तीन तलाक और धारा-370 पर कड़े रुख के चलते दानिश अली से मायावती ने छीना पद

लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज करने के साथ ही कुंवर दानिश अली का कद बहुजन समाज पार्टी में काफी तेज से बढ़ा रहा था. वह अपनी सियासी उड़ान भर पाते कि इससे पहले ही मायावती ने उनके पर कतर दिए हैं. बसपा सुप्रीमों ने दानिश अली को हटाकर जौनपुर से सांसद श्याम सिंह यादव को लोकसभा में बसपा के संसदीय दल का नेता बना दिया है.
बता दें कि लोकसभा चुनाव से ऐन पहले दानिश अली ने जेडीएस से नाता तोड़कर बसपा का दामन थामा. इसके बाद मायावती ने दानिश अली को उत्तर प्रदेश के अमरोहा संसदीय सीट से प्रत्याशी बनाया, जहां से वो जीतकर सांसद चुने गए. इसके बाद मायावती ने अपने पुराने नेताओं को नजर अंदाज करते हुए दानिश अली को लोकसभा में बसपा के संसदीय दल का नेता चुना था.
मायावती के एक फैसले के बाद दानिश अली का कद बसपा में काफी बढ़ गया था. दानिश अली अपने आपको बसपा महासचिव और राज्यसभा में पार्टी नेता सतीश चंद्र मिश्रा के बराबर का नेता मान बैठ थे. यहीं दानिश अली गलती कर बैठे. धारा 370 और तीन तलाक जैसे अहम मुद्दे पर मायावती की लाइन से हटकर दानिश अली ने अपनी राय जाहिर की थी, जिसके चलते अपने पद से उन्हें हाथ धोना पड़ा है.
बसपा सूत्रों की माने तो तीन तलाक के मुद्दे पर दानिश अली ने लोकसभा में पार्टी लाइन से अलग राय रखी थी. वह पार्टी की ओर से तीन तलाक बिल के खिलाफ वोटिंग चाहते थे, जबकि मायावती वॉकआउट चाहती थी. इसी मतभेद के चलते दानिश अली से मायावती नाराज हो गईं.
इसी के चलते धारा 370 के मुद्दे पर मायावती ने दानिश अली को लोकसभा में बात नहीं रखने की हिदायत दी थी. जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने के मुद्दे पर लोकसभा में दानिश अली की जगह सांसद गिरीश चंद्र ने बात रखी. गिरीश ने अपने विचार रखने के बजाय मायावती के विचारों को संसद में पढ़ते हुए समर्थन का एलान किया. बसपा सूत्रों की मानें तो अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर दानिश अली विरोध करना चाहते थे.
माना जा रहा है कि इन मुद्दों को लेकर ही दानिश अली पर गाज गिरी है. मायावती ने दानिश को संसदीय दल के नेता पद से हटाकर जौनपुर से सांसद श्याम सिंह यादव को कमान दे दी है. हालांकि मायावती ने दानिश को हटाया तो बसपा के वफादार और पुराने नेता मुनकाद अली को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर डैमेंज कन्ट्रोल करने की कोशिश की है.
बसपा पर नजर रखने वाले सैय्यद कासिम कहते हैं कि बसपा के तौर तरीके से दानिश अली वाकिफ नहीं है. उन्हें यह नहीं पता की बसपा में सिर्फ और सिर्फ मायावती ही राय देती हैं, जिसे पार्टी के दूसरे नेताओं को महज अमल करना होता है. इस बात को दानिश अली समझ नहीं सके. इसीलिए दो महीने के अंदर ही पद से उनकी छुट्टी हो गई है.

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