लोकसभा चुनाव 2019: मोदी से क्यों इतने नाराज़ हैं पूर्व फ़ौजी?

लोकसभा चुनाव में राष्ट्रवाद, सेना और सीमा सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा है और भारतीय जनता पार्टी मुखर होकर इन मुद्दों पर वोट भी मांग रही है, इस बीच हम पहुंचे हरियाणा के बिशान गांव जहां लगभग हर घर का कोई ना कोई सदस्य भारतीय सेना में काम कर चुका है या कर रहा है.
पूर्व आर्मी चीफ़ दलबीर सिंह सुहाग भी इसी गांव से हैं. लगभग ढाई हज़ार की आबादी वाले इस गांव में फ़िलहाल 89 लोग रैंक अफ़सर हैं. सैकड़ों लोग सेना में काम कर रहे हैं. ये गांव रोहतक लोकसभा क्षेत्र में आता है.
गांव की चौपाल में हम पहुंचे तो थोड़ी हैरानी हुई क्योंकि वहां कांग्रेस नेता और रोहतक संसदीय सीट से उम्मीदवार दीपेन्द्र हुड्डा के पोस्टर लगे थे और गांव के लोग उनका इंतज़ार कर रहे थे. वहां तैयारियों में लगे थे सेना से रिटायर्ड सैनिक. देश में सेना को लेकर जो माहौल है, उससे अलग वे एक-एक कर अपनी समस्याएं बताने लगे.
रिटायर्ड कैप्टन राजेंद्र सुहाग 32 साल थल सेना की सर्विस में रहे. उनका कहना है कि वो नरेंद्र मोदी से बस इतनी विनती कर रहे हैं कि वो सच बोलें और देश को बेवक़ूफ़ ना बनाएं. उन्होंने वन रैंक वन पेंशन (OROP) लागू तो किया लेकिन इससे सिर्फ़ बड़ी रैंक वाले अफ़सरों को ही फ़ायदा हुआ.
वो कहते हैं, "एक जूनियर कमीशन ऑफ़िसर यानी जेसीओ की OROP में 298 रुपए से लेकर 900 रुपए की बढ़ोतरी हुई और वहीं अधिकारियों की पेंशन में 70,000 रुपए तक की बढ़ोतरी हुई."
वो एक और बात कहते हैं कि अब भी ये वन रैंक वन पेंशन नहीं, क्योंकि ये सिर्फ़ एक बार की बढ़ोतरी है. जब दोबारा तनख़्वाह बढ़ेगी तो पेंशन उस तरह से नहीं बढ़ेगी. "हम ये नहीं कहते कि सबकी सैलेरी समान होनी चाहिए. जो अफ़सर है, ज़्यादा पढ़ा लिखा है, उसकी ज़्यादा होगी ही लेकिन कई ऐसे भत्ते हैं जिनमें अंतर नहीं रखना चाहिए."
वो उदाहरण के तौर पर बताते हैं कि जैसे जान जोखिम भत्ता (मिलिट्री सर्विस पे) जो कि फ़ील्ड पर रहने वालों को मिलता है. लेकिन 'जो अफ़सर दफ़्तर में बैठा है, उसे ये भत्ता ज़्यादा मिलता है और जो फ़्रंट पर है, जिसकी जान सबसे पहले जोखिम में है, उसे कम मिलता है.'
इस गांव में पहले इंडियन नेशनल लोकदल को भी काफ़ी वोट मिलते रहे हैं. इस बार में उन्हें कुछ वोट मिलेंगे. इसके अलावा बीजेपी के समर्थक भी हैं. लेकिन हम जिनसे मिले ये सभी पूर्व सैनिक हरियाणा कांग्रेस के नेता और रोहतक से सांसद रहे दीपेंद्र हुड्डा के समर्थक थे. जब उनसे पूछा कि दस साल तो कांग्रेस की सरकार थी तो उन्होंने क्यों नहीं OROP लागू किया? इसका जवाब मिलता है कि कांग्रेस ने भी दो बार दिया है. एक बार 1988 में उन्होंने सिर्फ़ 500 करोड़ ही दिया था और दीपेन्द्र हुड्डा का साथ इस बार इसलिए क्योंकि उन्होंने दो बार उनके मामले को संसद में उठाया.

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