अरुण जेटली के निधन के बाद मोदी क्यों नहीं आ पाए

अरुण जेटली नहीं रहे. 67 साल की उम्र में उन्होंने उपलब्धियों से भरे अपने संसार को अलविदा कह दिया. जेटली ने अपनी सेहत को देखते हुए ही मोदी के दूसरे कार्यकाल में मंत्री बनने से इनकार कर दिया था. जेटली के इस इनकार के बाद सरकार गठन से पहले नरेंद्र मोदी जेटली से मिलने उनके घर गए थे. नरेंद्र मोदी और अमित शाह जब गुजरात में थे तब से ही जेटली दोनों के लिए ख़ास थे. 2002 में गुजरात में दंगे हुए और अमित शाह के साथ मोदी को जांच का सामना करना पड़ा तब भी जेटली पूरी मुस्तैदी से क़ानूनी दांव-पेच को समझते हुए दोनों के साथ खड़े रहे.
जब मोदी चुनाव जीतकर दिल्ली आए तब भी जेटली उस शख़्स के तौर पर सबसे भरोसेमंद साथी रहे, जो किसी भी बिल के क़ानूनी पहलुओं को दुरुस्त रखता था और संसद में सरकार के पक्ष को तर्कों के साथ ज़ोरदार तरीक़े से रखता था. अब जब जेटली का निधन हो गया तो प्रधानमंत्री मोदी पूर्वनियोजित विदेश दौरे पर हैं. भारत को जी-7 देशों के सम्मेलन में विशेष साझेदार के तौर पर आमंत्रित किया गया है.
इसके अलावा पीएम मोदी ने संयुक्त अरब अमीरात का दौरा संपन्न किया जो भारत का अहम साझेदार है. यहां के बाद मोदी बहरीन के दौरे पर गए. जेटली के निधन की ख़बर सुनते ही प्रधानमंत्री मोदी ने उनकी पत्नी संगीता जेटली को फ़ोन किया. समाचार एजेंसी एनआई का कहना है कि जेटली के परिवार की तरफ़ से पीएम से अनुरोध किया गया कि वो इस महत्वपूर्ण दौरे को बीच में छोड़कर नहीं आएं. शनिवार रात बहरीन में पीएम मोदी भारतीयों को संबोधित कर रहे थे. इसी संबोधन में प्रधानमंत्री ने जेटली के परिवार वालों के साथ नहीं होने का अफ़सोस भी ज़ाहिर किया और ख़ुद को भावुक होने से रोक नहीं पाए.
मोदी ने कहा, ''मैं कर्तव्य से बंधा हुआ इंसान हूं. एक तरफ़ बहरीन उत्साह और उमंग से भरा हुआ है. भारत में कृष्ण जन्म का उत्सव मनाया जा रहा है. उसी पल मेरे भीतर गहरा शोक, एक गहरा दर्द दबाकर मैं आपके बीच खड़ा हूं. विद्यार्थी काल से जिस दोस्त के साथ सार्वजनिक जीवन के एक के बाद एक क़दम मिलकर चला, राजनीतिक यात्रा साथ-साथ चली, हर पल एक दूसरे के साथ जुड़े रहना, साथ मिलकर जूझते रहना, सपनों को सजाना, सपनों को निभाना, वो दोस्त अरुण जेटली देह छोड़कर चला गया.''
प्रधानमंत्री ने कहा, ''कल्पना नहीं कर सकता कि मैं इतनी दूर यहां बैठा हूं और मेरा दोस्त चला गया. इसी महीने पूर्व विदेश मंत्री सुषमा बहन चली गईं और आज मेरा दोस्त अरुण चला गया. बहुत दुविधा का पल है मेरे सामने. एक तरफ़ कर्तव्यों से बंधा हुआ हूं तो दूसरी तरफ़ दोस्ती के भाव से भरा हूं. मैं आज बहरीन की धरती से भाई अरुण को आदर पूर्वक श्रद्धांजलि देता हूं. इस दुख की घड़ी में ईश्वर मेरे दोस्त के परिवारजनों को शक्ति दे. मैं इसके लिए प्रार्थना करता हूं.''
प्रधानमंत्री मोदी के बयान से साफ़ है कि वो चाहकर भी अरुण जेटली की आख़िरी विदाई में शरीक नहीं होने पर विवश हैं. प्रधानमंत्री का कार्यक्रम पहले से ही काफ़ी व्यस्त है. वो बहरीन से फ़्रांस पहुँच गए हैं और यहां के बिरेट्स शहर में आयोजित जी-7 सम्मेलन में 25-26 अगस्त को शरीक होंगे. यहां भारत फ़्रांस के आमंत्रण पर पहुँचा है. 26 अगस्त को पीएम मोदी की मुलाक़ात यहीं अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप से भी होनी है. इस मुलाक़ात की घोषणा ट्रंप भी पहले ही कर चुके हैं.
प्रधानमंत्री मोदी के लिए तीन देशों का यह दौरा इसलिए काफ़ी अहम है क्योंकि भारत ने कश्मीर को मिली संवैधानिक स्वायत्तता ख़त्म कर दी है और पाकिस्तान इसके ख़िलाफ़ दुनिया भर के देशों से संपर्क कर रहा है. पाकिस्तान की इस मुहिम में चीन ने भी संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद में साथ दिया था. अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप ने कश्मीर पर हालिया घटनाक्रम को विस्फोटक बताया है और मध्यस्थता की पेशकश कर दी थी. भारत कश्मीर को द्विपक्षीय मुद्दा बताता है और तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को ख़ारिज करता रहा है. दूसरी तरफ़ पाकिस्तान तीसरे पक्ष के हस्तक्षेप का स्वागत कर रहा है.
ऐसे वक़्त में पीएम मोदी के लिए यह ज़रूरी है कि वो कश्मीर पर अपने तर्कों से दुनिया के प्रभावशाली देशों को सहमत कराएं. पीएम मोदी की फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों से मुलाक़ात हो गई है और राष्ट्रपति मैक्रों ने कहा है कि द्विपक्षीय संवाद के ज़रिए कश्मीर समस्या का समाधान निकाला जाए. संयुक्त अरब अमीरात ने भी कश्मीर को लेकर भारत के ख़िलाफ़ कुछ नहीं कहा है जबकि उसके ऊपर पाकिस्तान का दबाव है. पाकिस्तान मुस्लिम देशों के संगठन ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन के मंच पर भी भारत के ख़िलाफ़ कश्मीर मुद्दा उठा चुका है.
कश्मीर पर तनाव के बीच संयुक्त अरब अमीरात ने पीएम मोदी को अपना सर्वोच्च नागरिक सम्मान ऑर्डर ऑफ़ ज़ायद दिया है. जिसे लेकर पाकिस्तान में कड़ी प्रतिक्रिया आ रही है. इस पर आपत्ति जताते हुए पाकिस्तानी सीनेट के चेयरमैन ने यूएई की पूर्वनिर्धारित यात्रा तक रद्द कर दी. अरुण जेटली पिछले दो हफ़्ते से दिल्ली के एम्स अस्पताल में सांस लेने में तकलीफ़ की शिकायत के बाद से भर्ती थे. इस दौरान उनकी सेहत लगातार बिगड़ती गई. प्रधानमंत्री मोदी जेटली को देखने भी गए. संयोग ऐसा रहा कि जब जेटली का निधन तब प्रधानमंत्री मोदी वतन से बाहर थे.
अनंत में विलीन हुए अरुण जेटली, राजकीय सम्मान के साथ अंतिम विदाई
पीएम मोदी अपने दोस्त अरुण जेटली को आख़िरी विदाई नहीं दे पाए लेकिन वो अपने राजनीतिक सफ़र में शीर्ष पर पहुंचने में जेटली के योगदान को शायद ही भूल पाएंगे. 2013 में प्रधानमंत्री की उम्मीदवारी को लेकर जब बीजेपी में आडवाणी खेमा मोदी के नाम पर तैयार नहीं था तो जेटली ने खुलकर मोदी का साथ दिया था. तब अरुण जेटली ने कहा था कि कांग्रेस जब चुनाव हारने जा रही है तब पार्टी के भीतर प्रधानमंत्री पद पर अनावश्यक विवाद हिट विकेट की तरह साबित होगा.
आख़िरकार मोदी बीजेपी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार बने और चुनाव में पूर्ण बहुमत भी हासिल किया. कहने को तो 2014 में बनी मोदी सरकार में राजनाथ सिंह नंबर दो की हैसियत रखते थे लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है वास्तव में नंबर दो की हैसियत जेटली के पास थी. मोदी जब वतन लौटेंगे तो जेटली नहीं होंगे. उनकी यादें, उनकी दलीलें और गुज़ारे वक़्त से मोदी के लिए मुक्त होना इतना आसान नहीं होगा.

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