अयोध्या केस: जानिए पहले दिन सुप्रीम कोर्ट में क्या रही निर्मोही अखाड़े की दलीलें

अयोध्या मामले की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई का आज दूसरा दिन है. मंगलवार को  सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ ने अयोध्या के राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद विवाद पर अंतिम सुनवाई शुरू की. मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में दलीलों और सबूतों का लंबा सिलसिला शुरू हुआ. कोर्ट में पहले सिविल सूट नम्बर तीन और पांच की सुनवाई हो रही है. तीन नम्बर सिविल सूट निर्मोही अखाड़े का और पांच नम्बर सूट रामलला का है. तीन-पांच नंबर केस के बाद सुन्नी वक्फ बोर्ड और बाकी मुकदमों और दावों की बारी आएगी.
सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रहे हैं. इस बेंच की अगुवाई मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई खुद कर रहे हैं. इसके अलावा इस खंड पीठ में जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एसए नजीर शामिल हैं.
न रामलला, न वक्फ बोर्ड, सारी जमीन हमारी- निर्मोही अखाड़ा
मंगलवार को बहस शुरू करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले में एक तिहाई जमीन के मालिक निर्मोही अखाड़े ने दावा किया कि विवादित  2.77 एकड़ जमीन न रामलला की है ना सुन्नी वक्फ बोर्ड की. वो सारी जमीन तो सिर्फ अखाड़े की है.
निर्मोही अखाड़े के वकील सुशील जैन ने अदालत के सामने लंबी जिरह की. सुशील जैन ने कहा कि विवादित रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्थल पर 1934 से ही मुसलमानों का प्रवेश बंद है. निर्मोही अखाड़े ने दलील दी कि इस जमीन पर सैकड़ों सालों से उसका मालिकाना हक था. निर्मोही अखाड़ा का पक्ष रखते हुए सुशील जैन ने कहा, "हम पंजीकृत संस्था हैं, हमारी मांग परिसर पर मालिकाना हक, उसके प्रबंधन और उसके कब्जे को लेकर है. हमारे पास सैकड़ों सालों से आतंरिक परिसर और रामजन्मस्थान का कब्जा था, बाहरी परिसर में मौजूद 'सीता रसोई', 'चबूतरा' और 'भंडार गृह' भी हमारे कब्जे में थे, इसे लेकर कोई विवाद नहीं था." निर्मोही अखाड़ा ने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ के समक्ष कहा कि विवादित भूमि पर उसका दावा 1934 से है, जब कि सुन्नी वक्फ बोर्ड ने विवादित भूमि पर अपना दावा 1961 में किया था.
सुप्रीम कोर्ट में बहस के दौरान चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि हमारे वहां के ढांचे की स्थिति को साफ करें. चीफ जस्टिस ने पूछा कि वहां पर प्रवेश कहां से होता है? सीता रसोई से या फिर हनुमान द्वार से? इसके अलावा CJI ने पूछा कि निर्मोही अखाड़ा कैसे रजिस्टर किया हुआ है?
16 दिसम्बर 1949 से नहीं पढ़ी गई नमाज
निर्मोही अखाड़े ने दावा किया कि जन्मस्थान पर रामलला की सेवा पूजा और मन्दिर का प्रबंधन बैरागी साधुओं का ये अखाड़ा ही करता आ रहा है. निर्मोही अखाड़ा ने दावा किया कि 1934 में राम जन्मभूमि पर बनाई गई मस्जिद में पांच वक्ती नमाज़ अदा करना मुस्लिमों ने बंद कर दिया था. निर्मोही अखाड़े के मुताबिक 16 दिसम्बर 1949 से शुक्रवार यानी जुमे की साप्ताहिक नमाज भी अदा करना बंद हो गया था. निर्मोही अखाड़े ने दावा किया कि 22-23 दिसम्बर 1949 की रात को भगवान श्री राम लला की मूर्ति मस्जिद में फिर से स्थापित की गई थी.
परिसर में वजू के लिए जगह नहीं
निर्मोही अखाड़ा ने दूसरा साक्ष्य देते हुए कहा कि इस्लाम के मुताबिक नमाज अदा करने से पहले वजू किया जाता है, जिसमें नमाजी नमाज से पहले हाथ-पैर और शरीर के अंग धोते हैं. वकील ने कहा कि इस स्थान पर वजू के लिए कोई जगह नहीं है. 1885 से वहां कोई नमाज नही अदा की गई है. यानी दावे से दशकों पहले से ही ढांचे का मस्जिद के रूप में इस्तेमाल बंद कर दिया गया था.
तीन बार हुए दंगे
निर्मोही अखाड़े ने कोर्ट में ये दावा भी किया कि हिंदुओं ने 1850 में पूजा करने के अधिकार को फिर से लागू करने की कोशिश की. भीतर के अहाते में पूजा करना जारी रखा गया. लेकिन ब्रिटिश कब्जे और हिंदुओं और मुसलमानों को विभाजित करने की नीति के कारण इस व्यवस्था को औपचारिक रूप नहीं दिया जा सका. उपासकों ने पूजा के अधिकार को औपचारिक रूप देने के लिए 1989 में अदालत में मुकदमा दायर किया. बहस के दौरान कहा गया कि  पहले 1853 फिर 1885 और बाद में 1934 में विवादित स्थल पर मंदिर/ मस्जिद की इमारत और इसकी संपत्ति पर कब्जा करने के लिए दंगे हुए थे.
निर्मोही अखाड़ा ने कहा कि हम ही सदियों से वहां पूजा कर रहे थे, हमारे पुजारी ही प्रबंधन संभाल रहे थे, 1992 में 6 दिसंबर को शरारती तत्वों ने रामजन्मभूमि पर बना विवादित ढांचा ढहा दिया.
लाइव स्ट्रीमिंग की मांग खारिज
मंगलवार को इस केस की सुनवाई के दौरान राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचारक के एन गोविंदाचार्य की अयोध्या विवाद मामले की लाइव स्ट्रीमिंग की मांग वाली याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी. गोविंदाचार्य की ओर से मान्य गुप्ता ने मांग रखी थी कि लाइव स्ट्रीम ना हो तो कोर्ट दो अफ़सर नियुक्त कर प्रोसिडिंग का लिखित ब्यौरा दर्ज करे, हर शाम उसकी कम्पाईलेशन हो. लेकिन कोर्ट ने उनकी ये मांग खारिज की.
सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील को फटकार
अदालत में सुनवाई के दौरान सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील राजीव धवन और सुप्रीम कोर्ट के जजों के बीच जोरदार बहस हुई.  सुप्रीम कोर्ट जब निर्मोही अखाड़े के वकील की दलीलों पर टिप्पणी कर रहा था, तो राजीव धवन ने बीच में दखल दिया. इस पर मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा, "मिस्टर धवन कृपया कोर्ट की गरिमा को बनाए रखें" अदालत ने कहा कि आप कोर्ट के ऑफिसर हैं और इस का ख्याल रखें. अब इस मामले की सुनवाई बुधवार से फिर से शुरू होगी.

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