अब हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की मुहीम होगी तेज़, मानव संसाधन मंत्री ने दिए संकेत

तरुण कृष्णा: भारत की नई शिक्षा नीति में संघ का प्रभाव दिख सकता है और हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की मुहिम तेज हो सकती है. शनिवार को ‘ज्ञानोत्सव’ कार्यक्रम के दौरान मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के संबोधन में कुछ इस तरह के संकेत देखने को मिले.
इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी (इग्नू) के दिल्ली कैंपस में शिक्षा संस्कृत न्यास द्वारा ज्ञानोत्सव-2076 कार्यक्रम का आयोजन हुआ. इसमें संघ प्रमुख मोहनराव भागवत, पतंजलि विश्वविद्यालय के कुलपति आचार्य बालकृष्ण और उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा के अलावा शिक्षा संस्कृत उत्थान न्यास के दीनानाथ बत्रा और अतुल कोठारी भी मौजूद थे.
शिक्षा मंत्री निशंक ने अपने संबोधन में उम्मीद जताई की ज्ञानोत्सव के इस मंथन से अमृत निकलेगा. उन्होंने कहा, ‘जब मैंने कहा कि भारत ने करोड़ों साल पहले अणु का सिद्धांत दिया तो आज के छात्र मुझ पर ही सावल उठाने लगे. नासा के वैज्ञानिकों ने कहा है कि बोलने वाले कंप्यूटर के लिए संस्कृत सबसे महत्वपूर्ण वैज्ञानिक भाषा है. संस्कृत दुनिया के हर भाषा की जननी है.’
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निशंक ने आईआईटी और आईएमएम के संस्थापकों से निवेदन करते हुए कहा कि वो पौराणिक काल से जुड़े भारत के दावों को वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित करें. शिक्षा मंत्री ने इस ओर भी इशारा किया कि तमाम क्षेत्रिय भाषाओं का अपना लालित्य है, लेकिन राष्ट्रभाषा हिंदी ही होगी.
कार्यक्रम में निशंक ने इज़राइल का उदाहरण देते हुए कहा कि भारत के इस मित्र देश ने तीन साल के भीतर ही राष्ट्रभाषा को अपना लिया था. वहीं, इस दौरान उन्होंने संघ प्रमुख भागवत को सबसे बड़ा समाजिक वैज्ञानिक भी बताया. सुश्रुत का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि एक दौर में शल्य चिकित्सा के क्षेत्र में भारत के अलावा कोई और नहीं था.
उन्होंने ये भी कहा कि भविष्य में जो भी हॉस्पिटल आयुर्वेद को जगह नहीं देगा, वो इलाज करने में पूरी तरह से सफल नहीं हो पाएगा. उन्होंने कहा, ‘हमने जब पहली बार योग की बात की तो विपक्षियों ने नाक-भौंह सिकोड़ लीं. आज पूरी दुनिया हमारा अनुकरण कर रही है.’
उन्होंने कहा कि शिक्षा नीति को लेकर लोगों में जोश है, लेकिन उनके मन में सवाल है कि क्या ये लागू होगी? उन्होंने ऐसा इस संदर्भ में कहा कि अक्सर न जाने कितनी ही नीतियां बनती रहती हैं, लेकिन उन्हें लागू नहीं किया जाता.
कई पुरानी​ नीतियों को बदलने की जरुरत: आचार्य बालकृष्ण
कार्यक्रम में आचार्य बालकृष्ण ने चीन का उदाहरण देते हुए दावा किया, ‘वहां पहले चीनी मेडिसिन सिस्टम पढ़ना पड़ता है फिर मॉर्डन मेडिकल पढ़ना हो तो पढ़ सकते हैं. इसकी वजह से चीनी चिकित्सा पद्धति दुनिया भर में पहुंच रही है. भारत में भी ऐसा तुरंत होना चाहिए.’ उन्होंने ये जानकारी भी दी कि मदरसे में पढ़ने वाले बच्चे को तो यूनानी की डिग्री मिल जाती है लेकिन संस्कृत वालों को नहीं. बालकृष्ण ने इन तमाम नीतियों को मंच से उसी वक्त बदले जाने की मांग की.
इस कार्यक्रम के दौरान शिक्षा संस्कृति न्यास के कोठारी ने नारा दिया, ‘देश को बदलना है तो शिक्षा को बदलो!’ उन्होंने ये भी कहा कि जिस लोकतंत्र में बुद्धिजीवी वर्ग शिक्षा के लिए पूरी तरह से सरकार पर निर्भर हो जाए वो लोकतंत्र सफल नहीं हो सकता. समस्याएं सबको पता है, हल पर ज़ोर देने की ज़रूरत है.’ उन्होंने मातृभाषा (हिंदी) और भारतीय भाषाओं में शोध के प्रयासों पर भी ज़ोर दिया.
इस दौरान न्यास की ओर से एक संकल्प पत्र जारी किया गया जिसमें- मूल्य आधारित शिक्षा, पर्यावरण शिक्षा, चरित्र निर्माण और व्यक्ति विकास की शिक्षा, मातृभाषा में शिक्षा, शिक्षा में भारतीय दृष्टी और ज्ञान का समावेश और शिक्षा को व्यावहारिक दृष्टि देना जैसे छह बिंदू शामिल हैं.

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