सरकार कोई भी बने, अर्थव्यवस्था की इन 7 चुनौतियों का करना पड़ेगा सामना
लोकसभा चुनाव के नतीजे आगामी 23 मई को आने वाले हैं. इन नतीजों के साथ ही नई सरकार के गठन की कवायद भी शुरू हो जाएगी. लेकिन नई सरकार के सामने आर्थिक मोर्चे पर चुनौतियां कम नहीं हैं. इस सरकार को महंगाई से लेकर नौकरी संकट तक की मुश्किलों से निपटना होगा. दरअसल, बीते कुछ समय से भारतीय इकोनॉमी की सेहत ठीक नजर नहीं आ रही है. आइए जानते हैं कि नई सरकार के सामने क्या हैं चुनौतियां...
1. महंगाई कंट्रोल से बाहर!
अगर महंगाई दर के आंकड़ों पर गौर करें तो यह कंट्रोल से बाहर होता जा रहा है. पिछले कुछ महीनों में कई खाद्य वस्तुओं की कीमतें बढ़ने लगी हैं. अप्रैल में खाद्य वस्तुओं के दाम बढ़ने से खुदरा महंगाई दर बढ़कर 2.92 फीसदी हो गई. जबकि इससे पिछले महीने मार्च में खुदरा महंगाई दर 2.86 फीसदी दर्ज की गई थी. इस लिहाज से 0.06 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. हालांकि थोक महंगाई में थोड़ी राहत जरूर मिली है लेकिन इसके बावजूद अगले महीनों में महंगाई के और बढ़ने की आशंका व्यक्त की जा रही है.
2.ऑटो इंडस्ट्री का हाल बेहाल
देश की ऑटो इंडस्ट्री इन दिनों बुरे दौर से गुजर रही है. पिछले तीन महीनों से ऑटो प्रोडक्शन और सेल्स में जबरदस्त गिरावट आई है. लगभग 8 साल बाद ऑटो इंडस्ट्री की हालत इतनी पतली हुई है. अहम बात यह है कि ऑटो इंडस्ट्री के हर कैटेगरी में बिक्री में कमी आई है. इंडस्ट्री के जानकारों का कहना है कि पिछले 10 साल में हमने ऐसा नहीं देखा कि सभी श्रेणियों में बिक्री में गिरावट दर्ज की गई हो. सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (SIAM) के महानिदेशक विष्णु माथुर का कहना है कि अगर हालात यही रहें तो नौकरियों पर भी संकट के बादल मंडरा सकते हैं.
3. शेयर बाजार की सुस्ती
भारतीय शेयर बाजार लगातार लाल निशान पर बंद हो रहा है. सोमवार को लगातार नौवां दिन था जब शेयर बाजार गिरावट के साथ बंद हुआ. करीब 8 साल बाद यह पहली बार है जब बाजार इतना पस्त हुआ है. इस 9 दिन में सेंसेक्स 2000 अंक तक टूट गया है जबकि निफ्टी भी करीब 700 अंक लुढ़का है. शेयर बाजार के इस बुरे हालात के बीच निवेशक भारतीय बाजार में पैसे लगाने से बच रहे हैं. इस वजह से निवेशकों के 8.56 लाख करोड़ रुपये डूब गए हैं.
4. नौकरियों का संकट
नौकरियों के सृजन के मोर्चे पर भी गति काफी धीमी है. ईपीएफओ के आंकड़ों के मुताबिक, अक्टूबर 2018 से अब तक औसत मासिक नौकरी सृजन में 26 फीसदी की गिरावट आई है. सीएमआईई के आंकड़ों की बात करें कि 2017-18 में कर्मचारियों को मिलने वाले वेतन में औसतन 8.4 फीसदी की बढ़त हुई है. यह पिछले 8 साल में सबसे कम है. साल 2013-14 में यह 25 फीसदी तक था.
5. अर्थव्यवस्था के अन्य इंडिकेटर
साल 2018-19 में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में बढ़त सिर्फ 6.98 फीसदी रहने का अनुमान है, जबकि 2015-16 में यह करीब 8 फीसदी रह गया है. ग्रॉस वैल्यू एडेड (GVA) की बात करें तो यह 8.03 फीसदी के मुकाबले घटकर 6.79 फीसदी रह गया है.
औद्योगिक उत्पादन को दर्शाने वाले सूचकांक आईआईपी में दिसंबर, 2018 की तिमाही में 3.69 फीसदी की बढ़त हुई जो कि पिछले 5 तिमाहियों में सबसे कम है. जनवरी में तो आईआईपी में महज 1.79 फीसदी की ही बढ़ोतरी दर्ज की गई. फरवरी में आईआईपी में सिर्फ 0.1 फीसदी की बढ़त हुई जो पिछले 20 महीने में सबसे कम है.
साल 2018-19 में कॉरपोरेट जगत की बिक्री और ग्रॉस फिक्स्ड एसेट भी पांच साल में सबसे धीमी गति से बढ़ी है. इसी तरह औद्योगिक गतिविधियों का एक सूचकांक बिजली उत्पादन भी होता है. साल 2018-19 में बिजली उत्पादन में सिर्फ 3.56 फीसदी की बढ़त हुई जो पांच साल में सबसे कम है.
6. पेट्रोल-डीजल के भाव
आमतौर पर अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें बढ़ती हैं तो पेट्रोल और डीजल महंगा हो जाता है. हालांकि बीते कुछ दिनों से हालात ठीक उलटा हैं. कच्चे तेल की कीमतों बढ़ोतरी के बावजूद पेट्रोल और डीजल सस्ते हो रहे हैं. ऐसा माना जा रहा है कि चुनावों को देखते हुए देश में पेट्रोल-डीजल के दाम नहीं बढ़ रहे हैं, यानी चुनावों के बाद इनकी कीमतों में बड़ा इजाफा हो सकता है. ईंधन की कीमतों के बढ़ने खाद्य वस्तुओं की कीमतें और बढ़ जाएंगी.
7. निर्यात और निजी निवेश
निर्यात और निजी निवेश की हालत पिछले कई साल से खराब है. वित्त वर्ष 2018-19 में निजी निवेश प्रस्ताव सिर्फ 9.5 लाख करोड़ रुपये के हुए, जो कि पिछले 14 साल (2004-05 के बाद) में सबसे कम है.