों चुना?

लगातार दूसरी बार आम चुनाव जीतने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पहली आधिकारिक विदेश यात्रा के लिए मालदीव को चुना है. नरेंद्र मोदी ने अपनी दूसरे शपथ ग्रहण समारोह में पिछली बार की तरह दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) के नहीं बल्कि बिमस्टेक देशों के समूह के नेताओं को बुलाया जिसमें थाईलैंड और म्यांमार जैसे मुल्क शामिल हैं, लेकिन मालदीव इसमें नहीं है.
ज़ाहिर है, भारतीय विदेश नीति को अंजाम देने वालों के मन में ये बात रही होगी कि ये क़दम कहीं मालदीव को खटक न जाए. मालदीव की दक्षिण एशिया और अरब सागर में जो स्ट्रेटेजिक (सामरिक) लोकेशन है वो भारत के लिए अब पहले से कहीं ज़्यादा अहम है. मालदीव में भारतीय राजदूत संजय सुधीर भी इस बात से इत्तेफ़ाक रखते हैं.
भारतीय राजदूत संजय सुधीर
बीबीसी से हुई ख़ास बातचीत में उन्होंने कहा, "मालदीव हमारी 'नेबरहुड फ़र्स्ट' पॉलिसी का बड़ा हिस्सा है. हमारा जितना भी तेल और गैस का एक्सपोर्ट मध्य-पूर्व से आता है उसका बहुत बड़ा हिस्सा ए डिग्री चैनल, यानी मालदीव के बग़ल से होकर गुज़रता है. साथ ही, बहुत ज़रूरी है भारतीय महासागर के इस इलाक़े में पीस-स्टेबिलिटी रहे. उसके साथ-साथ इंडिया मालदीव में एक भरोसेबंद डिवेलपमेंट पार्टनर की भूमिका भी निभाता है."
भारतीय विदेश सचिव विजय गोखले ने भी इस बात पर ज़ोर दिया था कि, "प्रधानमंत्री की यात्रा के दौरान विकास और सुरक्षा संबंधी कुछ अहम समझौते होंगे". मालदीव को प्रधानमंत्री की पहली विदेश यात्रा के लिए चुने जाने के पीछे चीन भी एक बड़ा कारण बताया जाता है. 
चीन ने पिछले एक दशक से हिंद महासागर में अपना वर्चस्व बढ़ने की मुहिम तेज़ कर रखी है. श्रीलंका को इस कड़ी का पहला हिस्सा बताया जाता है जिसके बाद उसका ध्यान मालदीव पर भी रहा है. व्यापार, आर्थिक मदद और इन्फ्रास्ट्रक्चर प्लान के ज़रिए चीन इन देशों में तेज़ी से अपना पांव ज़माने में कुछ हद तक कामयाब भी रहा है.

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