थूक कर चाटना मुश्किल होता है, भारतीय मीडिया ने सबक़ लिया?

लेखक - गुरदीप गैरी वालिया
लगभग एक साल से किसान आंदोलन चल रहा था और भारतीय मीडिया के तमाम बड़े चेहरे इस कृषि क़ानून को सही ठहराने में लगे हुए थे। आए दिन डिबेट होती थी कृषि विशेषज्ञों को बुला कर। कृषि क़ानूनो के फ़ायदे बताए जाते थे। कुछ TV ऐंकर्स ने तो अपने ट्विटर हैंडल पर बड़े बड़े फ़ायदो के साथ ट्वीट तक किए लेकिन किसानों ने किसी की ना सुनी और अपनी माँगो पर अड़े रहे | लगभग 700 किसानों की मौत के बाद मोदी सरकार जागी और कृषि क़ानून वापिस लेने का फ़ैसला लिया। इस फ़ैसले के बाद भारतीय मीडिया जिसको आज कल गोदी मीडिया के नाम से भी जाना जाता है वो बौखला गए और कुछ ने तो मोदी जी को यहाँ तक भी कह दिया के ये वोट बैंक के लिए किया गया फ़ैसला है और कुछ ने ये तक ट्वीट किए की अब लोग बाक़ी माँगे को भी ऐसे आंदोलन करके ही मनाया करेंगे। आसान भाषा में कहे तो एक बस गोदी मीडिया TV पर आ कर रोया नही बाक़ी हालत बहुत पतली थी।
गोदी मीडिया जो मोदी सरकार के हर ग़लत फ़ैसले को भी सही ठहराने में लग जाता है, उसने कृषि क़ानूनो में भी ऐसा ही किया। लेकिन मोदी जी ने क़ानून वापिस लेने का ऐलान करते वक्त एक बार भी गोदी मीडिया से नहीं पूछा कि आप लोग इसको डिफ़ेंड कैसे करोगे। मोदी जी के फ़ैसले के बाद न्यूज़ ऐंकर्स बौखला गए क्यूँकि लोगों ने ट्विटर फ़ेसबुक पर मीडिया को बुरी तरह लताड़ दिया।
कुछ यूज़र्ज़ ने तो ये तक लिखा कि भारतीय मीडिया तो मानता ही नहीं था कि आंदोलन में किसान बैठे हैं। कोई आंदोलन को राजनीति बोल रहा था तो कोई आंदोलनकारियों को आतंकवादी। लेकिन मोदी जी ने अपने भाषण में साफ़ कहा की कुछ किसानों को हम समझा नहीं पाए जिसका मतलब है कि मोदी जी ने ये माना कि आंदोलन में किसान ही थे। अब गोदी मीडिया ये बताए की मोदी जी ग़लत हैं या मीडिया? देश भर में अगर भाजपा समर्थकों से भी अधिक किसी का मज़ाक़ बना है तो वो भारतीय मीडिया का बना है।
नोट - ये लेखक के निजी विचार हैं।