मोदी सरकार में संशोधित हुआ था बेनामी संपत्ति का कानून, इतने साल की सजा का है प्रावधान

आयकर विभाग ने गुरुवार को बेनामी संपत्ति मामले में कड़ी कार्रवाई करते हुए बसपा प्रमुख मायावती के भाई और पार्टी उपाध्यक्ष आनंद कुमार व उनकी पत्नी की 400 करोड़ की संपत्ति जब्त की है. आरोप है कि आनंद कुमार ने 12 फर्जी कंपनियों की आड़ में हजारों करोड़ की बेनामी संपत्ति अर्जित की. आखिर क्या है देश में बेनामी संपत्ति कानून और दोषी पाए जाने पर कितने साल की सजा होती है?
जिसके नाम पर बेनामी संपत्ति खरीदी गई होती है उसे 'बेनामदार' कहा जाता है. बेनामी संपत्ति चल या अचल संपत्ति या वित्तीय दस्तावेजों के रूप में हो सकती है. कुछ लोग अपने काले धन को ऐसे एसेट्स में निवेश करते हैं. सामान्‍य तौर पर इस तरह से अर्जित संपत्तियां बेनामदार के खुद के नाम पर न होकर किसी और के नाम होती है.
नोटबंदी से पहले देश में मोदी सरकार ने 1988 में बने बेनामी संपत्ति कानून में संशोधन करते हुए इसे और सख्त बना दिया. संशोधित कानून 1 नवंबर 2016 को देश भर में लागू हुआ था. इसके तहत जब संपत्ति खरीदने वाला अपने पैसे से किसी और के नाम पर प्रॉपर्टी खरीदता है तो वह बेनामी प्रॉपर्टी कहलाती है, लेकिन शर्त यह है कि खरीद में लगा पैसे आमदनी के ज्ञात स्रोतों से बाहर का होना चाहिए. भुगतान चाहे सीधे तौर पर भी किया जाए या फिर घुमा-फिराकर. अगर खरीदार ने इसे परिवार के किसी व्यक्ति या किसी करीबी के नाम पर भी खरीदा हो तब भी यह बेनामी प्रॉपर्टी ही कही जाएगी. सीधे शब्दों में कहें तो बेनामी संपत्ति खरीदने वाला व्यक्ति कानूनी मिल्कियत अपने नाम नहीं रखता, लेकिन प्रॉपर्टी पर कब्ज़ा रखता है.

वर्ष 1988 के काननू संशोधन कर इस बात का प्रावधान किया गया कि केंद्र सरकार के पास ऐसी प्रॉपर्टी को जब्त करने का अधिकार है. बेनामी संपत्ति की लेनदेन के लिए दोषी पाए गए व्यक्ति को सात साल तक के कैद की सजा हो सकती है और प्रॉपर्टी की बाजार कीमत के एक चौथाई के बराबर जुर्माना लगाया जा सकता है.

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