अफगानिस्तान की एक शीर्ष राजदूत ने कहा है कि कश्मीर के हालात को अफगानिस्तान में शांति समझौते के लिए जारी प्रयासों से जोड़ना, ‘‘दुस्साहसी, अनुचित और गैर-जिम्मेदाराना’ है।
अमेरिका में अफगानिस्तान की राजदूत रोया रहमानी ने कहा, ‘‘ ‘इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ अफगानिस्तान’ अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत असद मजीद खान के उस दावे पर कठोरता से सवाल उठाता है कि कश्मीर में जारी तनाव अफगानिस्तान की शांति प्रक्रिया को काफी प्रभावित कर सकता है।’’
उन्होंने एक बेहद लंबे अपने बयान में कहा, ‘‘ऐसा कोई बयान जो कश्मीर के हालात को अफगान शांति प्रयासों से जोड़ता है वह दुस्साहसी, अनुचित और गैर-जिम्मेदाराना है।’’
कश्मीर को भारत और पाकिस्तान का द्विपक्षीय मामला बताते हुए रहमानी ने कहा कि उनके देश का मानना है कि कश्मीर मुद्दे से अफगानिस्तान को जानबूझकर जोड़ने का पाकिस्तान का मकसद अफगान की धरती पर जारी हिंसा को और बढ़ाना है।
यह भी पढ़ें: जम्मू-कश्मीरः अमित शाह की हिदायत के बाद एक्टिव मोड में पार्टी नेता, इस वजह से बैठकों का दौर जारीरहमानी ने कहा कि उनके पाकिस्तानी समकक्ष का बयान उन सकारात्मक और रचनात्मक मुलाकात के ठीक विपरीत है जो अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी की हालिया यात्रा के दौरान उनके, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान तथा पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के बीच हुई थी।
पाकिस्तान को रणनीतिक साझेदार बनाना नासमझी होगी: अमेरिकी विशेषज्ञजम्मू कश्मीर मुद्दे पर भारत और पाकिस्तान के बीच चल रहे तनाव तथा अफगान शांति वार्ता के बीच अमेरिका की विदेश नीति मामलों के एक विशेषज्ञ ने पाकिस्तान के प्रति किसी भी प्रकार के रणनीतिक झुकाव और भारत से दूरी के प्रति ट्रंप प्रशासन को आगाह किया है।
विदेश संबंधों की परिषद के अध्यक्ष रिचर्ड एन हास ने पिछले सप्ताह एक लेख लिखा है। जिसमें वह कहते हैं,‘‘पाकिस्तान को रणनीतिक साझेदार बनाना अमेरिका के लिए नासमझी भरा कदम होगा।’’
हास लिखते हैं कि पाकिस्तान काबुल में एक मित्रवत सरकार देख रहा है जो उसकी सुरक्षा के लिए अहम है और उसके कट्टर प्रतिद्वंद्वी भारत को टक्कर दे सके। हास का यह लेख पहले प्रोजेक्ट सिंडिकेट में प्रकाशित हुआ और इसके बाद यह सीएफआर की वेबसाइट पर भी जारी हुआ।