बजट से पहले जानिए इससे जुड़े शब्दों के मतलब

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के दूसरे कार्यकाल का पहला बजट वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 5 जुलाई को पेश करेंगी। बजट से हर किसी ने कुछ ना कुछ उम्मीदें लगा रखी हैं। बजट को आप बारिकी से समझ सकें इसके लिए आवश्यक है कि आप इसे जुड़े कुछ शब्दों को अच्छी तरह समझ लें। आइए बजट पेश होने से पहले इससे जुड़े कुछ खास शब्दों के मतलब के बारे में जानते हैं... 
बजट
एक वित्तीय वर्ष में सरकार द्वारा अर्जित किए गए रेवेन्यू और कुल खर्च की विस्तृत जानकारी को बजट कहते हैं। जब एक साल में अर्जित हुआ मौजूदा रेवेन्यू कुल मौजूदा खर्च के बराबर है तो इसे 'बैलेंस्ड' कहा जाता है। जब केंद्र सरकार के अर्जित रेवेन्यू से ज्यादा खर्च होता है तो इसे राजस्व घाटा बताया जाता है। जब एक वित्तीय वर्ष में कुल खर्च, इसकी कुल सालाना आमदनी से ज्यादा होता है, तो इसे राजघोषीय घटा कहते हैं। इसमें कर्ज शामिल नहीं होता है। 
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फाइनैंस बिल (वित्त विधेयक)
यूनियन बजट को पेश करने के तुरंत बाद जो बिल पास किया जाता है, उसे वित्त विधेयक कहते हैं। यूनियन बजट में नए टैक्स, टैक्स हटाने, टैक्स में सुधार जैसे काम शामिल रहते हैं। 

फिस्कल पॉलिसी (राजकोषीय नीति)
आमदनी और खर्च के स्तरों को बांटने के लिए सरकार कई तरह के ऐक्शन लेती है। वित्तीय नीति को बजट के जरिए लागू किया जाता है और इसके द्वारा सरकार अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकती है। 
फिस्कल कंसॉलिडेशन
इसका उद्देय सरकार के घाटे और कर्ज को कम करना होता है। 

रेवेन्यू डेफिसिट (राजस्व घाटा)
कुल राजस्व और कुल व्यय के बीच जो फर्क होता है, उसे रेवेन्यू डेफिसिट कहते हैं। यह सरकार की कुल आमदनी और खर्च के बीच अंतर होता है। 

अग्रीगेट डिमांड (कुल मांग)
किसी इकॉनमी में सामानों और सेवाओं की कुल संख्या को अग्रीगेट डिमांड (कुल मांग) कहते हैं। 

बैलेंस ऑफ पेमेंट
फॉरन एक्सचेंज मार्केट में किसी देश की करंसी की कुल मांग और सप्लाइ के बीच के फर्क को बैलेंस ऑफ पेमेंट कहा जाता है। 
डायरेक्ट टैक्स (प्रत्यक्ष कर)
किसी व्यक्ति या संस्थान की आय पर जो टैक्स लगते हैं, वो डायरेक्ट टैक्स की श्रेणी में आते हैं। इनमें इनकम टैक्स, कॉर्पोरेट टैक्स और इनहेरिटेंस टैक्स शामिल हैं 

इनडायरेक्ट टैक्स (अप्रत्यक्ष कर)
ऐसा टैक्स जिसे उपभोक्ता सीधे जमा नहीं कराते, लेकिन आपसे सामानों और सेवाओं के लिए इस टैक्स को वसूला जाता है। पिछले साल जुलाई में एक नया टैक्स स्ट्रक्चर, GST पेश किया गया था। देश में तैयार, आयात व निर्यात किए गए सभी सामनों पर जो टैक्स लगते हैं उन्हें इनडायरेक्ट टैक्स कहते हैं। इनमें सीमा शुल्क (कस्टम ड्यूटी) और उत्पाद शुल्क (एक्साइज ड्यूटी) भी शामिल है। 

इनकम टैक्स
सैलरी, निवेश, ब्याज जैसे विभिन्न साधनों से होने वाली इनकम अलग-अलग स्लैब के तहत टैक्सेबल होती है। यानी इनकम पर जो टैक्स लिया जाता है, उसे इनकम टैक्स (आयकर) कहते हैं। 
ग्रॉस डोमेस्टिक प्रॉडक्ट (जीडीपी)
कन्ज्यूमर के नजरिए से देखें तो जीडीपी आर्थिक उत्पादन के बारे में बताता है। इसमें निजी खपत, अर्थव्यवस्था में सकल निवेश, सरकारी निवेश, सरकारी खर्च और नेट फॉरन ट्रेड (आयात और निर्यात का फर्क) शामिल होता है। किसी देश में स्टैंडर्ड ऑफ लिविंग मापने के लिए जीडीपी को पैमाना माना जाता है। 

मॉनिट्री पॉलिसी (मौद्रिक नीति)
मौद्रिक नीति ऐसी प्रक्रिया है, जिसकी मदद से रिजर्व बैंक अर्थव्यवस्था में पैसे की आपूर्ति को नियंत्रित करता है। मौद्रिक नीति से कई मकसद साधे जाते हैं. इनमें महंगाई पर अंकुश, कीमतों में स्थिरता और टिकाऊ आर्थिक विकास दर का लक्ष्य हासिल करना शामिल है। रोजगार के अवसर तैयार करना भी इसके उद्देश्यों में से एक है। अर्थव्यवस्था में नकदी की आपूर्ति पर बैंकों के कैश रिजर्व रेशियो या ओपन मार्केट ऑपरेशन से सीधे असर डाला जा सकता है। रीपो रेट और रिवर्स रीपो रेट के जरिए कर्ज की लागत को बढ़ाया या घटाया जा सकता है। 
नैशनल डेट (राष्ट्रीय कर्ज)
केंद्र सरकार के राजकोष में शामिल कुल कर्ज को राष्ट्रीय कर्ज कहते हैं। बजट घाटों को पूरा करने के लिए सरकार इस तरह के कर्ज लेती है। 

गवर्नमेंट बॉरोइंग (सरकारी उधार)
यह वह धन है, जिसे सरकार सार्वजनिक सेवाओं पर होने वाले खर्च को फंड करने के लिए उधार लेती है। 

डिसइन्वेस्टमेंट (विनिवेश)
सार्वजनिक उपक्रमों में सरकारी हिस्सेदारी बेचने की प्रक्रिया विनिवेश कहते हैं। 

इन्फ्लेशन (महंगाई)
कुछ समय के लिए जब किसी इकॉनमी में सामानों और सेवाओं की कीमतों का दाम बढ़ जाता है, तो उसे महंगाई कहते हैं। जब आम वस्तुओं के दाम बढ़ते हैं, तभी करंसी की हर यूनिट से कुछ सामान और सेवाएं खरीदी जाती हैं। भारत में अभी होलसेल प्राइस इंडेक्स (WPI) और कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स (CPI) के जरिए महंगाई को मापा जाता है। 

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