ज्ममू कश्मीर में बंद हो सकती है 143 साल पुरानी राजधानी बदलने की परंपरा

जम्मू कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद दरबार मूव का भारी भरकम खर्च कम हो सकता है। दरबार मूव पर सालाना छह सौ करोड़ रुपये खर्च राज्य को बोझिल करता रहा है। दरबार मूव की प्रक्रिया रोक कर खर्च कम करना भाजपा और जम्मू केंद्रित कई दलों की पुरानी मांग रही है। अब अनुच्छेद 370 खत्म होने के बाद विधानसभा का कार्यकाल छह से पांच साल करने के साथ छह-छह महीने बाद दरबार मूव की प्रक्रिया में भी बदलाव तय है। ये दोनों व्यवस्थाएं राज्य में दशकों से प्रभावी हैं और कश्मीर केंद्रित पार्टियों को भा रही हैं। अब 31 अक्टूबर के बाद केंद्र शासित प्रदेश बनने से यहां पर 23 व्यवस्थाएं बदलेंगी। इनमें ये दोनों व्यवस्थाएं भी हो सकती हैं।
प्रदेश भाजपा की पूरी कोशिश है कि जम्मू में ये पुरानी मांगे पूरी हों। दोनों क्षेत्रों के अधिकारी और कर्मचारी जम्मू व श्रीनगर में स्थायी रूप से रहें और सरकार के साथ सिर्फ मुख्य सचिव व प्रशासनिक सचिव जाएं। इससे दरबार को लाने और ले जाने के साथ मूव की सुरक्षा व कर्मियों को ठहराने पर खर्च होने वाले अरबों रुपये बचेंगे। दरबार मूव ने जम्मू कश्मीर में वीआइपी वाद को बढ़ावा दिया है। इससे हजारों कर्मचारियों को जम्मू व श्रीनगर में ठहराने के लिए होटलों में सैकड़ों कमरे व अधिकारियों के लिए आवास किराये पर लिए जाते हैं।
सचिवालय का कामकाज ई-फाइलों के जरिये निपटाया जाए
दरबार मूव को बंद करने का मुद्दा गत दिनों भाजपा के बुद्धिजीवी सम्मेलन में उठा था। सेवानिवृत्त एसएसपी भूपेन्द्र सिंह ने प्रधानमंत्री कार्यालय के राज्यमंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह की मौजूदगी में यह मुद्दा उठाते हुए कहा था कि जम्मू कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद दरबार मूव की प्रक्रिया को रोक दिया जाए। कश्मीर की फाइलें कश्मीर व जम्मू की फाइलों को स्थायी तौर पर जम्मू में रखा जाए। सचिवालय का कामकाज ई-फाइलों के जरिये निपटाया जाए।  
किसी भी परंपरा को निभाने के लिए सरकारी तौर पर खर्च किया जाने वाली यह भारी भरकम राशि जम्मू-कश्मीर में हर साल खर्च की जाती थी। राज्य में 143 साल पुरानी दरबार मूव की परंपरा के तहत शीतकालीन राजधानी जम्मू में सचिवालय बंद होती थी। दरबार मूव परंपरा के तहत राज्य की राजधानी छह महीने जम्मू और छह महीने श्रीनगर रहती थी।
क्या है दरबार मूव परंपरा-
जम्मू कश्मीर देश का एक अकेला ऐसा राज्य है जिसका सचिवालय छह महीने श्रीनगर और छह महीने जम्मू से काम करता था। इसके साथ ही हाईकोर्ट सहित अन्य विभाग शीतकाल में जम्मू शिफ्ट किए जाते थे । अप्रैल माह के आखिरी सप्ताह में इसे फिर से श्रीनगर शिफ्ट कर दिया जाता था। 1872 में डोगरा शासनकाल में राज्य की प्राकृतिक एवं भौगोलिक परिस्थितियों के चलते इसे शुरु किया गया था। दरबार मूव की परंपरा पर हर साल करीब 300 करोड़ रुपए खर्च किए जाते थे । डोगरा महाराजा गुलाब सिंह ने दरबार मूव की परंपरा की शुरुआत की थी। उस समय ये काम बैल गाड़ी और घोड़ा गाड़ी से होता था। उस समय दोनों जगह महाराजा का दरबार शिफ्ट होने के बाद एक बड़ा समारोह आयोजित किया जाता था।
परिवार सहित आते कर्मचारी
सचिवालय सहित अन्य प्रमुख कार्यालयों में कार्य करने वाले करीब 8000 दरबार मूव कर्मचारियों को टीए भत्ते के तौर पर ही प्रत्येक कर्मचारी को दस हजार रुपये तो दिए जाते थे। ये कर्मचारी परिवार सहित आते थे। करीब 75 हजार दैनिक वेतन भोगियों को जम्मू और श्रीनगर में अलग-अलग रखा जाता। इस दौरान हुआ पूरा खर्च सरकार वहन करती है।
फिजूल खर्च
अगर इस परंपरा को बंद कर दिया जाए तो हर साल खर्च होने वाले करोड़ों रुपए दूसरे कार्यों पर खर्च किए जा सकते हैं। एक जगह स्थायी सचिवालय बनने से जम्मू और श्रीनगर के लोग परेशानी से बच सकेंगे। अच्छे शासन के लिए महाराजा रणवीर सिंह ने वर्ष 1872 में राज्य की राजधानी स्थानांतरित करने की परंपरा दरबार मूव शुरू किया था। इसके पीछे उनका मकसद जम्मू और कश्मीर के लोगों के बीच आपसी भाईचारा व सौहार्द कायम करना था। यह बीते समय की बात है क्योंकि अब ई-गर्वनेंस का जमाना है। हर रिकार्ड एक क्लिक पर सामने आ जाता है। सूचना एवं प्रौद्योगिकी के इस युग में राजधानियों को स्थानांतरित करने की परंपरा बेतुकी लगती है। 

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