संसद में सांसद सीखेंगे संस्कृत, 10 दिनों का शिविर लगाएगा संघ का संगठन

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने देश में संस्कृत को आम बोलचाल की भाषा बनाने की दिशा में जोर देना शुरू किया है. झुग्गी-झोपड़ियों  से लेकर अब देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद भवन में भी दस दिन का शिविर लगाने की तैयारी है. यह प्लान आरएसएस के अनुषांगिक संगठन संस्कृत भारती ने तैयार किया है.
संसद भवन में संस्कृत सिखाने वाले शिविर के आयोजन के लिए संघ इसलिए भी उत्साहित है, क्योंकि इस बार संसद में जहां संस्कृत में शपथ लेने वाले सांसदों की संख्या बढ़ी है, वहीं अंग्रेजी में शपथ लेने वाले सांसदों की संख्या घटी है. संघ की कोशिश है कि अगली लोकसभा में अंग्रेजी से ज्यादा संस्कृत में शपथ लेने वाले सांसद रहें. ताकि अंग्रेजी के दबदबे को चुनौती देते हुए देश में संस्कृत को लेकर बड़ा संदेश जाए.
संसद भवन में संभाषण शिविर लगाने के सिलसिले में संस्कृत भारती के अखिल भारतीय संगठन मंत्री दिनेश कामत की पिछले दिनों लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला से मुलाकात हो चुकी है. संस्कृत भारती का यह प्रस्ताव ओम बिड़ला को भा गया है. उन्होंने जल्द दस दिनों के लिए शिविर आयोजित करने का आश्वासन दिया है.
दरअसल आरएसएस की कोशिशों के चलते देश में संस्कृत का प्रसार हालिया वर्षों में बढ़ा है. सांसद संस्कृत में शपथ लेने में रुचि और गर्व महसूस करने लगे हैं. 2014 में जहां 34 सांसदों ने संस्कृत में शपथ ली थी, वहीं इस बार 2019 में 47 सांसदों ने शपथ ली. जबकि 2014 में 114 के मुकाबले इस बार सिर्फ 54 सांसद ही अंग्रेजी में शपथ लिए. 17 वीं लोकसभा में सबसे ज्यादा 210 सांसदों ने हिंदी में  शपथ ली. इस प्रकार देखें तो अब अंग्रेजी और संस्कृत में शपथ लेने वाले सांसदों के बीच केवल सात का आंकड़ा रह गया है.
इसके पीछे आरएसएस की प्रेरणा बताई जा रही है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन, प्रताप चंद सारंगी, गढ़वाल सांसद और बीजेपी के राष्ट्रीय सचिव तीरथ सिंह रावत, मीनाक्षी लेखी, पश्चिम बंगाल बीजेपी अध्यक्ष और मिदिनापुर सांसद दिलीप घोष आदि ने इस बार संस्कृत में शपथ लिया. ऐसे सभी सांसदों को सोमवार को दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में संस्कृत भारती की ओर से सम्मानित भी किया गया. मगर, संस्कृत भारती देश की सबसे बड़ी पंचायत के सभी सांसदों में संस्कृत के प्रति प्यार पैदा करने की कोशिश में है.
क्या सीखेंगे सांसद
संस्कृत भारती के दिल्ली प्रांत मंत्री कौशल किशोर तिवारी ने AajTak को बताया कि संसद भवन में कुल 20 घंटों का यह शिविर दस दिनों तक चलेगा. हर दिन दो घंटे सांसदों को संस्कृत लिखने, पढ़ने और बोलने का प्रशिक्षण दिया जाएगा. प्रशिक्षण संस्कृत भारती से जुड़े आचार्य देंगे. उन्होंने बताया कि कई सांसदों ने खुद संगठन से इस शिविर को लगाने की इच्छा जताई, जिसके बाद यह फैसला लिया गया है. तिवारी कहते हैं कि भाषा का प्रसार सिर्फ लिखने और पढ़ने से ही नहीं होता, बल्कि बोलने से होता है. इस शिविर के जरिए सांसदों को संस्कृत बोलने के लिए प्रेरित किया जाएगा. अगर सांसद संस्कृत बोलते दिखेंगे तो आम जन भी प्रेरित होंगे. तिवारी का कहना है कि जहां भी संस्कृत का हित जुड़ा है, वहां संस्कृत भारती खड़ी है.
आंबेडकर को भी था संस्कृत से प्रेम
संस्कृत भारती के अखिल भारतीय संगठन मंत्री दिनेश कामत का कहना है कि देश में आज तीन करोड़ छात्र संस्कृत पढ़ रहे हैं, फिर भी इस भाषा को पुनर्जीवत करने के लिए प्रयास जारी है. क्योंकि लोग इसे बोलते नहीं. संस्कृत में 45 लाख से अधिक पांडुलिपियां हैं. उन्होंने कहा कि भारत सिर्फ संसाधनों से ही विश्वगुरु नहीं बनेगा, उसे संस्कृत भी अपनानी होगी. जन-जन में इसका जागरण करना होगा.
डॉ. अंबेडकर ने भी संस्कृत को राष्ट्रभाषा घोषित करने की वकालत की थी. कुछ लोगों ने तब उनसे सवाल पूछा था कि आप तो दलित हैं, फिर कैसे ब्राह्मणों की भाषा की वकालत कर रहे हैं. इस पर उन्होंने कहा था कि संस्कृत जन-जन की भाषा है. अंबेडकर ने खुद से सवाल करने वालों से पूछा था- वाल्मीकि किस वर्ग के थे, उन्होंने भी तो संस्कृत में रामायण की रचना की थी? दिनेश कामत ने कहा कि संस्कृत ही ऐसी भाषा है जो पूरे देश को एक सूत्र में बांध सकती है. जो अतीत में संस्कृत का विरोध करते आए हैं, चाहे वे करुणानिधि रहे हों या जयललिता, उनके नाम भी संस्कृत में ही रहे.

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