कांग्रेस की पराजय के पीछे क्या कारण हैं?
लोकसभा चुनाव के नतीजे आ जाने के बाद देश में दिलचस्प बहस शुरू हो गई है कि कांग्रेस का क्या हो. कुछ लोग पार्टी की समाप्ति चाहते हैं. कई दूसरे लोग राहुल गांधी को उसके अध्यक्ष पद से हटाना चाहते हैं.
इनमें अधिकतर ऐसे हैं, जिन्होंने इस पार्टी के साथ काम नहीं किया है. पार्टी के भीतर ऐसी आवाज उठे तो इसका कुछ मतलब हो सकता है, क्योंकि सदस्यों को अपनी पार्टी के बने या बने नहीं रहने और पार्टी के अध्यक्ष को बदलने के बारे में राय रखने का पूरा हक है. लेकिन पार्टी के बाहर से ऐसी आवाज लोकतंत्र की सामान्य समझ के खिलाफ है.
यह मजेदार है कि संघ परिवार का विरोधी बताने वाले कांग्रेस के नष्ट करने की बात करें. जाहिर है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दोबारा सत्ता में आने से देश का सेकुलर और प्रगतिशील तबका निराश है.
लेकिन इस निराशा में उसे अमर्त्य सेन की इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि मोदी ने सत्ता की लड़ाई जीती है, विचारधारा की लड़ाई नहीं.
वह अगले पांच साल इस लड़ाई को जीतने की कोशिश करेंगे और कांग्रेस की विचारधारा पर हमले करेंगे, क्योंकि वामपंथ को विदेशी विचार बताकर उस पर हमला आसान है, लेकिन कांग्रेस की विचारधारा पर हमला आसान नहीं है. यह यहां की मिट्टी में पैदा हुई है और इस विचारधारा के लिए लोगों ने ढेरों कुर्बानियां दी हैं.
भाजपा कांग्रेस को क्यों खत्म करना चाहती है? क्या वह चाटुकारिता पर आधारित दरबारी संस्कृति को खत्म करना चाहती है? क्या वह वंशवाद के खिलाफ है? गहराई से जांच करने पर यह सच नहीं लगता है.
देश की कई पार्टियां हैं, जहां दरबारी संस्कृति है और जो परिवार की जागीर बन गई हैं. इनमें समाजवादी पार्टी, राजद से लेकर शिवसेना, डीएमके, टीआरएस, लोक जनशक्ति पार्टी और तेलुगू देसम जैसी पाटियां हैं.
यही नहीं कुछ पार्टियां हैं जो अभी सीधे-सीधे वंशवाद का इजहार नहीं करती हैं, लेकिन एक व्यक्ति की ओर से संचालित हैं. इन पार्टियों में आम आदमी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस और बहुजन समाज जैसी पाटियों को गिनाया जा सकता है.
निर्णय की प्रक्रिया के एक-दो आदमी के हाथ में केंद्रित होने का उदाहरण तो भारतीय जनता पार्टी में भी दिखाई देता है. यहां भी दरबार वाली स्थिति है. पार्टी के सभी निर्णय अमित शाह और नरेंद्र मोदी लेते हैं.
यह जरूर है कि वे संघ परिवार की सहमति के बगैर ऐसा नहीं कर सकते. भाजपा में एक महासचिव और संगठन मंत्री आरएसएस की ओर से नियुक्त किए जाते हैं. यह दिलचस्प है कि भाजपा कांग्रेस को छोड़कर परिवार की जागीर बनी अन्य पार्टियों के विनाश की कामना नहीं करती है. वह वंशवाद के खात्मे की कसम भी नहीं खाती है और अपनी पार्टी में ही इसके खिलाफ कोई सख्त कदम नहीं उठाती.