क्या राइट टू साइलेंस के इस्तेमाल के जरिए CBI से बच सकते हैं चिंदबरम?

पूर्व वित्तमंत्री पी चिदंबरम (P Chidambaram) 4 दिन की सीबीआई (CBI) रिमांड पर हैं. इन 4 दिनों में आईएनएक्स मीडिया केस (INX Media Case) में सीबीआई उनसे पूछताछ करेगी. इसके पहले सीबीआई चिदंबरम पर आरोप लगा चुकी है कि वो इस मामले की जांच में सहयोग नहीं कर रहे हैं.
चिदंबरम जानकारी छिपा रहे हैं और सीबीआई पूछताछ में चुप्पी साधे रखते हैं. उनके हिरासत में लिए जाने के बाद भी सबसे ज्यादा चर्चा राइट टू साइलेंस (Right to Silence) की है. क्या है राइट टू साइलेंस यानी चुप रहने का अधिकार और क्या इस अधिकार का इस्तेमाल पी चिदंबरम कर सकते हैं? अगर पी चिदंबरम राइट टू साइलेंस का इस्तेमाल करके चुप्पी साधे रखते हैं तो सीबीआई उनके खिलाफ कैसे जांच करेगी?
क्या है राइट टू साइलेंस?
राइट टू साइलेंस एक ऐसा अधिकार है, जिसमें आरोपी को बोलने पर मजबूर नहीं किया जा सकता. भारत के संविधान में आर्टिकल 20 (3) में इस बारे में कुछ दिशा निर्देश दिए गए हैं. संविधान का अनुच्छेद 20 (3) भारत के हर नागरिक को ये मौलिक अधिकार देता है कि वो अपने खिलाफ गवाही नहीं दे.
आर्टिकल 20 (3) कहती है कि किसी भी तरह के आरोपी को उसे अपने ही खिलाफ गवाही देने या गवाह (साक्षी) बनने पर मजबूर नहीं किया जा सकता. इस बारे में नंदिनी सत्पति बनाम पीएल दनी का एक मामला है. इस मामले में आरोपी को राइट टू साइलेंस के तहत बोलने से छूट दी गई. ये पूरी तरह से सत्यापित है कि किसी भी आरोपी से जबरदस्ती बयान नहीं लिया जा सकता है. लेकिन ऐसा सिर्फ कोर्ट ऑफ लॉ में ही संभव है.
यह भी पढ़ें: चिदंबरम को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका, सोमवार तक रहेंगे CBI कस्टडी में
अपने खिलाफ साक्षी बनने से मना कर सकता है आरोपी
संविधान का अनुच्छेद 20 (3) सिर्फ किसी आरोपी को अपने खिलाफ साझी बनने से मना करने का अधिकार देता है. लेकिन इस बारे में कुछ साफ नहीं है कि आरोपी पुलिस या एजेंसियों की पूछताछ में इस अधिकार का इस्तेमाल कर सकता है या नहीं. क्योंकि ऐसा होता है तो पुलिसिया पूछताछ संभव ही नहीं है.
एजेंसियों और पुलिस की पूछताछ में राइट टू साइलेंस का अधिकार मिलने पर नारको एनालिसिस, ब्रेन मैपिंग और लाइ डिटेक्शन टेस्ट जैसी जांच का कोई मतलब नहीं रह जाएगा. हालांकि 2010 के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने नारको एनालिसिस, ब्रेन मैपिंग और लाई डिटेक्टर टेस्ट को संविधान के अनुच्छेद 20 (3) का उल्लंघन माना था.
पी चिदंबरम को देने होंगे सीबीआई के सवालों के जवाब
पी चिदंबरम संविधान के अनुच्छेद 20 (3) के अधिकार का इस्तेमाल करके अपने खिलाफ साक्षी बनने से इनकार कर सकते हैं. लेकिन सीबीआई पूछताछ में उन्हें सवालों के जवाब देने होंगे. अगर सीबीआई पूछताछ में चिदंबरम जवाब नहीं देते हैं तो उनकी रिमांड बढ़ाई जा सकती है.
हालांकि पूछताछ से मिली जानकारी को सीबीआई कोर्ट में सबूत के तौर पर पेश नहीं कर सकती. हिरासत में की गई पूछताछ की कोई एविडेन्शियल वैल्यू नहीं होती. सीबीआई पूछताछ में दी गई जानकारी से कोर्ट में चिदंबरम मुकर भी सकते हैं. इसलिए सीबीआई की कोशिश होगी कि वो पूछताछ के आधार पर चिदंबरम के खिलाफ पुख्ता सबूत हासिल करे.
कानूनी विशेषज्ञों के मुताबिक सीबीआई पी चिदंबरम से सीरआपीसी की धारा 161 के तहत पूछताछ करेगी. इसके आधार पर फिर सीबीआई सबूतों तक पहुंचेगी.
आरोपी के मानवाधिकारों की रक्षा करता है संविधान का आर्टिकल 20 (3)
संविधान का आर्टिकल 20 (3) गिरफ्तारी के हालात में आरोपी के मानवाधिकारों की रक्षा करता है. ये आरोपी को जबरदस्ती के अत्याचार और हिंसा से अपराध कबूल करवाने से बचाता है. जब तक किसी आरोपी का अपराध साबित न हो जाए गिरफ्तार व्यक्ति को सम्मानजनक व्यवहार का हक हासिल है.
अमेरिका में भी है राइट टू साइलेंस
अमेरिका में इस तरह का कानून है कि जिसमें आरोपी बयान देने से मना कर सकता है. अमेरिका में अगर कोई आरोपी को पुलिस हिरासत मिलती है तो आरोपी को मिरांडा वार्निंग के बारे में जानकारी दी जाती है. इसमें पुलिस उसके राइट टू साइलेंस के अधिकार के बारे में बताती है.
अमेरिका में इसे मिरांडा राइट्स भी कहा जाता है. लेकिन वहां इस अधिकार के इस्तेमाल के जरिए आरोपी के बयान को कोर्ट में मान्य किए जाने की कोशिश की जाती है. बयान का इस्तेमाल क्रिमिनल प्रोसिडिंग्स में भी किया जा सकता है.

More videos

See All