मायावती बोलीं- आरक्षण को लेकर RSS का बयान संदेह की घातक स्थिति पैदा करता है

आरएसएस प्रमुख मोहन भगवत द्वारा आरक्षण को लेकर दिए गए बयान पर बसपा सुप्रीमो मायावती  ने तीखी प्रतिक्रिया जाहिर की है. उन्‍होंने ट्वीट कर कहा है कि आरएसएस अपनी आरक्षण विरोधी मानसिकता को त्याग दे तो ही बेहतर होगा.

मायावती ने ट्वीट किया, 'आरएसएस का एससी/एसटी/ओबीसी आरक्षण के संबंध में यह कहना कि इसपर खुले दिल से बहस होनी चाहिए, संदेह की घातक स्थिति पैदा करता है. इसकी कोई जरूरत नहीं है. आरक्षण मानवतावादी संवैधानिक व्यवस्था है, जिससे छेड़छाड़ अनुचित और अन्याय है. संघ अपनी आरक्षण-विरोधी मानसिकता त्याग दे तो बेहतर है.'

क्या कहा था मोहन भागवत ने? 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) ने रविवार को कहा कि जो आरक्षण (Reservation) के पक्ष में हैं और जो इसके खिलाफ हैं, उन लोगों के बीच इस पर सद्भावपूर्ण माहौल में बातचीत होनी चाहिए. भागवत ने कहा कि उन्होंने पहले भी आरक्षण पर बात की थी, लेकिन इससे काफी हंगामा मचा और पूरी चर्चा वास्तविक मुद्दे से भटक गई
भागवत ने कहा कि आरक्षण का पक्ष लेने वालों को उन लोगों के हितों को ध्यान में रखते हुए बोलना चाहिए जो इसके खिलाफ हैं और इसी तरह से इसका विरोध करने वालों को इसका समर्थन करने वालों के हितों को ध्यान में रखते हुए बोलना चाहिए. उन्होंने कहा कि आरक्षण पर चर्चा हर बार तीखी हो जाती है, जबकि इस दृष्टिकोण पर समाज के विभिन्न वर्गों में सामंजस्य जरूरी है.
भागवत 'ज्ञान उत्सव' के समापन सत्र में बोल रहे थे जो प्रतियोगी परीक्षाओं पर था. इससे पहले आरएसएस प्रमुख ने आरक्षण नीति की समीक्षा करने की वकालत की थी, जिस पर कई दलों और जाति समूहों की ओर से तीखी प्रतिक्रिया आई थी. भागवत ने कहा कि आरएसएस, बीजेपी और पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार तीन अलग-अलग इकाइयां हैं और किसी को दूसरे के कार्यों के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता.
'कश्मीर के मुद्दे को अफगानिस्तान की समस्या से जोड़ना ठीक नहीं'
नरेंद्र मोदी सरकार पर आरएसएस के प्रभाव की धारणा के बारे में बात करते हुए भागवत ने कहा, 'चूंकि बीजेपी और इस सरकार में संघ कार्यकर्ता हैं, वे आरएसएस को सुनेंगे, लेकिन उनके लिए हमारे साथ सहमत होना जरूरी नहीं है. वे असहमत भी हो सकते हैं.' उन्होंने कहा कि बीजेपी सरकार में है, उसे व्यापक आधार पर देखना होगा. ऐसे में वह आरएसएस की बात से असहमत हो सकती है. संघ प्रमुख ने कहा कि एक बार पार्टी के सत्ता में आने के बाद उसके लिए सरकार और राष्ट्रीय हित प्राथमिकता बन जाते हैं. ज्ञान उत्सव का आयोजन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास द्वारा यहां इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) में किया गया था.

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