लोकसभा चुनाव में दलितों का साथ मिलने से जगी भाजपा को उम्मीद, मिल सकता है ये फायदा
राजधानी की 70 में से 12 विधानसभा क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। दिल्ली की सत्ता तक पहुंचने के लिए इन क्षेत्रों में जीत जरूरी है और भाजपा की यह कमजोर कड़ी रही है। मुस्लिम बहुल नौ सीटों के साथ ही 12 आरक्षित क्षेत्रों में कमजोर प्रदर्शन की वजह से वह दिल्ली फतह करने से चूक जाती है। पार्टी 1998 से विपक्ष में रहने को मजबूर है, लेकिन इस बार लोकसभा चुनाव में दलितों ने जिस तरह से अपना समर्थन भाजपा को दिया है उससे पार्टी के नेताओं को 21 वर्षो का वनवास खत्म होने की उम्मीद जग गई है।
वर्ष 2008 और 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 12 में से सिर्फ दो-दो आरक्षित सीटों पर जीत मिली थी। जबकि पिछले विधानसभा चुनाव में उसे एक भी सीट नसीब नहीं हुई थी। परंपरागत रूप से दिल्ली में दलित कांग्रेस के समर्थक माने जाते रहे हैं जिनके बदौलत वह 15 वर्षो तक यहां की सत्ता पर काबिज रही। इनका साथ छूटते ही कांग्रेस भी सत्ता से दूर चली गई। वर्ष 2008 में कांग्रेस को नौ आरक्षित सीटों पर जीत मिली थी और प्रदेश में उसकी सरकार बनी थी।
वहीं, वर्ष 2013 में उसका यह मजबूत वोट बैंक आम आदमी पार्टी (आप) के पाले में चला गया था। आप नौ आरक्षित सीटों पर जीत हासिल कर दिल्ली की सत्ता पर काबिज हुई थी। पिछले विधानसभा चुनाव में तो उसने इन सभी सीटों पर जीत हासिल की थी। लेकिन, अब दलित मतदाता आप को छोड़कर भाजपा के साथ खड़े होने लगे हैं। लोकसभा चुनाव के आंकड़े भी इसी ओर इशारा कर रहे हैं।