डीजल रेल इंजन कारखाना कर्मी बोले- सरकार ने दिया धोखा, निगम बना तो कर लेंगे आत्मदाह

‘डीरेका (डीजल रेल इंजन कारखाना, डीएलडब्ल्यू) निगमीकरण होने से सबसे ज्यादा मार महिलाओं को पड़ेगी. निगमीकरण के बाद हम अपने बच्चों को कैसे पढ़ा पाएंगे? स्कूल में फीस इतनी बढ़ गई है, मेडिकल चिकित्सा इतनी महंगी हो गई है. ये सब छोटी-मोटी बातें नहीं हैं. जब सब खत्म हो जाएगा तो हम क्या करेंगे? सरकार को तो हम यही चेता रहे हैं कि जब वो कुछ नहीं करेंगे तो महिलाएं संसद के सामने जाकर आत्मदाह करेंगी क्योंकि दुनिया जानती है कि स्त्रियां जब अपने पर आती हैं तो बहुत बड़ा संघर्ष होता है.’ ये कहना है डीरेका की महिला कर्मचारी विनीता तिवारी का.
आगे बोलते हुए वह कहती हैं, ‘इतिहास गवाह है कि भारत में जौहर औरतों ने ही किया था. इसलिए अगर सरकार को ये बात समझ में नहीं आती है तो बहुत सारी स्त्रियां संसद के सामने जाकर आत्मदाह करेंगी, तब शायद सरकार को जवाब देते नहीं बनेगा.’
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आपको बता दें कि विनीता लगभग 12 साल से डीरेका में काम कर रही हैं. इसी काम को करते हुए वो अपने बच्चों का भविष्य तैयार कर रही हैं. उनके अलावा परिवार में कमाने वाला कोई नहीं है.
मंगलवार की शाम बीएचयू गेट भारत सरकार होश में आओ, रेल बेचना बंद करो, देश बेचना बंद करो, मोदी का राष्ट्रप्रेम धोखा है असली मकसद देश को बेचना है, साम्राज्यवाद हो बर्बाद, पूंजीवाद मुर्दाबाद… जैसे तमाम नारों से लोगों की आवाज गूंज उठी. डीरेका के निगमीकरण के प्रस्ताव के खिलाफ सैकड़ों कर्मचारियों ने बीएचयू गेट पर इकट्ठा होकर हुंकार भरी. इस दौरान डीरेका कर्मचारियों को कई संस्थाओं के अलावा बीएचयू के छात्र-छात्राओं का भी साथ मिला.
गौरतलब है कि रेलवे मंत्रालय ने रेलवे बोर्ड को उत्पादन इकाइयों के निजीकरण को लेकर विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने और रेल संगठनों से बातचीत करने के लिए 100 दिन का समय दिया है. रेलवे ने डीरेका समेत देश में रेलवे की सात उत्पादन इकाइयों इंट्रीगल कोच फैक्ट्री, चेन्नई, रेल कोच फैक्ट्री-कपूरथला, डीजल लोकोमोटिव वर्क्स-वाराणसी (डीरेका), मॉडर्न कोच फैक्ट्री-रायबरेली, चितरंजन लोकोमोटिव वर्क्स-चितरंजन, डीजल लोको मॉडर्नाइजेशन वर्क्स-पटियाला को निगम बनाने का फैसला किया है.
बोर्ड के सर्कुलर में सबसे नई उत्पादन इकाई रायबरेली कोच फैक्ट्री के निजीकरण की संभावना तलाशने का निर्देश दिया गया है.
बोले- सरकारी से बन जाएंगे निजी कंपनी के कर्मी
आंदोलन कर रहे डीरेका के कर्मचारियों का कहना है कि अगर ऐसा होता है तो इन जगहों पर काम कर रहे सभी रेल कर्मचारी सरकारी सेवा में न होकर निजी कंपनी के कर्मचारी बन जाएंगे. इतना ही नहीं, यहां भारतीय रेल के महाप्रबंधक की जगह प्राइवेट कंपनी के सीएमडी बैठेंगे. इसकी शुरुआत रायबरेली कारखाने से हो रही है.
इसको लेकर मंगलवार को भी डीरेका कर्मचारियों ने बीएचयू गेट से रविदास गेट तक जमकर विरोध प्रदर्शन किया और सरकार विरोधी नारे लगाए. कर्मचारियों ने सरकार के खिलाफ नारे लगाते हुए कहा कि सरकार कर्मचारियों के भविष्य से खिलवाड़ कर रही है.
वहीं पिछले दो महीने (लगभग 65 दिन) से चल रहा कर्मचारियों का यह विरोध-प्रदर्शन हर दिन बढ़ रहा है लेकिन इन कर्मचारियों की सुनवाई करने वाला कोई नहीं है.
बीएचयू गेट पर धरने में शामिल डीरेका की महिला कर्मी सुनीता बताती हैं कि निगमीकरण करके सरकार इसे प्राइवेट कंपनी के हाथ में देना चाहती हैं. प्राइवेट कंपनी के अलग नियम होंगे, उनका काम करने का तरीका अलग होगा. न जाने महिलाओं के लिए कैसी व्यवस्था होगी? आगे बोलते हुए सुनीता कहती हैं कि जब हम अच्छा काम कर रहे हैं तो निगमीकरण की जरूरत क्यों?
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डीरेका को हासिल है गौरव, मिले हैं अवार्ड
बता दें कि डीरेका देश की सबसे प्रतिष्ठित रेल इंजन बनाने वाली कंपनी है. विश्व में पहली बार डीजल रेल इंजन को इलेक्ट्रिक इंजन में बदलने का गौरव भी डीएलडब्ल्यू को प्राप्त है. इसको तीन बार रिकॉर्ड इंजन उत्पादन का भी अवार्ड मिल चुका है.
इसी धरने में शामिल डीरेका की महिला कर्मचारी शैली बताती हैं, ‘अभी हमारे पास नौकरी है. हमें मालूम है कि हमारी नौकरी सुरक्षित है. हमारे खिलाफ (महिलाओं के) कुछ बुरा होता है या हमारा शोषण होता है हम उसकी शिकायत कर सकते हैं. लेकिन जब इसका निगमीकरण हो जाएगा तो हमारी नौकरी प्राइवेट हो जाएगी, हमारे साथ कुछ बुरा हुआ तो हम बोल नहीं पाएंगे, हमें अपनी नौकरी जाने का डर रहेगा. इस तरह से महिलाओं के खिलाफ अत्याचार बढ़ सकता है.’
प्रदीप कुमार यादव करीब 10 साल से डीरेका में काम कर रहे हैं. आंखों में गुस्सा लिए हुए वह पीएम मोदी को उनका वादा याद कराते हैं. प्रदीप कहते हैं, ‘बीते फरवरी में पीएम मोदी इसी डीरेका के फील्ड पर आकर बोले थे कि मैं अपनी जिंदगी का बहुत सा हिस्सा रेलवे स्टेशन पर गुजारा हूं, और मुझे रेल से बहुत प्यार है. मैं इसका निजीकरण नहीं होने दूंगा. तो अब ये बात कहां से शुरू हो गई. हम ये दिन देखने के लिए वोट नहीं दिए थे’.
वह कहते हैं, ‘जब पीएम मोदी चुनाव के लिए वाराणसी आए थे तो आम लोगों ने उनका साथ दिया था. लोगों ने जमकर उनको सपोर्ट किया था लेकिन अब ये क्या हो रहा है? अगर इसका निगमीकरण हो गया तो आम लोगों का क्या होगा? आम लोगों की बात करने वाले पीएम मोदी को और उनकी सरकार को इस बारे में जरूर सोचना चाहिए.’
अधिकारी बोले
डीरेका के सयुंक्त सचिव एवं डीएलडब्ल्यू बचाओ संयुक्त संघर्ष समिति के संयोजक विष्णु देव दूबे का कहना है, ‘अगर निगम बनाएंगे तो पद कम होंगे, जो बच्चे आज पढ़ाई कर रहे हैं कल उनको नौकरी कहां से मिलेगी? निगम बनाने से पहले सरकार सभी पदों को भरना चाहिए और युवाओं को रोजगार देना चाहिए’.
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए दूबे कहते हैं, ‘देश में कोई भी ऐसा प्राइवेट कॉलेज, हॉस्पिटल नहीं है जो सरकारी से ज्यादा अच्छा हो, लोग बीएचयू में पढ़ना चाहते हैं, एम्स में इलाज कराना चाहते हैं. जो सुविधाएं सरकारी जगहों पर मिल जाती हैं वो किसी प्राइवेट संस्था में थोड़ी मिलती हैं. ये सरकार केवल आम लोगों की बात का दिखावा करती है लेकिन काम सिर्फ पूंजीपतियों के लिए ही करती है.’
हालांकि रेलवे बोर्ड के चेयरमैन विनोद कुमार यादव ने स्पष्ट किया कि डीरेका समेत रेलवे की अन्य सात उत्पादन इकाइयों के निगमीकरण पर अंतिम निर्णय अभी नहीं लिया गया है. सरकार और बोर्ड केवल इस पर विचार कर रही है. कर्मचारियों को विश्वास में लिए बगैर इस पर कोई निर्णय नहीं लिया जाएगा.
रेलवे बोर्ड के चेयरमैन विनोद कुमार यादव ने कर्मचारियों को आश्वस्त कराते हुए कहा है कि ऐसा कोई भी फैसला नहीं लिया जाएगा जो कर्मचारियों के खिलाफ हो. उन्होंने ये भी कहा है कि अभी कोई भी उत्पादन इकाई निगम में तब्दील नहीं होने जा रही है.
कर्मचारियों की तारीफ में बोलते हुए विनोद ने कहा, ‘हम जानते हैं कि सीमित संसाधनों में हमारे रेल कर्मचारियों ने हमें बेहतर नतीजे दिए हैं, उनसे जितनी अपेक्षा की गई वो उस पर खरे उतरे हैं. किसी भी कर्मचारी को घबराने की जरूरत नहीं है. उन्होंने ये भी कहा है कि कम से कम वह अपने कार्यकाल में ऐसा कोई भी फैसला नहीं लेंगे जिससे कर्मचारी आहत हों.’
रेलवे की स्वामित्व वाली इकाई
बता दें कि वाराणसी में डीजल रेल इंजन कारख़ाना (डीरेका) भारतीय रेलवे के स्वामित्व वाली एक इकाई है. यहां डीजल-इलेक्ट्रिक इंजन और उसके स्पेयर पार्ट्स बनते हैं. 1961 में स्थापित डीरेका ने तीन साल बाद 3 जनवरी 1964 को अपना पहला लोकोमोटिव लॉन्च किया था. यह भारत में सबसे बड़ी डीजल-इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव निर्माता कंपनी है.
आपको बता दें डीरेका लोकोमोटिव में 2,600 हॉर्स पावर (1,900 किलोवाट) से 5,500 हॉर्स पावर (4,100 किलोवाट) तक बिजली का उत्पादन होता है. यह भारतीय रेलवे में इलेक्ट्रो-मोटेव डीजल्स (GM-EMD) से लाइसेंस के तहत ईएमडी जीटी46मैक (EMD GT46MAC) और ईएमडी जीटी46पैक (EMD GT46PAC) इंजनों का उत्पादन कर रही है. इसके अलावा विश्व में पहली बार डीजल रेल इंजन को इलेक्ट्रिक इंजन में बदलने का गौरव भी डीएलडब्ल्यू को प्राप्त है.

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