भूटानी जमीन पर NaMo के दूसरी बार कदम, पढ़ें क्यों रगों में बसे हैं हम और किससे है बचाना इसे?

प्रधानमंत्री मोदी अपने दूसरे भूटान दौरे पर हैं. हवाई अड्डे पर उनका स्वागत भूटानी पीएम लोटे शेरिंग ने किया. एयर पोर्ट पर उन्हें गॉर्ड ऑफ ऑनर दिया गया. दूसरे कार्यकाल की शुरूआत में ही संपन्न हो रहे इस दौरे से भारत और भूटान की बहुत अपेक्षाएं जुड़ी हैं. दो दिवसीय दौरे में दोनों देश की सरकारें करीब 10 समझौतों पर मुहर लगा सकती हैं.

सूत्रों की मानें तो पीएम मोदी के इस दौरे से 5 परियोजनाओं के उद्घाटन का रास्ता खुलेगा. भारतीय रूपे कार्ड को भी लॉन्च किया जाएगा जो इससे पहले सिंगापुर में भी लॉन्च किया जा चुका है. अंतरिक्ष क्षेत्र में काम करनेवाली संस्था इसरो के एक ग्राउंड स्टेशन का उद्घाटन होगा. भारतीय पनबिजली कंपनी एनएचपीसी के सहयोग से मध्य भूटान के ट्रोंगसा डोंग्खग ज़िले के मंगदेछु नदी में 720 हजार मेगावाट की क्षमता वाली बिजली परियोजना की शुरूआत भी की जाएगी. पीएम मोदी ने अपने दौरे से पहले भूटान नरेश जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक, पूर्व नरेश और पीएम से बातचीत को लेकर काफी उत्सुकता दिखाई है. वे भूटान के रॉयल विश्वविद्यालय के छात्रों से भी मिलनेवाले हैं.

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भूटान के साथ भारत की पड़ोसी प्रथम पॉलिसी
असल में भारत की भूटान से करीबी को ‘पड़ोसी प्रथम’ की नीति के तौर पर देखा जा रहा है. आपको याद दिला दें कि मोदी सरकार की दूसरी पारी में एस जयशंकर को विदेशमंत्री बनाया गया है. जयशंकर ने अपने कार्यकाल की शुरूआत भूटान दौरे से की थी. खुद अपनी पहली पारी में पीएम मोदी ने पहला दौरा भूटान का किया था.

अब जिस नाज़ुक वक्त में नेपाल के लगातार चीनी खेमे में जाने की आशंका जताई जा रही हैं तब भूटान भारत के लिए बेहद अहम स्थान रखता है. दोनों देशों के बीच दार्जिलिंग में 8 अगस्त 1949 को फ्रेंडशिप ट्रीटी हुई थी. इसके तहत भूटान को अपने विदेशी संबंध के मामलों में भारत को शामिल करना होता था, जिससे जुड़ा संशोधन भूटान के आग्रह पर 8 फरवरी 2007 में हुआ. पहले जहां सभी तरह के विदेशी मामलों में भारत को सूचित करना ज़रूरी था, अब वहीं भारत को सिर्फ तभी सूचित करना ज़रूरी है जहां उसके हित भी सीधे जुड़े हैं.

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आपको बता दें कि भूटान का भी चीन के साथ सीमा विवाद है. चीन चाहता था कि भारत को परे रखकर वो भूटान से बात कर ले मगर भूटान ने भारत की मौजूदगी चाही. चीन को भारत-भूटान की यही करीबी खटकती है. अभी तक चीन और भूटान के कूटनयिक संबंध नहीं बन सके हैं.
ज़मीनी स्थिति की नज़र से भूटान क्यों भारत के लिए अहम
चीन- भूटान के बीच पश्चिम और उत्तर में करीब 470 किलोमीटर लंबी सीमा है, वहीं भारत और भूटान की सीमा पूर्व, पश्चिम और दक्षिण में 605 किलोमीटर लंबी है. भारत के लिये भूटान का महत्त्व उसकी भौगोलिक स्थिति की वज़ह से ज़्यादा है जो 1951 में चीन के तिब्बत पर कब्ज़ा करने के बाद और बढ़ गया. भूटान के पश्चिम में भारत का सिक्किम, पूर्व में अरुणाचल प्रदेश और दक्षिण-पूर्व में असम है. पश्चिम बंगाल का दार्जिलिंग ज़िला इसे नेपाल से अलग करता है.

दोनों देशों की सीमाएँ भले ही एक-दूसरे को अलग करती हैं, लेकिन भारत और भूटान के नागरिकों को एक-दूसरे की सीमा में आने-जाने के लिये किसी वीज़ा की ज़रूरत नहीं होती. भारत-भूटान के बीच खुली सीमा है जो दर्शाती है कि दोनों देश एक-दूसरे पर कितना भरोसे करते हैं. भूटान की शाही सेना को ज़रूरत पड़ने पर भारत में ट्रेनिंग दी जाती है. ये भी उल्लेखनीय है कि चीन की सीमा 14 देशों से लगती है, उनमें भारत और भूटान ही ऐसे हैं जिससे उनका सीमा विवाद अब तक अनसुलझा है.
भूटान के लिए भारत सबसे बड़ा व्यापारिक हिस्सेदार
भूटान का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार भारत है. साल 2018 में दोनों देशों के बीच कुल 9,228 करोड़ रुपए का द्विपक्षीय व्यापार हुआ. इसमें भारत से भूटान को होने वाला निर्यात 6011 करोड़ रुपए (भूटान के कुल आयात का 84%) और भूटान से भारत को होने वाला निर्यात 3217 करोड़ रुपए (भूटान के कुल निर्यात का 78 प्रतिशत) दर्ज किया गया. भारत भूटान को प्रमुख तौर पर खनिज उत्पाद, मशीनरी, यांत्रिक उपकरण, बिजली के उपकरण, धातुएँ, वाहन, सब्जी और प्लास्टिक का सामान निर्यात करता है. वहीं भूटान से भारत को निर्यात की जाने वाली प्रमुख वस्तुएं हैं- बिजली, फेरो-सिलिकॉन, पोर्टलैंड सीमेंट, डोलोमाइट, सिलिकॉन, सीमेंट क्लिंकर, लकड़ी तथा लकड़ी के उत्पाद, आलू, इलायची और फल उत्पाद.
भूटान की जलविद्युत परियोजनाएं दोनों देशों के बीच सहयोग की अहम कड़ी है. अब तक भारत सरकार ने भूटान में कुल 1416 मेगावाट की तीन पनबिजली परियोजनाओं के निर्माण में सहयोग किया है और इन सभी से विद्युत का निर्यात जारी है.

भूटान में चलने वाली विकास परियोजनाओं में भारत का बहुत बड़ा हाथ है. भारतीय आर्थिक सहायता से भूटान योजना आयोग की नींव रखी गई. भूटान की बारहवीं पंचवर्षीय योजना के लिए भारत ने 4500 करोड़ रुपए की वित्तीय सहायता का एलान किया है. साल 2000 से 2017 के बीच भूटान को भारत से मदद के तौर पर 4.7 बिलियन डॉलर हासिल हुए. भारत ने भूटान की मुद्रा न्गुल्ट्रम को रुपए के समान मूल्य पर रखा जिस वजह से भारतीय सीमावर्ती इलाकों और भूटान में दोनों मुद्रा चलती हैं.
भारत का सीमा सड़क संगठन भूटान में प्रोजेक्ट दंतक चला रहा है जिसके तहत देश में लगभग 1800 किलोमीटर लंबी सड़कों का निर्माण जारी है. इसी प्रोजेक्ट के तहत पारो और यांगफुला में हवाई पट्टियाँ, हेलीपैड, दूरसंचार नेटवर्क, भारत-भूटान माइक्रोवेव लिंक, भूटान आकाशवाणी केंद्र, प्रतिष्ठित इंडिया हाउस परिसर, जल विद्युत केंद्र, स्कूल एवं कॉलेजों का निर्माण कार्य भी किया गया है. 1961 में भारत के सीमा सड़क संगठन का शुरू किया गया ‘प्रोजेक्ट दंतक’ किसी विदेशी धरती पर राष्ट्र निर्माण के लिये शुरू किया गया सबसे बड़ा प्रोजेक्ट माना जाता है.
भूटान के लिए नया-नया है लोकतंत्र
अगर बात भूटान की राजनीति की करें तो उसके लिए लोकतंत्र की यात्रा बहुत पुरानी नहीं है, हालांकि सुखद ज़रूर है. साल 2008 में सदियों पुराने राजतंत्र के वारिस तत्कालीन भूटान नरेश ने ही देश में लोकतंत्र का स्वागत करते हुए चुनाव कराए थे. अब तक 8 लाख आबादी वाले भूटान में तीन चुनाव संपन्न हो चुके हैं. भूटानी संविधान के हिसाब से आम चुनाव के दो चरण हैं. पहले चरण में मतदाता विभिन्न दलों में से अपनी पसंद के दल को चुनते हैं. सबसे ज़्यादा पसंद किए गए दो दलों के उम्मीदवारों को दूसरे चरण में भूटान के 20 ज़िलों में उम्मीदवारी का मौका दिया जाता है. राष्ट्रीय सभा के निचले सदन की 47 सीटों में से ज़्यादातर पर जीत हासिल करनेवाले दल के नेता को भूटान के राजा प्रधानमंत्री नियुक्त करते हैं.

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भूटान ने 1971 में संयुक्त राष्ट्र संघ की सदस्यता ली थी जो भारत के सहयोग से संभव हो सकी. भूटान सार्क का संस्थापक सदस्य देश है. उसके पास विश्व बैंक, आईएमएफ और बिम्सटेक की सदस्यता भी है.
कुल मिलाकर पिछली सदी में भूटान का बड़ा राजनीतिक हिस्सा भारत की छाया में गुज़रा है, लेकिन नई सदी में लोकतांत्रिक भूटान अपने पंख पसार रहा है. भारत हमेशा भूटान का विकास चाहता रहा है. उसे आर्थिक के अलावा रक्षा सहयोग भी देता रहा है. भूटान के हितों की लड़ाई अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर लड़ता रहा. आज जब भूटान पर चीन की नज़र है तब भारत सरकार के लिए बड़ी चुनौती है कि वो भूटान को नेपाल की तरह विचलित ना होने दे. ऐसा ना हो इसके लिए भूटान के नागरिकों की अहम ज़रूरतों को भारत की तरफ से पूरा करना ज़रूरी है. खुद पीएम मोदी और उनके सहयोगियों के भूटान दौरे इस बात का प्रमाण हैं कि वक्त बीतने के साथ भूटान की प्रासंगिकता हमारे देश के लिए बढ़ती चली गई है.

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