पहली बार भारतीय सेना में होगा मानवाधिकार विभाग, आईपीएस अधिकारी इसका हिस्सा होंगे

पहली बार सेना के मुख्यालय में एक मानवाधिकार विभाग गठित किया जाएगा. यह विभाग अधिकारों के हनन के मामलों को देखने के लिए नोडल संस्था होगी. दिप्रिंट की मार्च की एक रिपोर्ट के अनुसार मानवाधिकार से जुड़े मामलों का संज्ञान मेजर जनरल रैंक के अधिकारी लेते हैं. जिसके बाद रिपोर्ट को वाइस चीफ को सौंपा जाता है जो आईपीएस रैंक के अधिकारी होते हैं.
इसके अलावा आर्मी प्रमुख के नेतृत्व में स्पेशल विजिलेंस सेल का गठन किया जाएगा. इस सेल में वायु सेना और नौसेना के भी प्रतिनिधि होंगे. बुधवार को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने आर्मी हेडक्वार्टर के पुनर्गठन के दौरान कुछ सुधारों को मंजूरी दी.
राजनाथ सिंह ने एक और बदलाव को मंजूरी दी जिसके तहत इस हेडक्वार्टर के लिए 206 अधिकारियों को नियुक्त किया जाएगा. इन अधिकारियों में 186 लेफ्टिनेंट कर्नल रैंक के होंगे.
पुनर्गठन योजना के तहत आर्मी, हेडक्वार्टर में 20 प्रतिशत अधिकारियों की संख्या को कम करेगी, दो हथियारों की एजेंसी का विलय करेगी और एक नया डिप्टी चीफ का पद बनाएगी जिसका काम सैन्य सूचनाओं, ऑपरेशनों और लॉजिस्टिक विंग के बीच समन्वय स्थापित करना होगा.
इस तरह का फैसला इसलिए लिया जा रहा है जिससे 13 लाख की संख्या वाली भारतीय सेना को 21वीं सदी की आधुनिक सैन्य संपन्न शक्ति बनाया जा सके.
आर्मी ने इस पुनर्गठन से पहले इसे लेकर चार अध्ययन कराए थे. यह पुनर्गठन उन्हीं चार में से एक अध्ययन का नतीज़ है.
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मानवाधिकार सेल
रक्षा मंत्रालय के एक बयान में कहा गया है कि नई सेल मानवाधिकार सम्मेलनों और मूल्यों के साथ सेना के अनुपालनों को सुनिश्चित करेगी. यह किसी मानवाधिकार (एचआर) उल्लंघन की रिपोर्ट की जांच के लिए नोडल बिंदु होगा.
मंत्रालय ने कहा है, ‘पारदर्शिता बढ़ाने और सेक्शन के लिए सबसे अच्छी जांच विशेषज्ञता उपलब्ध कराना सुनिश्चित करना है. इसके लिए एक एसएसपी/एसपी रैंक के पुलिस अधिकारी को रखा जाएगा. रक्षा सूत्रों ने कहा कि आईपीएस अधिकारी मानव अधिकारों के मुद्दों पर अन्य संगठनों और गृह मंत्रालय के साथ जरूरी समन्वय की सुविधा का काम करेगा.
भारतीय सेना अक्सर मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोपों का सामना करती है, विशेष रूप से जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर के रज्यों में जहां वह सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (अफस्पा) के तहत काम करती है. हालांकि सेना के सूत्रों का कहना है कि अधिकांश आरोप सेना की जांच के बाद गलत पाए गए हैं.

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