पाला बदलते ही उपेंद्र कुशवाहा व मांझी के बदले हालात, दाता से बने याचक
ये राजनीति के कुछ ऐसे चेहरे हैं, जो कभी दूसरों के लिए टिकट का बंदोबस्त करते थे। उम्मीदवारों की सिफारिश करते थे। सिफारिश न मानने पर बगावत की धमकी देते थे। लेकिन आज खुद और इज्जत बचाने के लिए कुछ दूसरे के टिकट के लिए परेशान हैं। हम बात कर रहे हैं राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) छोड़ महागठबंधन में आने वाले हिंदुरूतानी अवाम मोर्चा (हम) सुप्रीमो जीतन राम मांझी, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) के मुखिया उपेंद्र कुशवाहा की। इस लिस्ट में शरद यादव व पप्पू यादव भी शामिल हैं।
'हम' सुप्रीमो व पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी 2015 के विधानसभा चुनाव में टिकटार्थियों से घिरे रहते थे। उन्हें दम लेने की फुरसत नहीं मिलती थी। राजनीति के बाजार में भाव काफी तेज था।
करीब साल भर पहले हुए लोकसभा चुनाव में राजग को राज्य में शानदार कामयाबी मिली थी। हिसाब बता रहा था कि विधानसभा चुनाव में भी वही परिणाम दोहराया जाएगा। नतीजा यह निकला कि एक से एक ताकतवर उम्मीदवार मांझी के पीछे पड़ गए थे। उम्मीदवारों की धारणा थी- इसे टिकट मत कहो, विधानसभा में घुसने का सर्टिफिकेट बोलो।