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Yogi Cabinet Expansion : पश्चिमी उप्र के गढ़ को दी और मजबूती, बढ़ेगी बसपा-रालोद की मुश्किलें

मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ने मंत्रिमंडल विस्तार में पश्चिमी उप्र के छह नए चेहरों को शामिल कर भाजपा के किले और मजबूत करने की कोशिश की है। जातीय समीकरणों को साधने के साथ युवाओं को तरजीह दे कर विपक्ष, खासतौर से बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। मुजफ्फरनगर दंगे को लेकर विवादित चेहरों को महत्व देकर पार्टी ने अगले वर्ष होने वाले पंचायत चुनाव के लिए अपना एजेंडा स्पष्ट कर दिया है।
पश्चिमी जिलों से योगी मंत्रिमंडल में मंत्रियों की संख्या 11 से बढ़कर 17 हो गयी है। मुख्यमंत्री ने कैबिनेट व स्वतंत्र प्रभार वाले राज्यमंत्रियों की संख्या जस की तस रखी परंतु छह राज्यमंत्रियों की नियुक्ति कर पश्चिमी उप्र के महत्व को बढ़ा दिया है। मंत्रिमंडल में गन्ना विकास राज्यमंत्री सुरेश राणा (शामली) एवं भूपेंद्र चौधरी (मुरादाबाद) को प्रोन्नत करके कैबिनेट मंत्री बनाया गया है। इस तरह पश्चिम से कैबिनेट मंत्रियों की संख्या पांच बरकरार रही। 
पिछड़े व अनुसूचित वर्ग की भागीदारी बढ़ी
पश्चिम से पिछड़ों व अनुसूचित वर्ग की भागीदारी को बढ़ाया है। गुर्जरों को प्रतिनिधित्व न मिलने की शिकायत दूर करते हुए अशोक कटारिया-बिजनौर को स्वंतत्र प्रभार का राज्यमंत्री बनाया गया है। रालोद के गढ़ में जाटों को जोड़े रखने के लिए अपने पुराने नेताओं भूपेंद्र सिंह और उदयभान सिंह को सम्मान दिया गया। हालांकि चरण सिंह परिवार का गढ़ रहे बागपत जिले को प्रतिनिधित्व न मिल पाने से स्थानीय कार्यकर्ता हैरान है। पिछड़ों में विजय कश्यप को राज्यमंत्री बनाकर भाजपा ने इस वर्ग को साधने की कोशिश की है। आगरा के डा. गिर्राज सिंह धर्मेश को मंत्री बनाने के पीछे अनुसूचित वर्ग को जोडऩे की कोशिश माना जा रहा है। 
अगड़ों का भी रखा ध्यान
पश्चिमी उप्र की अगड़ी जातियों का मंत्रिमंडल में प्रतिनिधित्व बढ़ाते हुए मुजफ्फरनगर के कपिल अग्रवाल, बदायूं के महेश गुप्ता के साथ बुलंदशहर के अनिल शर्मा को शपथ दिलायी गई है। विस्तार से पहले पश्चिम से मंत्रिमंडल में अगड़े वर्ग के मंत्रियों की संख्या पांच थी जो अब सात हो गई। 
अपेक्षा का मलाल भी
संतुलन साधने की कोशिशों के बीच उपेक्षा का मलाल भी दिख रहा है। मेरठ, गौतमबुद्धनगर, बागपत, हापुड़ और हाथरस जैसे जिलों के कार्यकर्ताओं को उपेक्षा की शिकायत है वहीं वाल्मीकि, प्रजापति और त्यागी समाज में प्रतिनिधित्व न मिल पाने से मायूसी है। 

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