क्या विपक्ष के नेता के तौर पर फेल हो गए हैं तेजस्वी?

लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद बिहार की राजनीति में बड़ा बदलाव दिख रहा है. एक ओर सत्ता पक्ष अंदरुनी खींचतान के बावजूद एकजुट दिख रहा है, वहीं विपक्ष बिखरा हुआ दिख रहा है. ये स्थिति तब है जब 243 सदस्यीय विधानसभा में आरजेडी और कांग्रेस के सदस्यों को मिलाकर संख्या 107 तक पहुंच जाती है. यानी 15 विधायकों के हेर-फेर में सत्ताधारी गठबंधन मुश्किल में पड़ सकता है.

हालांकि बड़े और गंभीर मुद्दों के बावजूद विपक्ष की ओर से सरकार को घेरने की न तो कोई रणनीति दिख रही है और न ही वह एकजुटता का संदेश दे पा रहा है. अब सवाल उठ रहे हैं कि आखिर ऐसा क्यों है?



जून महीने में चमकी बुखार ने प्रदेश में 180 से अधिक बच्चों की मौत हो गई बावजूद इसके बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव अज्ञातवास पर रहे. वापस लौटे तो भी उन्होंने एईएस से सबसे अधिक प्रभावित मुजफ्फरपुर का दौरा करने जहमत भी नहीं उठाई.

एक बार फिर बिहार प्राकृतिक आपदा से जूझ रहा है और 12 जिलों में बाढ़ का जबरदस्त प्रकोप है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार 26 लाख से अधिक लोग प्रभावित हैं और 77 लोगों की मौत हो चुकी है. लोग पलायन को मजबूर हैं, लेकिन विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव अब भी गायब हैं.
जाहिर है सवाल उठ रहे हैं कि क्या तेजस्वी यादव की नजर में बिहार की ये समस्याएं कोई मायने नहीं रखती हैं? पूरे लोकसभा चुनाव के दौरान आक्रामक अंदाज में सरकार को घेरने वाले तेजस्वी को क्या विपत्ति की इस घड़ी में बिहार के लोगों के बीच नहीं रहना चाहिए? या फिर क्या विपक्ष के नेता के तौर पर वे फेल साबित हो चुके हैं?
जानकारों की मानें तो तेजस्वी की मन: स्थिति के बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है, लेकिन इतना साफ हो गया है कि लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद लीडरशिप क्वालिटी तो बिल्कुल नहीं दिखाई है.
वरिष्ठ पत्रकार फैजान अहमद कहते हैं कि ऐसा लगता है कि राजनीति में उनकी रुचि ही नहीं रह गई है. ऐसा इसलिए भी लगता है कि लोकसभा चुनाव के दौरान वे एक महीने तक लगातार गायब रहे. बीते डेढ़ महीने में वे सिर्फ एक दिन ही पार्टी की मीटिंग में गए. विधानसभा में भी वे सिर्फ हाजिरी लगाने आए ताकि उनकी सदस्यता पर कोई खतरा न आए.

बकौल फैजान अहमद सरकार ने बीते जुलाई के पहले पखवाड़े में क्लाइमेट चेंज पर सर्वदलीय बैठक बुलाई थी, इसमें भी वे नहीं आए. तेजस्वी की गैरहाजिरी के कारण 80 सीटों वाली सबसे बड़ी पार्टी आरजेडी के होने को लेकर ही सवाल खड़े होने लगे हैं.

फैजान अहमद कहते हैं कि तेजस्वी की अनुपस्थिति के कारण प्रतिपक्ष की भूमिका ही बदली हुई लग रही है. इस वजह से यह लगता है कि प्रतिपक्ष में कोई लीडरशिप नहीं रह गई है. आरजेडी और कांग्रेस के 107 से भी अधिक विधायक हैं, लेकिन लगता है कि कोई आवाज ही नहीं है.

वहीं, वरिष्ठ पत्रकार रवि उपाध्याय कहते हैं कि चुनाव में जीत-हार लगी रहती है, लेकिन ऐसा लगता है कि तेजस्वी यादव लोकसभा चुनाव में मिली हार से कुछ अधिक आहत हो गए हैं. वे नेता प्रतिपक्ष के तौर पर अपनी जिम्मेदारी का बेहतर निर्वहन नहीं कर पा रहे हैं.

इसका कारण ये हो सकता है कि कम उम्र में ही उन्हें बड़ी जिम्मेदारी मिली और कम अनुभव होने के कारण इसे वे उचित तरीके से संभाल नहीं पा रहे हैं. पूरे विधानसभा सत्र में नेता प्रतिपक्ष को सदन में जरूर रहना चाहिए था.

रवि उपाध्याय मानते हैं कि अगर वे बीमार भी हैं तब भी वे अपने IRCT केस के सिलसिले में दिल्ली गए. इससे पहले पटना में आरजेडी कार्यकारिणी की बैठक में भी शामिल हुए. विधानसभा में एक दिन हाजिरी भी लगाई. इसका मतलब है कि उन्हें चलने-फिरने में कोई दिक्कत नहीं है और वह सदन में उपस्थित रह सकते हैं.

बकौल रवि उपाध्याय बड़े मुद्दों पर सरकार फेल साबित हो रही है. उनकी जवाबदेही है कि वे सदन में रहकर जनता के मुद्दे उठाएं, लेकिन ऐसा नहीं कर पा रहे हैं. उनके नहीं रहने से विपक्ष की गोलबंदी भी कमजोर पड़ गई है. हालांकि मानसून सत्र समाप्त होने में एक सप्ताह अब भी बाकी है. ऐसे में विपक्ष भी उन्हीं की ओर देख रहा है.

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