गैरसैंण और देवप्रयाग में शराब फ़ैक्ट्री पर घिरी त्रिवेंद्र सरकार, बीजेपी के वरिष्ठ नेता भी साथ नहीं

प्रचंड बहुमत वाली त्रिवेंद्र सरकार को कांग्रेस में जारी खींचतान का फ़ायदा सिर्फ़ चुनावों में ही नहीं मिलता रहा है सदन में भी वह मनचाहे फ़ैसले करने में सफल रही है. लेकिन गैरसैंण में ज़मीन खरीद की छूटऔर देवप्रयाग में शराब प्लांट लगाने के फ़ैसले पर त्रिवेंद्र सरकार की चौतरफ़ा आलोचना हो रही है. इस मामले पर कांग्रेस ही नहीं, सुप्तावस्था में पड़ी यूकेडी तक सक्रिय हो गई है. धर्मगुरु, स्थानीय निवासी, विपक्षी दल सभी इस समय हमलावर हैं. खुद पार्टी के सांसद तक त्रिवेंद्र सरकारका खुलकर समर्थन करते नहीं दिख रहे हैं. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या इस मामले पर त्रिवेंद्र सरकार घिर गई है?
70 सीटों वाली विधानसभा में 57 सीटों वाली बीजेपी को अब तक किसी मुद्दे पर इतना विरोध नहीं झेलना पड़ा है. ऐसा नहीं कि विपक्षी कांग्रेस एकदम नतमस्तक हो लेकिन बहुमत इतना ज़्यादा है कि सरकार पर कोई फ़र्क नहीं पड़ता दिख रहा.
औली में गुप्ता बंधुओं की शादी, राज्य में उद्योगों को आमंत्रित करने के नाम पर ज़मीन ख़रीद में पाबंदी ख़त्म करना, किसान और ट्रांस्पोर्टर आत्महत्या, पंचायती राज एक्ट में संशोधन जैसे मुद्दों पर विपक्षी दलों ने ही नहीं लोगों ने भी विरोध किया लेकिन सरकार को कोई फ़र्क नहीं पड़ा.
लेकिन देवप्रयाग में देवप्रयाग में शराब फैक्ट्री खोलने का मामला लगातार तूल पकड़ चुका है. स्थानीय लोगों को रोज़गार मिलने और स्थानीय उत्पादों की खपत होने के सीएम के दावे ज़मीन पर सही नहीं पाए गए. स्थानीय लोग नाराज़ हैं तो गंगा की निर्माण स्थली में शराब फ़ैक्ट्री से धर्मगुरु भी गुस्से में हैं. पिछले ढाई साल में ऐसा पहली बार हुआ है कि बीजेपी सरकार के किसी मंत्री को हिंदू संगठन का विरोध झेलना पड़ा हो. रामनगर में राज्य के उच्च शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत के ख़िलाफ़ बजरंग दल ने जमकर नारेबाज़ी की. बजरंग दल हरिद्वार में बूचड़खाना खोले जाने से भी नाराज़ है.
धन सिंह रावत ने सरकार के फ़ैसलों का बचाव तो किया लेकिन वह डिफेंसिव दिखे. शराब फ़ैक्ट्री का फ़ैसला उन्होंने हरीश रावत सरकार के सिर मढ़ने की कोशिश की तो बूचड़खाने पर हाईकोर्ट के आदेश की मजबूरी बताई.
बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष ने भी देवप्रयाग में शराब फ़ैक्ट्री लगाने और गैरसैंण में ज़मीन ख़रीद के फ़ैसले पर कहा कि उन्हें भी कुछ अटपटा लग रहा है और यह भी कहा कि वह इन मुद्दों पर मुख्यमंत्री से बात करेंगे. पूर्व मुख्यमंत्री बीसी खंडूड़ी ने तो यहां तक कह दिया कि शराब को पैसा कमाने का साधन बनाने उत्तराखंड के लिए आत्महत्या करने जैसा है.

इस सबके बीच बीजेपी प्रवक्ता देवेंद्र भसीन ने सिर्फ़ इतना कहा कि सरकार ने सोच-समझकर फ़ैसले लिए हैं.

लेकिन बीजेपी के अंदर भी इन फ़ैसलों से बेचैनी है. गैरसैंण में ज़मीन खरीद पर रोक हटने और देवप्रयाग में शराब फ़ैक्ट्री को लेकर ज़मीन पर काम करने वाले कार्यकर्ता, ज़मीन से जुड़े नेता डिफ़ेंड नहीं कर पा रहे. नाम न बताने की शर्त पर बीजेपी नेताओं ने माना कि यह फ़ैसले सरकार के लिए दिक्कत पैदा कर सकते हैं.

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि सत्ता की खुमारी में नेताओं, पार्टियों को ज़मीनी हकीकत दिखने बंद हो गई हो. वाजपेयी सरकार के साथ बीजेपी को इसका सीधा अनुभव भी है. राजनीतिक पर्यवेक्षक यह भी मानते हैं कि प्रचंड बहुमत की त्रिवेंद्र रावत सरकार, जो हर फ़ैसले कि लिए केंद्र का मुंह देखती है, ने अगर जनता की ओर देखना शुरु नहीं किया तो उसके लिए समस्या पैदा हो सकती है. और यह दोनों मामले इसकी शुरुआत हो सकते हैं.

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