Social Media मतलब "वोटों की Lynching"
Author: Nilanjay Tiwari
05 Feb 2019

जैसे जैसे लोकसभा चुनावों की तारिख नजदीक आ रही है, social media पर अफवाहों का खेल अपनी रफ़्तार बढ़ा रहा है. ये अफवाहों का खेल किसी एक पार्टी या एक संस्स्था द्वारा नहीं बल्कि कई लोगों की मेहनत और कई राजनैतिक पार्टियों के नैतिक ज़िम्मेदारियों का हिस्सा है मतलब साफ़ है इस "गंगा" में डुबकी सभी राजनैतिक पार्टियां लगा रही हैं.
गौर करिएगा और ज्यादा नही पिछले महीने यानी जनवरी का ही हिसाब किताब निकालिए तो ऐसे अफवाहों को फैलाया गया social media के माध्यम से जिसकी सच्चाई कुछ और थी और आपके दिमाग मे भरा कुछ और गया। Social Media के माध्यम से राजनैतिक पार्टियां आपके दिमाग में घुसपैठ कर रही हैं और आपको कम सोचने के लिए उकसा रही हैं। आप भी धुंधली तस्वीरों को देख उनके जाल में फस जाते हैं और धीरे धीरे आप उनके salesman बन जाते हैं, वो सेल्समेन जो फ्री में काम करता है। इससे नुकसान आपका हो रहा है और मलाई उनके खाते में जा रही है।
कभी राजीव, कमलनाथ के ड्राइवर बन जाते हैं,
कभी योगी के मंदिर में दलितों का प्रवेश वर्जित बताया जाता है
कभी इंदिरा के मौत पर राजीव कलमा पढ़ते दिखाए जाते हैं और तो और कभी मोदी-आडवाणी की फ़ोटो वायरल कर आपके दिमाग में इस कदर नफरत का धान बोया जाता है कि आप दिमाग से अपंग बन जाए, बिना काले जादू के इस कदर टोना टोटका किया जाता है कि आप अपने वश में नही रहते, बिन हकीकत जाने बुझे गंगा में बह रहे मल को देख आप भी भक्ति के उस चरम पर पहुंच जाते हैं कि पुल से गुजरते हुए ऊपर से गंगा में पन्नी भरी गन्दगी के साथ "1" का सिक्का फेंक प्रार्थना करते हैं, सोशल मीडिया पर वो पन्नी भरा कूड़ा "अफवाह" वो सिक्का "आपका अनमोल (क्रांतिकारी) कैप्शन और "प्रार्थना" अमनचैन का संदेश है, जिसका परिणाम वही होता है जो आज गंगा का है। बाद में भी वही होगा जो गंगा के साथ हो रहा है, सोशल मीडिया के लिए सफाई अभियान चलाया जाएगा लेकिन हासिल होगी तो सिर्फ नाकामी जैसे "नमामि गंगे" को हुई है।
कृपया सजग रहिए और कुछ ऐसा आए बेझिझक himanshu@molitics.in पर भेजिए, हम तथ्यों व आंकड़ों के साथ हकीकत आपको बताएंगे।
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