रामलाल के हटते ही प्रभात झा का तंज; कुछ लोग इंसान होते हुए भी खुद को भगवान मानने लगते हैं

भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय संगठन महामंत्री रामलाल के हटते ही राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा का दर्द सामने आया है। उन्होंने परोक्ष रूप से रामलाल पर तंज कसते हुए कहा- ‘कुछ लोग इंसान होते हुए भी अपने को भगवान मानने लगते हैं। अच्छा व्यक्ति ‘संगठक’ वह है जो हर व्यक्ति को काम में जुटा ले। जो खुद भी काम नहीं करते और किसी को करने नहीं देते, वे लोग सदैव असफल होते हैं। इसलिए हमेशा अपने काम पर विश्वास रखें।’ झा ने रविवार को एक के बाद कई ट्वीट कर यह बात कही। झा के इस कथन को सियासी हलकों में रामलाल से जोड़कर देखा जा रहा है।

‘कम बोलना’ अच्छा : झा ने कहा- आपको अवसर मिल गया और उन्हें अवसर नहीं मिला। अगर आपको अवसर मिला है तो सभी की योग्यता का लाभ लेना चाहिए। ‘कम बोलना’ अच्छा है। कम बोलने से यह भी बात आती है कि इन्हें बोलना ही नहीं है और बोलना आता ही नहीं है।
 ज्यादा नहीं बोलने पर यह तो सोचें कि नहीं बोलने के चक्कर में सच का गला तो नहीं घोंटा जा रहा। आप जो आज हैं, कल नहीं थे। साथ ही कल भी नहीं रहेंगे, अतः आपका व्यवहार ही आपका जीवन भर साथ देगा। “आप’ और “हम’, “मैं’और “तू’ में अंतर है। एक में विनम्रता है तो दूसरे में अपनत्व। यह राग बिगड़ता है तो मानवीय संबंध बिगड़ जाते हैं। सामान्य तौर पर आप जब किसी निर्णायक पद पर आएं तो राजा हरिश्चंद्र के चरित्र को अवश्य अपने सामने रखें।
चुनाव में तवज्जो नहीं... इसलिए छलका दर्द : रामलाल के पास मप्र का प्रभार था और विधानसभा और लोकसभा चुनावों में झा को अपेक्षा के अनुरूप तवज्जो नहीं मिली। लोकसभा चुनावों में तो उन्हें पार्टी दफ्तर में ही बैठने के लिए कह दिया गया था।
डाल पर यदि जरूरत से ज्यादा फल आ जाएं तो वह टूट जाती है...
झा ने परोक्ष रूप से केंद्रीय नेतृत्व को भी निशाने पर लिया। उन्होंने कहा  कि जब व्यक्ति का नाम होता है, तभी बदनाम होने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। जिस डाल पर जरूरत से ज्यादा फल आ जाते हैं तो वह डाल टूट जाती है। ‘संतुलन’ शब्द को जीवन में सदैव समझते रहना चाहिए। ‘अवसर’ को बांटो पर चाटो नहीं। मन में कभी यह भाव नहीं आना चाहिए कि मैं ही समझदार हूं। आपके अलावा भी लोग समझदार हैं। 
दायित्व का मतलब ‘मैं ही हूं’ का भाव न हो
दूसरों को कष्ट देने वालों को जब खुद कष्ट होता है तभी उसे अपनी गलती समझ में आती है। इसीलिए किसी के सम्मान के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए। कल आपके साथ भी ऐसा हो सकता है। दायित्व’ का मतलब ‘मैं ही हूं’ का भाव नहीं होना चाहिए। ‘नाटक’ का पटाक्षेप अवश्य होता है। जीवन नाटक नहीं यथार्थ है। सभी को जीना है। जो नाटक करता है, वह यह नहीं समझता है कि समय आने पर नाटक की पोल खुल जाएगी। तब क्या होगा? 

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