चुनाव आयुक्त द्वारा आयोग की मीटिंग्स में न जाना इसकी गुलामी के संकेत हैं
Author: Neeraj Jha
18 May 2019

सीबीआई, आरबीआई, सुप्रीम कोर्ट, राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग और अब चुनाव आयोग। मोदी सरकार के पाँच साल, संस्थाओं की मौतों के पाँच साल रहे। चुनाव आयुक्त अशोक लवासा ने चुनाव आयोग की मीटिंग्स में जाना बंद कर दिया है। वो कहते हैं कि क्योंकि उनके बयान कमेटी के 2 सदस्यों के बयान से मेल नहीं खाता, इसलिए उनके बयानों को रिकॉर्ड नहीं किया जा रहा।इस कारण से अशोक लवासा ने खुद को आयोग की बैठकों से दूर कर लिया है।
मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट के अंतर्गत आई शिकायतों की जाँच के लिए मुख्य चुनाव आयुक्त समेत तीन अधिकारियों की एक समिति गठित की गई है। अशोक लवासा इन्हीं में से एक हैं। मोदी और अमित शाह के खिलाफ दायर की गई शिकायतों को लेकर शेष दोनों चुनाव आयुक्तों का निर्णय अशोक लवासा के निर्णय से अलग था। हुआ ये कि बीजेपी नेताओं को क्लीनचिट मिली। अशोक लवासा का कहना ये है कि कम से कम आयोग के अंतिम आदेशों में उनके निर्णय को उल्लिखित तो किया जाए।
लोकसभा चुनावों में अबतक मोदी के उपर मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट के उल्लंघन की 6 शिकायतें दर्ज़ हुई हैं, जिसमें उन्हें क्लीनचिट भी मिल चुकी है। चाहे मोदी द्वारा पुलवामा अटैक के नाम पर वोट मांगने की शिकायत हो या फिर राहुल गाँधी द्वारा वायनाड में चुनाव लड़ने को लेकर बहुसंख्यकों और अल्पसंख्यकों वाले बयान की शिकायत - मोदी शब्दबाण चलाते
रहे और चुनाव आयोग उनकी राह खाली किए जा रही है।
जो शिकायतें चुनाव आयोग तक गई, उसके विवरण को वेबसाइट पर दिखाते हुए चुनाव आयोग ने दो तरीके अपनाए हैं। एक तरीका मोदी के लिए और दूसरा बाकी सबके लिए। मोदी के खिलाफ की गई किसी भी शिकायत में स्टेट या जिला इलेक्शन कमीशन के अधिकारियों की कोई रिपोर्ट या निर्णय कॉपी संलग्न नहीं है।
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चुनाव आयोग के द्वारा मोदी को दी जा रियायत एक ऐसे राजदरबार का आभास करवाती है जहाँ तमामा दरबारी का एक ही लक्ष्य है महाराज की हर कीमत पर जय हो।
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