खत्‍म नहीं हुई घाटी की सियासी जंग, आगे अभी बहुत कुछ बाकी है

लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजों में भले ही जम्‍मू और कश्‍मीर की छह सीटों में तीन पर बीजेपी और तीन पर नेशनल कांफ्रेंस ने जीत हासिल कर ली हो, लेकिन अभी घाटी की सियाजी जंग अभी खत्‍म नहीं हुई है. अभी घाटी में बहुत कुछ ऐसा बाकी है, जो घाटी की सियासत को भविष्‍य में बेहद संवेदनशील और पेचीदा बनाने वाली है. दरअसल, घाटी के लोकसभा चुनाव परिणामों के आधार पर राजनैतिक दलों ने आगामी विधानसभा चुनाव के लिए सियासी बिसात बिछाना शुरू कर दी है. लोकसभा चुनाव में मिली जीत को विधानसभा चुनाव में बरकारार रखने के लिए नेशनल कांफ्रेंस ने अपना सियासी दाव फेंक दिया है. वहीं, पीडीपी की घाटी में करारी हार के पहले महबूबा मुफ्ती ने अपने पिता मोहम्‍मद मुफ्ती सईद के साथ अपना एक फोटो ट्विट कर पहला इमोशनल कार्ड चला है. 
फिलहाल, महबूबा मुफ्ती यह समझने में लगी हुई हैं कि आखिर चूक कहां हुई. जिन मुद्दों पर वह कश्‍मीर की पहली सियासी चाहत बन गई थी, वहीं मुद्दे उनके खिलाफ कैसे खड़े हो गए. जम्‍मू और कश्‍मीर की सियासत को करीब से देखने वाले एक वरिष्‍ठ पत्रकार की मानें तो 2014 से पहले तक महबूबा मुफ्ती की छवि अलगाववाद के प्रति हमदर्दी रखने वाली महिला के तौर पर थी. अलगाववाद की बयार पर महबूबा मुफ्ती ने अपनी सियासी जमीन तैयार की थी. 2014 में विधानसभा चुनाव के बाद महबूबा मुफ्ती ने एक तीर से दो निशाने साधने चाहे. पहला निशाना अपनी छवि के विपरीत बीजेपी के साथ सरकार बनाने का था. वहीं दूसरा निशाना, अलगाववादियों के इशारे पर पत्‍थरबाजी करने वाले कश्‍मीरी नौजवानों को राजनैतिक और प्रशासनिक संरक्षण देने की थी. 

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