चिदंबरम की जमानत याचिका खारिज करने वाले जज मनी लॉन्ड्रिंग अपीलीय ट्रिब्यूनल के अध्यक्ष नियुक्त

नई दिल्ली: आईएनएक्स मीडिया मामले में पूर्व वित्त मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम की गिरफ्तारी के लिए राह आसान करने वाले रिटायर्ड जज जस्टिस सुनील गौड़ को धन शोधन (मनी लॉन्ड्रिंग) निवारण अधिनियम के लिए अपीलीय न्यायाधिकरण (एटीपीएमएलए) का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है.
द प्रिंट ने रिपोर्ट कर ये जानकारी दी है. दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस गौड़ एटीपीएमएलए के मौजूदा अध्यक्ष जस्टिस मनमोहन सिंह के रिटायर होने के बाद 23 सितम्बर अपना पद संभालेंगे.
आईएनएक्स मीडिया भ्रष्टाचार मामले में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर पूर्व वित्त मंत्री की गिरफ्तारी का मार्ग प्रशस्त करने वाले जस्टिस सुनील गौड़ पिछले हफ्ते गुरुवार को दिल्ली हाईकोर्ट के न्यायाधीश पद से सेवानिवृत्त हुए थे.
जस्टिस गौड़ ने नेशनल हेराल्ड मामले में कांग्रेस नेता सोनिया गांधी और राहुल गांधी सहित पार्टी के शीर्ष नेताओं के अभियोजन की भी राह तैयार की थी. गौड़ को अप्रैल 2018 में पदोन्नत कर हाईकोर्ट में नियुक्त किया गया था. उन्हें 11 अप्रैल 2012 को स्थायी न्यायाधीश नामित किया गया था.
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अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने कई अन्य हाई प्रोफाइल मामलों की सुनवाई की.
उन्होंने अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर घोटाला मामले में पिछले हफ्ते सोमवार को कांग्रेस नेता एवं मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ के भांजे रतुल पुरी की अग्रिम जमानत नामंजूर कर दी थी.
गौड़ ने कांग्रेस के मुखपत्र नेशनल हेराल्ड के प्रकाशक एसोसिएटेड जर्नल लिमिटेड (एजेएल) मामले में पिछले साल एक फैसला सुनाते हुए उसे यहां आईटीओ स्थित अपना कार्यालय खाली करने को कहा था.
हालांकि, इस फैसले को हाईकोर्ट की खंड पीठ ने बरकरार रखा लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस साल अप्रैल में इस पर रोक लगा दी. यह विषय फिलहाल शीर्ष न्यायालय में लंबित है.
जस्टिस गौड़ ने विवादास्पद मांस निर्यातक मोइन कुरैशी के खिलाफ धन शोधन के मामले सहित भ्रष्टाचार के मामलों से जुड़े कुछ अन्य मुद्दों की भी सुनवाई की.
आईएनएक्स मीडिया मामले में चिदंबरम को अग्रिम जमानत देने से इनकार करते हुए 62 वर्षीय जज ने पिछले हफ्ते मंगलवार को उन्हें ‘मुख्य षडयंत्रकारी’ करार दिया था.
इस महीने की शुरुआत में, जस्टिस गौड़ ने ट्रायल कोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया था जिसमें रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) और उसके तत्कालीन तीन वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ आर्थिक मामलों की कैबिनेट की बैठकों से संबंधित गुप्त दस्तावेजों को रखने के लिए मुकदमा चलाने का आदेश दिया गया था.

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