बेहद गुप्त था मोदी का 'मिशन कश्मीर', बड़े मंत्री भी थे बेखबर

अपने फैसले से सबको चौंकाने वाले पीएम नरेंद्र मोदी ने सोमवार को भी जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने के फैसले से सबको हैरान कर दिया। मोदी का 'मिशन कश्मीर' इतना गुप्त था कि इसकी भनक तक किसी को नहीं थी। यहां तक कि कई टॉप मंत्री और शीर्ष अधिकारी भी सरकार के इस फैसले से अनजान थे। मोदी के दूसरे कार्यकाल शुरू होने के साथ ही इस मिशन को अंजाम देने पर काम शुरू हो गया था। 
दूसरे कार्यकाल के शुरुआत से ही 'मिशन कश्मीर' में जुटे मोदी 
दरअसल, दूसरे कार्यकाल की शुरुआत होते ही मोदी सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी से राष्ट्रपति के आदेश पर प्रयोग होने वाले पेपर के बारे में पूछा गया था। जम्मू-कश्मीर के बारे में लगने वाले अनुमानों से बहुत पहले की यह घटना थी। अधिकारी को सरकार के जम्मू-कश्मीर के 'स्पेशल स्टेटस' हटाने के ऐतिहासिक कदम की भनक तक नहीं लग पाई। इधर, मोदी सरकार आर्टिकल 35A पर कुछ बड़ा करने का मन बना चुकी थी लेकिन असली प्लान को सरकार के वरिष्ठ सहयोगियों से भी बेहद गुप्त रखा गया था। 
पहले कार्यकाल में भी हुई थी बात 
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के आखिरी महीनों में पूर्व केंद्रीय मंत्री जगमोहन की किताब 'माई फ्रोजन ट्रबुलेंस' में दी गई सलाह के अनुसार, आर्टिकल 370 में कुछ काटछांट की बात सरकार के वरिष्ठ सहयोगियों से हुई थी। 
अमित शाह ने क्यों नहीं चाहा कि पूरा अनुच्छेद 370 ख़त्म हो?
मंत्री बनने के बाद शाह मिशन पर लगे 
अमित शाह के गृह मंत्री बनाने के बाद पीएम मोदी ने यह कहानी फिर वहां से शुरू की जहां से उन्होंने इसे छोड़ी थी। NSA अजीत डोभाल को इस मिशन को कामयाब बनाने की जिम्मेदारी दी गई। सरकार ने इसके अलावा गृह सचिव राजीव गौबा और जम्मू-कश्मीर के मुख्य सचिव बी वी आर सुब्रमण्यन समेत कई अधिकारियों को इस काम को अंजाम तक पहुंचाने के लिए चुना। 
यूं छुपाया गया सुरक्षाबलों की तैनाती का मकसद 
गृह मंत्री शाह के नेतृत्व में टीम ने आर्मी चीफ जनरल बिपिन रावत और अर्द्धसैनिक बलों को प्रमुखों के सहयोग से कानून-व्यवस्थता की किसी प्रकार की चुनौती से निपटने के लिए कश्मीर में अतिरिक्त जवानों की तैनाती करवाई। पाकिस्तान से संभावित खतरे और इस्लामाबाद के अफगानिस्तान सीमा से अपने सैनिकों को हटाने को शांति के लिए खतरा माना गया और इस तरह कश्मीर में सुरक्षाबलों की तैनाती का सही मकसद छुपाने में भी मदद मिली। 

छोड़ा था केवल एक सुराग! 
जम्मू-कश्मीर के लिए नियमों पर चल रहे काम को कई टॉप मंत्रियों तक को नहीं बताया गया था। सरकार ने राष्ट्रपति के आदेश के पेपर पर सवाल पूछ केवल एक सुराग भर छोड़ा था।