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भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे 7 नेता जिन पर सीबीआई और ईडी के छापे नहीं पड़ेंगे

पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम को आईएनएक्स मीडिया मामले में कथित भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार किए जाने के मद्देनज़र ये उल्लेखनीय है कि गृहमंत्री अमित शाह को जब केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने शोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ मामले में हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया था तो उस समय चिंदबरम गृहमंत्री थे.
नरेंद्र मोदी सरकार 2014 से ही विपक्षी नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों में कार्रवाई करने में जुटी है. चुनाव पास होने पर छापेमारी और समन भेजे जाने की घटनाएं बढ़ जाती हैं. पर ये भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई नहीं है क्योंकि यदि ऐसा होता तो भ्रष्टाचार के आरोपी भाजपा नेताओं को छोड़ नहीं दिया जाता.
अपनी चयनात्मक प्रवृत्ति के कारण ये ‘भ्रष्टाचार विरोधी’ एजेंडा मात्र विरोधियों को तंग करने का अभियान साबित हो रहा है. और, ये सब विवादास्पद राफेल सौदे की जांच से मोदी सरकार के इनकार, या लोकपाल की नियुक्ति में पांच साल तक चली टालमटोल के बिल्कुल उलट है.
ये रहे वैसे कुछ नेता जिनके खिलाफ, भ्रष्टाचार के आरोपों के बावजूद, सीबीआई और अन्य जांच एजेंसियां नरमी दिखाती रही हैं.
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1. बी.एस. येदियुरप्पा: कर्नाटक में भ्रष्टाचार का चेहरा होने के बावजूद वह दोबारा राज्य के मुख्यमंत्री बने हैं. येदियुरप्पा भूमिऔर खनन घोटाले के आरोपी हैं. उनके यहां से बरामद डायरियों में शीर्ष भाजपा नेताओं और जजों और वकीलों को भारी रकम के भुगतान का ज़िक्र होने के बाद भी आज उनका बड़ा कद है, और वे अधिकतर आरोपों से बरी किए जा चुके हैं. येदियुरप्पा के खिलाफ वर्षों से जांच कर रही यही सीबीआई मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से उनके खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं जुटा सकी है. हालांकि, अब भी सुप्रीम कोर्ट उनके खिलाफ भूमि घोटाले के एक मामले में जांच का आदेश दे सकता है.
2. बेल्लारी के रेड्डी बंधु: कर्नाटक के 2018 के चुनावों से पहले सीबीआई ने 16,500 करोड़ रुपये के खनन घोटाले में, किसी तार्किक अंत तक पहुंचे बिना, बेल्लारी बंधुओं के खिलाफ जांच को शीघ्रता से समेट लिया. भारत की संपदा की इस कदर खुली लूट के इस मामले में मोदी सरकार ने रेड्डी बंधुओं को यों ही जाने दिया क्योंकि भाजपा को उनकी जीत की ज़रूरत थी. उनके मामले को उजागर करने वाले वन सेवा के अधिकारी को मोदी सरकार ने इसी महीने बर्खास्त किया है.
3. हिमंता बिस्वा शर्मा: पूर्वोत्तर के अमित शाह कहे जाने वाले हिमंता बिस्वा शर्मा कभी कांग्रेस पार्टी में होते थे और उन पर भ्रष्टाचार के आरोप थे. भाजपा ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल रखा था और उनके खिलाफ एक बुकलेट तक जारी किया था कि वे गुवाहाटी के जलापूर्ति घोटाले के ‘मुख्य आरोपी’ हैं. इस घोटाले को एक अमेरिकी निर्माण प्रबंधन कंपनी की संलिप्तता के कारण लुई बर्जर मामले के नाम से भी जाना जाता है. इस संबंध में अमेरिकी न्याय विभाग ने वहां के विदेशी भ्रष्टाचार कानून के तहत चार्जशीट भी दायर कर रखा है, जिसमें कंपनी पर एक अनाम मंत्री को रिश्वत देने का आरोप लगाया गया है. उस मंत्री की पहचान हिमंता के रूप में करने से लेकर उन्हें पार्टी में शा
मिल करने तक भाजपा ने एक लंबा रास्ता तय किया है. जैसी कि आशंका थी, असम सरकार ने जांच को धीमा कर दिया है, और भाजपा भी मामले को सीबीआई को सौंपने की अपनी पुरानी मांग को भूल चुकी है.
4. शिवराज सिंह चौहान: सीबीआई ने 2017 में मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री को व्यापम घोटाले में क्लीन चिट दे दी थी. क्या कांग्रेस पार्टी में होने पर शिवराज सिंह इस तरह छूट सकते थे? इस व्यापक परीक्षा घोटाले को उजागर करने वाले कई लोगों और कई गवाहों, मीडिया के अनुमानों के अनुसार 40 से अधिक, की रहस्मय परिस्थितियों में मौत हो चुकी है,
5. मुकुल रॉय: पश्चिम बंगाल में अपने संगठनात्मक ढांचे के विस्तार की इच्छुक भाजपा ने घोटाले के दागी तृणमूल नेता मुकुल रॉय को अपना लिया. रॉय उस समय भाजपा में शामिल हुए, जब एक स्थानीय चैनल की गुप्त रिकार्डिंग (नारद स्टिंग) में उन्हें और अन्य कई वरिष्ठ तृणमूल नेताओं को रिश्वत लेते दिखाए जाने के बाद प्रवर्तन निदेशालय ने उनसे पूछताछ की थी. रॉय शारदा चिटफंड घोटाले में भी आरोपी हैं. उनका कहना है कि कानून अपना काम करेगा. पर उनके भाजपा में शामिल होने के बाद से कानून के काम करने की गति धीमी हो गई है.
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6. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’: रमेश पोखरियाल भारत के मानव संसाधन विकास मंत्री हैं. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहने के दौरान वह दो बड़े घोटालों के केंद्र में थे: एक भूमि से संबंधित और दूसरा पनबिजली परियोजनाओं से जुड़े. भ्रष्टाचार के विभिन्न मामलों के कारण उनके शासन की छवि इतनी बुरी थी कि भाजपा को उन्हें 2011 में पद छोड़ने के लिए बाध्य करना पड़ा था. ज़ाहिर है, अब न तो सीबीआई को और न ही उत्तराखंड सरकार को पोखरियाल पर भ्रष्टाचार के आरोपों की तह में जाने की जल्दी है. जांच के केंद्र में होने की बजाय आज वह मोदी सरकार के एक प्रमुख मंत्रालय को संभाल रहे हैं.
7. नारायण राणे: भाजपा ने गत वर्ष महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री नारायण राणे को पार्टी में शामिल कर उन्हें राज्यसभा का सांसद बना दिया. सीबीआई और ईडी को अब राणे के खिलाफ जांच करने या उनकी संपत्तियों पर छापे मारने की कोई जल्दबाज़ी नहीं है. राणे पर धनशोधन और भूमि घोटालों के आरोप हैं. महाराष्ट्र की राजनीति में उनकी छवि ‘विवादों के शीर्षस्थ परिवार’ की है.

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