महाराष्ट्र की सियासत में कितने प्रासंगिक रह गये हैं राज ठाकरे?

अब तक महाराष्ट्र में चाहे लोकसभा के चुनाव हो रहे हों या फिर विधानसभा के, राज ठाकरे की चर्चा जरूर होती रही है. राज ठाकरे के बयान चुनावी मौसम में खबरों में रहते हैं. वे किससे मिल रहे हैं और क्या कर रहे हैं इसपर चुनावी पंडितों की नजर रहती आई है. लेकिन इस वक्त राज ठाकरे की पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना जिस दौर से गुजर रही है, उसे देखकर ये सवाल उठ रहा है कि क्या अब राज ठाकरे महाराष्ट्र की सियासत में प्रासंगिक रह गये हैं? राज्य की राजनीति में क्या उन्हें गंभीरता से लिया जायेगा?
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साल 2009 में राज ठाकरे की पार्टी ने जब पहली बार महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव लड़ा तो उसके 13 उम्मीदवार जीतकर विधायक बने. उससे साल भर पहले राज ठाकरे ने परप्रांतीय विरोध का मुद्दा बड़े ही आक्रमक ढंग से उठाया था. माना जाता है कि शिवसेना के पारंपरिक वोटरों और मराठी युवाओं को एक नया विकल्प मिल गया था, जिसकी वजह से चुनावी मैदान में राज ठाकरे का खाता खुल गया. राज ठाकरे की एमएनएस शिवसेना के लिये एक बड़ी चुनौती बनकर उभरी. शिवसेना को अपने गढ़ दादर में एमएनएस के सामने हारना पड़ा. कई सीटों पर एमएनएस के उम्मीदवारों ने शिवसेना के वोट काटे जिससे शिवसेना के उम्मीदवार हार गये. इसके बाद राज ठाकरे को बडी कामयाबी नासिक महानगरपालिका चुनाव में मिली जहां उनका मेयर चुना गया.
राज ठाकरे की शुरूआती कामयाबी ने महाराष्ट्र की सियासत में उनका कद बढ़ा दिया लेकिन आगे जाते हुए कामियाबी ने उनका साथ नहीं दिया. 2014 के लोकसभा चुनाव में राज ठाकरे ने बीजेपी के उम्मीदवारों के खिलाफ अपने उम्मीदवार नहीं उतारे और नरेंद्र मोदी का समर्थन किया. हालांकि बीजेपी और शिवसेना में गठबंधन था लेकिन शिवसेना के प्रति अपनी सियासी खुन्नस के चलते उन्होने शिवसेना उम्मीदवारों के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतारे.

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