PM मोदी को क्लीन चिट देते वक्त 2 मामलों में एकमत नहीं था EC

अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, इन दोनों मामलों में एक इलेक्शन कमिश्नर की राय चुनाव आयोग के आखिरी फैसले से अलग थी. इन मामलों में फैसला लेने की जिम्मेदारी चीफ इलेक्शन कमिश्नर सुनील अरोड़ा सहित दो इलेक्शन कमिश्नरों अशोक लवासा और सुशील चंद्र के पास थी.
बता दें कि ऐसे कम ही मामले सामने आए हैं, जब किसी फैसले को लेकर चुनाव आयोग में बंटी हुई राय देखने को मिली हो. साल 2009 में तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से जुड़े ऐसे ही एक मामले में चुनाव आयोग बंटा दिखा था. उस दौरान आयोग ने इस बात का फैसला करने के लिए अपनी बंटी हुई राय राष्ट्रपति को भेजी थी कि क्या सोनिया गांधी की संसद की सदस्यता इस आधार पर रद्द कर दी जाए कि उन्होंने एक विदेशी अवॉर्ड लिया.

चुनाव आयोग अब तक वर्धा, लातूर और बाड़मेर भाषण मामलों में पीएम मोदी को क्लीन चिट दे चुका है. इनमें से वर्धा और लातूर मामलों पर चुनाव आयोग ने अपने एक कमिश्नर की राय से अलग जाकर फैसला किया है. लातूर वाले भाषण को तो आयोग के लोकल अफसरों ने भी चुनाव आयोग के निर्देशों के खिलाफ माना था.

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