प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत में जिस तरह गरीबी हटाने की बात कही, उससे एक उम्मीद जगी थी कि मोदी सरकार गरीब उन्मूलन के लिए लाभकारी योजनाएं लाने जा रही है. उसके बाद जिस तरह से वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट में सुपर रिच टैक्स जैसे प्रावधान लाए फिर लगने लगा कि सरकार गरीबों के लिए चिंतिंत है. उस समय छपे लेखों में मोदी सरकार की तुलना इंदिरा गांधी के गरीबी हटाओ से की गई. और कुछ लोगों ने तो प्रधानमंत्री को कॉमरेड मोदी तक कह दिया. लेकिन बीते दिनों स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से दिए अपनेसंबोधन में कहा कि वेल्थ क्रिएटर्स भी राष्ट्र के सम्मान के हकदार हैं और उन्हें संदेह की नजरों से नहीं देखा जाना चाहिए. इससे लोगों में मोदी सरकार को लेकर एक आशंका उत्पन्न हो गई है कि मोदी सरकार गरीब हितैषी है या कॉरपोरेट हितैषी यह भी पढ़ें: 'ऐसे नेताओं की जरूरत है, जो प्रधानमंत्री से बिना डरे बात कर सकें'