सोनिया की वापसी से क्या होगा राहुल का भविष्य?

लोकसभा चुनाव में हार के बाद कांग्रेस अध्यक्ष पद से राहुल गांधी के इस्तीफे की पेशकश के लगभग 75 दिन बाद उनका इस्तीफा तो स्वीकार कर लिया गया, लेकिन कांग्रेस 'परिवार मुक्त' नहीं हो पाई। पार्टी के तमाम सीनियर नेता सोनिया गांधी को अंतरिम अध्यक्ष बनवाने में कामयाब रहे। सोनिया की इस वापसी ने कहीं ना कहीं राहुल गांधी के राजनीतिक भविष्य का रास्ता तंग कर दिया है। 
सोनिया को अध्यक्ष बनवाने वाले नेताओं में अधिकतर ऐसे हैं, जो राहुल के अध्यक्ष बनने के बाद या तो हाशिए पर चले गए थे या फिर उनकी भूमिका बेहद सीमित कर दी गई थी। जो नेता लगभग दो दशक तक पार्टी के हर छोटे बड़े फैसलों में अहम भूमिका निभाते रहे, उन्हें राहुल के दौर में पार्टी में हो रहे फैसलों की जानकारी फैसले हो चुकने के बाद मिलती थी। यह स्थिति उनके अस्तित्व के लिए अनुकूल नहीं थी और वे किसी भी तरह बदलाव पक्षधर थे। 
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राहुल की वापसी निकट भविष्य में भी मुश्किल! 
राहुल के इस्तीफे के बाद ढाई महीने तक नए अध्यक्ष की खोज की कवायद चलती रही, लेकिन पूरी पटकथा इस तरह से तैयार हुई कि अंततः कमान सोनिया के हाथों ही रहे। बदले हुए हालात में राहुल की वापसी निकट भविष्य में मुश्किल दिखती है। कहा जा रहा है कि भले ही सोनिया को अंतरिम अध्यक्ष बनाया गया हो, लेकिन यह व्यवस्था कुछ महीनों की न होकर अगले दो-तीन सालों की हो सकती है। उसके बाद, कमान प्रियंका गांधी के हाथ जा सकती है। 

पार्टी को एकजुट सिर्फ गांधी परिवार रख सकता है! 
बीजेपी द्वारा कांग्रेस पर परिवारवाद को लेकर लगातार साधे जा रहे निशाने के मद्देनजर राहुल गांधी ने भले ही अपने इस्तीफे के बाद गांधी परिवार के किसी सदस्य को अध्यक्ष ने बनाए जाने की बात पुरजोर तरीके से कही हो। पर, आज भी कांग्रेस पार्टी मानती है कि अगर पार्टी को कोई मजबूती देने के साथ-साथ एकजुट रख सकता है तो वह गांधी परिवार ही है। कांग्रेस के सीनियर नेता और पूर्व पीएम राजीव गांधी के करीबी रहे मणिशंकर अय्यर ने भी कहा था कि वह चाहते हैं कि परिवार आपस में तय कर ले कि कौन किस भूमिका में रहना चाहता है। परिवार तय करके पार्टी को बता दे, क्योंकि कांग्रेस का आम कार्यकर्ता और नेता चाहते हैं कि कांग्रेस और गांधी परिवार का रिश्ता कायम रहे। 
राहुल की संभावनाएं क्यों घटीं? 
सोनिया के आने के बाद राहुल के लिए संभावनाए अगर क्षीण हुई हैं तो इसकी कई वजहें हैं। पहला, राहुल खुद हैं, जो परिवार के पास जिम्मेदारी जाने के खिलाफ हैं, वह शायद ही इस भूमिका में आना चाहें। दूसरा, पार्टी के सीनियर नेता कहीं न कहीं यह बात अच्छी तरह समझ चुके हैं कि राहुल गांधी एक बार जो जिद ठान लेते हैं, उस फैसले से उन्हें हिलाना मुश्किल होता है। तीसरा, राहुल के दौर में सोनिया के वफादारों और सीनियर नेताओं के लिए पार्टी में अस्तित्व बनाए रखना जितना मुश्किल हुआ, उसे देखते हुए सीनियर नेताओं का यह धड़ा राहुल की वापसी नहीं चाहेगा। 

सीनियर नेता अब खुद को सुरक्षित मान रहे 
कांग्रेस में शीर्ष नेतृत्व पर हुए इस बदलाव को रक्तहीन तख्तापलट करार देने वाली सीनियर पत्रकार और राजनैतिक विश्लेषक कल्याणी शंकर का मानना है कि सोनिया की वापसी के बाद सीनियर नेता खुद को सुरक्षित मान रहे हैं। जाहिर है कि इनके रहते राहुल की वापसी की राह आसान नहीं होगी। चौथा, सोनिया के बाद अगर पार्टी की कमान किसी के हाथ जाने की बात होगी, तो प्रियंका के रूप में आज विकल्प मौजूद है। 

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