निर्मला सीतारमण आप महिलाओं की हीरो बनते-बनते रह गईं..

यकीन हो तो कोई रास्ता निकलता है, हवा की ओट लेकर भी चिराग जलता है !
ये वो शब्द हैं जिसे वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लोकसभा में Union Budget 2019 पेश करने से पहले बोले थे. इन शब्दों से ये बताने की कोशिश की गई कि विश्वास से सब कुछ संभव है. जाहिर हैं आम भारतीय हों या कारोबारी, सभी का विश्वास बजट पर ही टिका होता है, क्योंकि बजट पर लोगों का आत्मविश्वास भी टिका होता है.
सबके साथ-साथ महिलाओं को भी बजट का काफी इंतजार रहता है, क्योंकि उनके कांधों पर भी घर को अच्छी तरह चलाने की पूरी जिम्मेदारी रहती है. लिहाजा क्या कितना महंगा और क्या कितना सस्ता होगा उसपर महिलाओं की भी उतनी ही रुचि होती है.
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मोदी सरकार 2.0 का पहला बजट लोकसभा में पेश करते हुए निर्मला सीतारमण ने कहा कि हमारी अर्थव्यवस्था दुनिया की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है. जो अगले कुछ वर्षों में 5 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगी. लेकिन भारत की आम महिलाओं को देश की अर्थव्यवस्था से उतना फर्क नहीं पड़ता जितना कि घर की अर्थव्यवस्था से पड़ता है. इसलिए निर्मला सीतारमण का भाषण बहुत गौर से सुन रही महिलाएं थोड़ा निराश जरूर हुईं.
निर्मला सीतारमण ने कहा कि देश में नारी तू नारायणी की परंपरा रही है. उन्होंने इस बात पर भी काफी जोर दिया कि नारी की स्थिति को सुधारे बिना संसार के कल्याण का कोई मार्ग नहीं है. सरकार मानती है कि महिलाओं की भागीदारी से देश विकास कर सकता है. लिहाजा अपने बजट में निर्मला सीतारमण ने महिलाओं को सिर्फ एक चीज दी है वो है उन्हें सशक्त करना. यानी महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना. इसीलिए बजट का ज्यादातर फोकस स्टार्टअप पर ही रहा.
वो बातें जो महिलाओं के लिए बजट में कही गईं-
- जनधन खाताधारक महिलाओं को 5000 रुपये ओवरड्राफ्ट की सुविधा- जनधन खाता धारक महिला खाते में एक भी पैसा न होने पर भी उससे पैसे निकाल सकती थीं. अब तक महिलाएं अपने जनधन खाते से सिर्फ 2 हजार रुपये ही निकाल सकती थीं, अब उसे बढ़ाकर 5 हजार रुपये कर दिया गया है. इसे ही ओवरड्राफ्ट की सुविधा कहते हैं.
- मुद्रा स्कीम के अंतर्गत महिलाओं के लिए अलग से एक लाख रुपये के मुद्रा लोन की व्यवस्था की जाएगी. लेकिन यह सुविधा उन ही महिलाओं को दी जाएगी जो SHG की मेंबर होंगी. वो भी किसी एक को.
यानी सिर्फ महिला इंटरप्रीनॉर को बढ़ावा दिया गया है. बजट में कामकाजी महिलाओं को अतिरिक्त टैक्स में कोई राहत नहीं दी गई है. और उनका क्या जो न ही बिजनेस करती हैं और न ही नौकरी. सिर्फ पति के वेतन से घर चलाने वाली महिलाओं को तो कुछ मिला ही नहीं.
गरीब महिलाओं के संघर्ष अब भी वहीं पुराने
मेरे घर काम करने वाली शांति ने मोदी सरकार को वोट किया था क्योंकि प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत उसका घर बन रहा था. लेकिन अपना घर जितना जरूरी है उतना ही जरूरी है घर को चलाया जाना. वो तो घर-घर काम करके अपना घर चला रही है लिहाजा उसके लिए महंगाई सबसे बड़ा मुद्दा था. वो प्राइवेट स्कूल में अपनी बेटी के दाखिले के लिए परेशान थी. उसे बजट से सिर्फ इतनी उम्मीद थी कि उसकी मूलभूत जरूरतें पूरी हो जाएं.
उसके पास उज्जवला स्कीम के तहत गैस सिलेंडर तो है, लेकिन महंगी गैस को लेकर वो अब भी चूल्हा जलाती है. यानी सरकार ने लोगों तक स्कीम तो पहुंचाई है, लेकिन महंगाई इतनी है कि वो उसका लाभ नहीं उठा पा रहे.
शिक्षा के नाम पर सिर्फ नीति
शांति की बेटी प्राइवेट स्कूल में पढ़ रही थी, लेकिन अब 8वीं क्लास में दाखिले के लिए अच्छे खासे पैसे लग रहे हैं. बजट ने इनका तो कोई भला नहीं किया. शिक्षा के नाम पर उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति की घोषणा तो कर दी लेकिन स्कूलों की फीस पर कोई लगाम नहीं लगाई. यानी गरीब बच्चों की शिक्षा के ऊंचे ख्वाब न देखें और सिर्फ सरकारी स्कूलों में ही बच्चों को पढ़ाएं.
महिला स्वास्थ्य को अनदेखा किया गया
महिलाओं के लिए स्वास्थ ऐसी चीज है जिसपर वो बहुत जरूरी हुआ तभी ध्यान देती है. महिला स्वास्थ का मामला हमेशा अनदेख रहता है. गर्भवती महिलाओं के लिए तो सरकार योजनाएं चलाती है जिससे Maternal mortality rate में तो गिरावट आई है लेकिन बाकी महिलाओं के लिए कोई लाभ नहीं है. हर 8 मिनट में एक महिला सर्विकल कैंसर से मरती है. 2018 में 87,090 महिलाओं की मौत ब्रेस्ट कैंसर से हुई है. सरकार से उम्मीद थी कि वो महिलाओं को स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया करवाए जिससे वो अपने स्वास्थ्य को लेकर भी सजग रहें. महंगे इलाज, महंगी दवाइयां की वजह से महिलाएं अस्पताल तक नहीं जातीं.
लगातार गिर रहा है महिला वर्क फोर्स
भारत की महिलाएं सरकार से बराबरी का मौका चाहती हैं. सरकार भी चाहती है कि वो आत्मनिर्भर बनें लेकिन फायदे सिर्फ स्टार्टअप और लघु उद्योग करने वाली महिलाओं को दिए गए. जो महिलाएं सामान्य नौकरी करके आत्म निर्भर होना चाहती हैं उनके लिए संघर्ष अब भी वैसे ही हैं.
विश्व बैंक की 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, 2018 में भारत में महिलाओं की श्रम बल भागीदारी दर (LFPR) 26.97 थी, जबकि विश्व की औसत दर 48.47 थी. 2005 में महिलाओं की श्रम बल भागीदारी दर 36.78 प्रतिशत के उच्च स्तर पर थी जो तब से लगातार गिर रही है.
जो नौकरी कर रही हैं वो बच्चे हो जाने के बाद नौकरी छोड़ देती हैं क्योंकि सरकार की तरफ से ऐसी कोई सुविधा नहीं है. आंकड़े बताते हैं कि 43 प्रतिशत महिलाएं बच्चे होने के बाद नौकरी छोड़ देती हैं. महिलाएं आत्मनिर्भर बनें ये तो सही है लेकिन वो आत्मनिर्भर बनी रहें इसके लिए भी सरकार को सोचना चाहिए.
महिलाएं समान वेतन की बात करती हैं. सर्वे कहता है कि भारत में पुरुष एक घंटे में 242 रुपए कमाता है लेकिन महिला को 46 रुपए कम मिलते हैं. यानी महिलाएं पुरुषों से 19 प्रतिशत कम कमाती हैं. लेकिन जब महिलाएं वर्क फोर्स से ही नदारत होंगी तो समान वेतन के लिए लड़ेंगी भी कैसे.
सुरक्षा के नाम पर तो कुछ है ही नहीं
महिला सुरक्षा एक ऐसा मामला है जिसपर चर्चा तो बहुत होती है लेकिन काम कुछ नहीं. एक महिला होने के नाते निर्मला सीतारमण से उम्मीद की जा रही थी कि वो इस ओर थोड़ा ध्यान और देतीं. क्योंकि पिछले कुछ सालों में होने वाली घटनाओं से महिलाओं में असुरक्षा की भवना बढ़ी है. आत्मनिर्भर होने के बावजूद भी महिलाओं का ये डर खत्म नहीं होता. लेकिन इसके लिए भी कुछ नहीं किया गया. महिलाओं की सुरक्षा उतनी ही असुरक्षित रहेगी जितनी इतने सालों से है.
तो इस बजट के बाद जिन महिलाओं में खुशी है वो हैं बिजनेस वूमन. हालांकि ये भी सच है कि स्टार्टअप इंडिया का फायदा महिलाओं को बहुत मिला है. महिलाओं ने अपना काम शुरू किया है. लेकिन सरकार को क्यों ये लगता है कि महिलाओं की समस्याएं सिर्फ स्टार्ट अप ही सुलझा सकते हैं. नौकरीपेशा महिलाओं को टैक्स में भी अलग से कोई छूट नहीं दी गई, जबकि महिलाओं को थोड़ी सी भी छूट दी जाती तो वो बहुत कुछ कर सकती थीं. महिलाओं ने जो उम्मीदें निर्मला सीतारमण से लगाई थीं फिलहाल तो वो उसमें सफल नहीं हो सकीं. नारी तू नारायणी करकर उन्होंवे महिलाओं को सिर्फ बहलाने की कोशिश की है. क्योंकि शांति के घर का बजट तो फिलहाल अशांत ही रहेगा.

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