कांग्रेस के लिए इतनी मुश्किल क्यों है अध्यक्ष की तलाश?

राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिए हुए करीब 6 हफ्ते का समय बीत चुका है. राहुल को मनाने की हर कोशिश नाकामयाब हो गई है. यहां तक कि राहुल गांधी ने साफ कर दिया है कि वो पार्टी का कोई बड़ा फैसला नहीं लेगें. पार्टी जल्द से जल्द अपना अध्यक्ष चुन ले. पार्टी के नेताओं के दवाब को कम करने के लिए राहुल ने अपने इस्तीफे को सार्वजनिक भी कर दिया है, लेकिन कांग्रेस अब तक किसी नए अध्यक्ष की तलाश नहीं कर पाई है.
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यहां तक कि पार्टी के रोजमर्रा के काम के लिए कार्यकारी अध्यक्ष भी नहीं चुना गया है. हर बार नया नाम मीडिया के सामने आता है, लेकिन किसी औपचारिक ऐलान से पहले ही दूसरा नाम मीडिया के सामने आ जाता है. ऐसे में सवाल ये है कि क्या कांग्रेस के लिए नया अध्यक्ष चुनना इतना मुश्किल है? या संकट के समय कांग्रेस के दिग्गज नेता पार्टी की कमान अपने हाथ में नही लेना चाहते.
क्या गांधी परिवार से बाहर निकलना है सबसे बड़ी चुनौती
जानकारों की माने तो समस्या नया अध्यक्ष चुनना नहीं है, बल्कि असली समस्या कांग्रेस की कमान को गांधी परिवार से बाहर ले जाने की है; क्योंकि प्रमोद कृष्णम् जैसे कई नेता कांग्रेस की कमान अभी भी गांधी परिवार के पास ही रखना चाहते हैं और ये नेता प्रियंका गांधी वाड्रा को अध्यक्ष बनाने चाहते हैं. प्रियंका को अध्यक्ष बनाने वाले भले ही खुलकर बोलने से बच रहे हों, लेकिन जब भी उनके विरोधी खेमे के किसी नेता का नाम अध्यक्ष पद क लिए सामने आता है तो वो प्रियंका के नाम के बहाने उसका रास्ता रोक देते हैं.
अनुभव और युवा जोश के बीच में फंसी है कांग्रेस
कांग्रेस के अध्यक्ष चुनने के रास्ते में दूसरी बड़ी समस्या ये है कि कांग्रेस के शीर्ष नेता अभी ये नहीं तय कर पा रहे हैं कि कांग्रेस की कमान अनुभवी हाथों में दी जाए या किसी युवा चेहरे को. इसलिए अशोक गहलोत, सुशील कुमार शिंद, मल्लिकार्जुन खड़गे से होता हुआ अटकलों का दौर सचिन पायलट तक पहुंच गया है, लेकिन पार्टी अब तक इस पर कोई फैसला नहीं ले पाई है.
बिना अध्यक्ष पार्टी का लगातार हो रहा है नुकसान
बिना पार्टी अध्यक्ष के कांग्रेस को लगातार नुकसान हो रहा है. कर्नाटक में कांग्रेस समर्थित जेडीएस की सरकार संकट में है. कांग्रेस के विधायकों की संख्या रोज कम हो रही है. गोवा में कांग्रेस के 10 विधायक पार्टी का साथ छोड़ बीजेपी में शामिल हो गए, लेकिन उनसे बात कर कोई ठोस आश्वासन देने या कोई कड़ा फैसला लेने से राज्य नेतृत्व बच रहा है; क्योंकि कांग्रेस में इस तरह के फैसले हमेशा पार्टी अध्यक्ष की ओर से लिए जाते हैं और फिलहाल ये कुर्सी खाली पड़ी है.

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